क्रिप्टो करेंसी को रोका नहीं जा सकता

“और हमने यह लंबे समय से कहा है, तब भी जब लोगों ने यह कहने के लिए हमारी आलोचना की, जो कि हमें क्रिप्टो अटकलों और व्यापार के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाने की जरूरत है, खासकर खुदरा निवेशकों द्वारा।”
आतंकवाद से बड़ा खतरा है आतंक का वित्तपोषण: गृह मंत्री अमित शाह
नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आतंकवाद के वित्त पोषण को आतंकवाद से बड़ा खतरा बताते हुए शुक्रवार को कहा कि इसे किसी धर्म, राष्ट्रीयता या समूह से नहीं जोड़ा जा सकता है और ना ही जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्विक समुदाय को ‘आतंकवाद को कोई धन नहीं’ (नो मनी फॉर टेरर) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आतंक के वित्तपोषण के “तरीकों, माध्यम और प्रक्रियाओं” (मोड-मीडियम-मेथड) को समझकर, उन पर कड़ा प्रहार करने में ‘वन माइंड, वन एप्रोच’ के सिद्धांत को अपनाना होगा।
राष्ट्रीय राजधानी स्थित होटल ताज पैलेस में, आतंकियों को धन की आपूर्ति पर रोक लगाने संबंधी विषय पर आयोजित तीसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शाह ने यह बात कही। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सम्मेलन का आयोजन किया था। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले कुछ सालों में भारत में आतंकवादी घटनाओं में अत्यधिक कमी आई है और इसके परिणामस्वरूप आतंकवाद के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान में भी भारी कमी आई है।
इस दौरान शाह ने कहा कि आतंकवादी को संरक्षण देना, आतंकवाद को बढ़ावा देने के बराबर है और यह सभी देशों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसे तत्व तथा ऐसे देश अपने इरादों में कभी सफल न हो सकें। उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवादी हिंसा करने, युवाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेलने और वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं, वे साइबर अपराध के उपकरणों का इस्तेमाल कर और अपनी पहचान छिपाकर कट्टरपंथ की सामग्री फैला रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि क्रिप्टो करेंसी जैसी वर्चुअल मुद्रा का उपयोग भी बढ़ रहा है और साइबर अपराध के उपकरणों के माध्यम से होने वाली गतिविधियों के तौर-तरीकों को भी समझना होगा तथा उसके उपाय ढूंढ़ने होंगे।
शाह ने कहा, ‘‘निस्संदेह, आतंकवाद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरा है। लेकिन मेरा मानना है कि आतंकवाद का वित्तपोषण आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इस तरह के वित्तपोषण से आतंकवाद के ‘साधन और तरीके’ पोषित होते हैं। इसके अलावा, आतंकवाद का वित्तपोषण दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था को कमजोर करता है।”
उन्होंने कहा, ‘‘हम यह भी मानते हैं कि आतंकवाद का खतरा किसी धर्म, राष्ट्रीयता या किसी समूह से जुड़ा नहीं हो सकता है और न ही होना चाहिए।” शाह ने कहा कि आतंकवाद का “डायनामाइट से मेटावर्स’ और ‘‘एके-47 से वर्चुअल एसेट्स” तक का परिवर्तन, दुनिया के देशों के लिए निश्चित ही चिंता का विषय है। उन्होंने सभी देशों से साथ मिलकर इसके खिलाफ साझा रणनीति तैयार करने का आह्वान किया। शाह ने कहा कि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत ने सुरक्षा ढांचे के साथ-साथ कानूनी और वित्तीय प्रणालियों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे निरंतर प्रयासों का परिणाम है कि भारत में आतंकवादी घटनाओं में अत्यधिक कमी हुई है और इसके परिणामस्वरूप आतंकवाद के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान में भी भारी कमी आई है।” पाकिस्तान और चीन पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य से कुछ देश ऐसे भी हैं, जो आतंकवाद से लड़ने के लिए सामूहिक प्रयासों को कमजोर और नष्ट करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कुछ देश आतंकवादियों का बचाव करते हैं और उन्हें पनाह भी देते हैं। आतंकवादी को संरक्षण देना, आतंकवाद को बढ़ावा देने के बराबर है। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसे तत्व और ऐसे देश, अपने इरादों में कभी सफल न हो सकें।”
शाह ने आतंकवादियों के पनाहगाहों या उनके संसाधनों की अनदेखी नहीं करने के लिए सभी देशों को आगाह किया और कहा कि ऐसे तत्त्वों को सभी को उजागर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि यह सम्मेलन, सहभागी देश और संगठन, इस क्षेत्र की आतंकवादी चुनौतियों के बारे में चयनित या आत्मसंतुष्टि वाला दृष्टिकोण न रखे। शाह ने कहा कि आज आतंकवादी या आतंकवादी समूह आधुनिक हथियार, सूचना प्रौद्योगिकी और साइबर तथा वित्तीय दुनिया को अच्छी तरह से समझते हैं और उसका उपयोग भी करते हैं।
अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन का उल्लेख करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 21 अगस्त 2021 के बाद दक्षिण एशिया में स्थिति बदल गई है और अल कायदा व आईएसआईएस का बढ़ता प्रभाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है। उन्होंने कहा, ‘‘इन नए समीकरणों ने आतंकी वित्त पोषण की समस्या को और अधिक गंभीर बना दिया है। तीन दशक पूर्व ऐसे ही एक सत्ता परिवर्तन के गंभीर परिणाम पूरी दुनिया को सहने पड़े और अमेरिका के ट्विन टावर (9/11) जैसे भयंकर हमले को हम सभी ने देखा है।”
उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में पिछले साल दक्षिण एशिया क्षेत्र में हुआ परिवर्तन सभी के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि अल कायदा के साथ-साथ दक्षिण एशिया में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन बेखौफ होकर आज भी आतंक फ़ैलाने की फ़िराक में हैं। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारत आतंकवाद के सभी रूपों और प्रकारों की निंदा करता है और उसका स्पष्ट मानना है कि निर्दोष लोगों की जान लेने जैसे कृत्य को उचित ठहराने का कोई भी कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें इस बुराई से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।”
शाह ने कहा कि भारत कई दशकों से सीमा-पार से प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है और भारतीय सुरक्षा बलों और आम नागरिकों को गंभीर आतंकवादी हिंसा की घटनाओं से जूझना पड़ा है। उन्होने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक सामूहिक रुख है कि आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की जानी चाहिए। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारत का मानना है कि आतंकवाद से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका अंतरराष्ट्रीय सहयोग और राष्ट्रों के बीच रियल-टाइम तथा पारदर्शी सहयोग ही है। शाह ने कहा कि वैश्विक स्तर पर मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के उभरते चलन और नार्को-आतंकवाद जैसी चुनौतियों से आतंकवाद के वित्तपोषण को एक नया जरिया मिला है।
उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए सभी राष्ट्रों के बीच इस विषय पर घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय संस्थाएं और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफएटीएफ) जैसे आम सहमति वाले मंचों की मौजूदगी आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने में सबसे अधिक प्रभावी हैं।” उन्होंने कहा कि एफएटीएफ धन शोधन और आतंकवादियों के वित्तपोषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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आतंकी फंडिंग के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आज से, पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन
नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आतंकी फंडिंग के खिलाफ आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आज (शुक्रवार) सुबह 11 बजे ताज होटल में उद्घाटन करेंगे। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के शनिवार को संबोधन के साथ सम्मेलन का समापन होगा। इस सम्मेलन में पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किया गया है। चीन को न्योता भेजा गया है पर अभी तक उसकी स्वीकारोक्ति नहीं आई है। इस सम्मेलन में दुनिया के 72 देशों और छह संस्थाओं के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे।
सम्मेलन में पाकिस्तान को आमंत्रित नहीं किए जाने पर कोई आधिकारिक टिप्पणी सामने नहीं आई है। माना जा रहा है कि भारत में आतंकी संगठनों की ओर से पाकिस्तान की फंडिंग जारी रहने के मद्देनजर उसे नहीं बुलाने का फैसला किया गया है। भारत में आतंकी फंडिंग के स्रोत के बारे में एजेंसियों की ओर से तैयार रिपोर्ट में पाकिस्तान की ओर से कश्मीर, खालिस्तान समर्थक आतंकवाद और इस्लामिक आतंकवाद को मिल रही वित्तीय मदद मिलने का आरोप लगाया गया है।
सुरक्षा एजेंसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान की ओर इन तीन क्षेत्रों में आतंकी संगठनों को फंडिंग किए जाने के पर्याप्त सबूत हैं। आतंकी फंडिंग के खिलाफ वैश्विक सम्मेलन की जरूरत बताते हुए एनआईए के महानिदेशक दिनकर गुप्ता ने कहा कहा कि यह पूरी दुनिया के लिए बड़ा मुद्दा है और बहुत सारे देश इससे किसी न किसी रूप में प्रभावित हैं। उनके अनुसार पिछले आठ सालों में भारत में कश्मीर, नक्सल, इस्लामिक आतंकवाद और पूर्वोत्तर भारत सभी क्षेत्रों में आतंकी घटनाओं में कमी आई है, लेकिन यहां सक्रिय संगठनों को फंडिंग जारी रहना भविष्य के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है। आतंकवाद और नक्सलवाद को समूल नष्ट करने के लिए क्रिप्टो करेंसी को रोका नहीं जा सकता फंडिंग को रोकना अहम है।
गुप्ता के अनुसार दो दिन के सम्मेलन में कुल चार सत्र होंगे। प्रधानमंत्री मोदी के उद्घाटन के बाद पहले सत्र में आतंकी फंडिंग के ताजा ट्रेंड पर चर्चा होगी। इस सत्र में गृहमंत्री अमित शाह भी मौजूद रहेंगे। दूसरे सत्र में आतंकी फंडिंग के औपचारिक व अनौपचारिक सभी तरीकों पर चर्चा होगी। शनिवार को तीसरे सत्र में आतंकी फंडिंग के लिए नई तकनीक और रास्तों के इस्तेमाल पर चर्चा होगी। इसमें क्रिप्टो करेंसी व डार्क वेब भी शामिल है। अंतिम सत्र में आतंकी फंडिंग रोकने के लिए अंतराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरतों और सहयोग के बारे में चर्चा की जाएगी।
दिनकर गुप्ता के अनुसार आतंकी फंडिंग के खिलाफ भारत के समग्र प्रयास जारी हैं। एक महीने के भीतर यह तीसरा सम्मेलन है। पहले इंटरपोल और इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की समिति की मुंबई और दिल्ली में हुई बैठक में भारत आतंकी फंडिंग और आतंकवाद के खतरे के प्रति दुनिया को आगाह कर चुका है। इंटरपोल की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया था कि दुनिया में आतंकियों के लिए पनाह की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
जलवायु परिवर्तन से जुड़े अहम समझौते कौन से हैं और उनके क्या नतीजे रहे?
पिछले कुछ दशकों से दुनियाभर की सरकारें ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए कदम उठाने की बात कह रही हैं। हालांकि, अनेक समझौतों और मंचों के बावजूद दुनिया जलवायु परिवर्तन को रोकने में सफल होती नजर नहीं आ रही है। वातावरण में लगातार जहरीली गैसें फैल रही हैं और इसका असर अब नजर आने लगा है। आइये एक नजर डालते हैं कि इस दिशा में कौन से समझौते हुए हैं और उनका नतीजा क्या रहा है।
क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के तहत दुनियाभर क्रिप्टो करेंसी को रोका नहीं जा सकता के देश ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने पर सहमत हुए थे, लेकिन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड लगातार बढ़ रही है। इससे धरती का तापमान चिंताजनक गति से बढ़ा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इस मोर्चे पर काम नहीं किया जाता है तो यह पूरी दुनिया के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है और बाढ़, सूखे और प्रजातियों के विलुप्त होने के तौर पर इसका खामियाजा भुगतना होगा।
1987 का मॉन्ट्रियाल प्रोटोकॉल जलवायु परिवर्तन के लिए नहीं था, लेकिन इसे कई मायनों में ऐतिहासिक माना जाता है। पर्यावरण से जुड़ा यह समझौता इस मामले में भविष्य के समझौतों का आधार बना था। इसके तहत दुनिया को उन पदार्थों का उत्पादन रोकने को कहा गया था, जिससे ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है। यह कामयाब भी रहा और इसके बाद ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले उत्पादों का इस्तेमाल कम हुआ। इसमें कई बार संशोधन भी हो चुका है।
1992 के UN फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) को 197 देशों ने मंजूर किया था। यह पहली वैश्विक संधि थी, जिसमें सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था। इसमें ही सालाना फोरम कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी (COP) की स्थापना की गई थी। अब यह फोरम हर साल मिलकर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने पर विचार करती है। COP की बैठकों में क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौता हुआ था।
क्योटो प्रोटोकॉल की रूपरेखा 1997 में तैयार हुई थी और इसे 2005 से लागू किया गया था। यह दुनिया की पहली कानूनी रूप से बाध्य पर्यावरण संधि थी। इसके तहत विकसित देशों को उत्सर्जन कम करने पर बाध्य किया गया था और इस पर नजर रखने के लिए एक व्यवस्था बनाई गई थी। हालांकि, इसमें विकासशील देशों पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई थी। अमेरिका ने इस पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इसे कभी मंजूर नहीं किया।
2015 के पेरिस समझौते को आज तक की सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरण संधि मानी जाती है। इसके तहत सभी देशों को क्रिप्टो करेंसी को रोका नहीं जा सकता उत्सर्जन कम करने को कहा गया था। इसी समझौते में वैश्विक तापमान को 2 डिग्री बढ़ने से रोकने और इसे 1.5 डिग्री तक सीमित रखने का लक्ष्य तय किया गया था। इसके अलावा इसमें वैश्विक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा गया था। इसके तहत पर्यावरण में जितनी जहरीली गैसें छोड़ी जाएंगी, उतनी पेड़ और तकनीक से सोख ली जाएगी।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अमेरिका को इस समझौते से बाहर कर लिया था। हालांकि, 2020 में नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने अमेरिका को फिर से इस समझौते में शामिल किया। लिबिया और ईरान जैसे देश भी इस समझौते से बाहर हैं।
विकासशील देशों का कहना है कि विकसित देशों ने ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया है क्रिप्टो करेंसी को रोका नहीं जा सकता और अब उन्हें ही इसकी ज्यादा भरपाई करनी चाहिए। वहीं आंकड़ों की बात करें तो सबसे ज्यादा अमेरिका ने ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया है। उसके बाद यूरोपीय संघ का नंबर आता है। अब अमेरिका के साथ भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों की सूची में शामिल हो गए हैं। अन्य देशों में रूस, जापान और ब्राजील आदि शामिल हैं।
अधिकतर विशेषज्ञों का कहना है कि पेरिस समझौते के तहत उठाए गए कदम काफी नहीं है। इसके तहत देशों ने जो लक्ष्य तय किए हैं, वो महत्वकांक्षी नहीं हैं और उनमें उतनी तेजी नहीं दिखाई जाएगी, जिससे धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक न बढ़ सके। पिछले साल के अंत तक जो नीतियां थी, उनके अनुमान से 2100 तक दुनिया का तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा। विशेषज्ञों ने पेरिस समझौते को पहला कदम करार दिया है।
2015 के बाद से दर्जनों देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने की बात कही है। अमेरिका ने 2021 में कहा था कि वह 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में उत्सर्जन को 50-55 प्रतिशत कम कर देगा। इसी तरह यूरोपीय संघ ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन के स्तर को 1990 की तुलना में 55 प्रतिशत तक कम करने की बात कही है। चीन ने भी 2030 से पहले कार्बन उत्सर्जन के चरम पर पहुंचने का लक्ष्य रखा है।
अगर ये लक्ष्य हासिल कर लिए जाते हैं, तब भी 2100 तक वैश्विक तापमान में 2.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। वहीं अगर 100 से अधिक देश नेट-जीरो उत्सर्जन को हासिल कर लेते हैं तो तापमान को 1.8 डिग्री बढ़ोतरी पर रोका जा सकता है।
इंसानी गतिविधियों के कारण धरती गर्म (ग्लोबल वॉर्मिंग) हो रही है, जिससे जलवायु परिवर्तन हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और अगर यह 1.5 डिग्री से अधिक जाता है तो जलवायु परिवर्तन को रोकना असंभव हो जाएगा और मानवता का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। हालिया समय में भयंकर गर्मी, ठंड, बाढ़, तूफान और सूखों जैसे जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी दुष्प्रभाव देखने को भी मिले हैं।
देश की खबरें | आतंकवाद से बड़ा खतरा है आतंक का वित्तपोषण: शाह
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आतंकवाद के वित्त पोषण को आतंकवाद से बड़ा खतरा बताते हुए शुक्रवार को कहा कि इसे किसी धर्म, राष्ट्रीयता या समूह से नहीं जोड़ा जा सकता है और ना ही जोड़ा जाना चाहिए।
नयी दिल्ली, 18 नवंबर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आतंकवाद के वित्त पोषण को आतंकवाद से बड़ा खतरा बताते हुए शुक्रवार को कहा कि इसे किसी धर्म, राष्ट्रीयता या समूह से नहीं जोड़ा जा सकता है और ना ही जोड़ा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वैश्विक समुदाय को ‘आतंकवाद को कोई धन नहीं’ (नो मनी फॉर टेरर) के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आतंक के वित्तपोषण के “तरीकों, माध्यम और प्रक्रियाओं’’ (मोड-मीडियम-मेथड) को समझकर, उन पर कड़ा प्रहार करने में ‘वन माइंड, वन एप्रोच’ के सिद्धांत को अपनाना होगा।
राष्ट्रीय राजधानी स्थित होटल ताज पैलेस में, आतंकियों को धन की आपूर्ति पर रोक लगाने संबंधी विषय पर आयोजित तीसरे मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शाह ने यह बात कही। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सम्मेलन का आयोजन किया था।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले कुछ सालों में भारत में आतंकवादी घटनाओं में अत्यधिक कमी आई है और इसके परिणामस्वरूप आतंकवाद के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान में भी भारी कमी आई है।
इस दौरान शाह ने कहा कि आतंकवादी को संरक्षण देना, आतंकवाद को बढ़ावा देने के बराबर है और यह सभी देशों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसे तत्व तथा ऐसे देश अपने इरादों में कभी सफल न हो सकें।
उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवादी हिंसा करने, युवाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेलने और वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं, वे साइबर अपराध के उपकरणों का इस्तेमाल कर और अपनी पहचान छिपाकर कट्टरपंथ की सामग्री फैला रहे हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि क्रिप्टो करेंसी जैसी वर्चुअल मुद्रा का उपयोग भी बढ़ रहा है और साइबर अपराध के उपकरणों के माध्यम से होने वाली गतिविधियों के तौर-तरीकों को भी समझना होगा तथा उसके उपाय ढूंढ़ने होंगे।
शाह ने कहा, ‘‘निस्संदेह, आतंकवाद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए सबसे गंभीर खतरा है। लेकिन मेरा मानना है कि आतंकवाद का वित्तपोषण आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इस तरह के वित्तपोषण से आतंकवाद के 'साधन और तरीके' पोषित होते हैं। इसके अलावा, आतंकवाद का वित्तपोषण दुनिया के देशों की अर्थव्यवस्था को कमजोर करता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम यह भी मानते हैं कि आतंकवाद का खतरा किसी धर्म, राष्ट्रीयता या किसी समूह से जुड़ा नहीं हो सकता है और न ही होना चाहिए।’’
शाह ने कहा कि आतंकवाद का “डायनामाइट से मेटावर्स’ और ‘‘एके-47 से वर्चुअल एसेट्स’’ तक का परिवर्तन, दुनिया के देशों के लिए निश्चित ही चिंता का विषय है।
उन्होंने सभी देशों से साथ मिलकर इसके खिलाफ साझा रणनीति तैयार करने का आह्वान किया।
शाह ने कहा कि आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत ने सुरक्षा ढांचे के साथ-साथ कानूनी और वित्तीय प्रणालियों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे निरंतर प्रयासों का परिणाम है कि भारत में आतंकवादी घटनाओं में अत्यधिक कमी हुई है और इसके परिणामस्वरूप आतंकवाद के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान में भी भारी कमी आई है।’’
पाकिस्तान और चीन पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य से कुछ देश ऐसे भी हैं, जो आतंकवाद से लड़ने के लिए सामूहिक प्रयासों को कमजोर और नष्ट करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ देश आतंकवादियों का बचाव करते हैं और उन्हें पनाह भी देते हैं। आतंकवादी को संरक्षण देना, आतंकवाद को बढ़ावा देने के बराबर है। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि ऐसे तत्व और ऐसे देश, अपने इरादों में कभी सफल न हो सकें।’’
शाह ने आतंकवादियों के पनाहगाहों या उनके संसाधनों की अनदेखी नहीं करने के लिए सभी देशों को आगाह किया और कहा कि ऐसे तत्त्वों को सभी को उजागर करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि यह सम्मेलन, क्रिप्टो करेंसी को रोका नहीं जा सकता सहभागी देश और संगठन, इस क्षेत्र की आतंकवादी चुनौतियों के बारे में चयनित या आत्मसंतुष्टि वाला दृष्टिकोण न रखे।
शाह ने कहा कि आज आतंकवादी या आतंकवादी समूह आधुनिक हथियार, सूचना प्रौद्योगिकी और साइबर तथा वित्तीय दुनिया को अच्छी तरह से समझते हैं और उसका उपयोग भी करते हैं।
अफगानिस्तान में हुए सत्ता परिवर्तन का उल्लेख करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 21 अगस्त 2021 के बाद दक्षिण एशिया में स्थिति बदल गई है और अल कायदा व आईएसआईएस का बढ़ता प्रभाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभर कर सामने आया है।
उन्होंने कहा, ‘‘इन नए समीकरणों ने आतंकी वित्त पोषण की समस्या को और अधिक गंभीर बना दिया है। तीन दशक पूर्व ऐसे ही एक सत्ता परिवर्तन के गंभीर परिणाम पूरी दुनिया को सहने पड़े और अमेरिका के ट्विन टावर (9/11) जैसे भयंकर हमले को हम सभी ने देखा है।’’
उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में पिछले साल दक्षिण एशिया क्षेत्र में हुआ परिवर्तन सभी के लिए चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि अल कायदा के साथ-साथ दक्षिण एशिया में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन बेखौफ होकर आज भी आतंक फ़ैलाने की फ़िराक में हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारत आतंकवाद के सभी रूपों और प्रकारों की निंदा करता है और उसका स्पष्ट मानना है कि निर्दोष लोगों की जान लेने जैसे कृत्य को उचित ठहराने का कोई भी कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें इस बुराई से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।’’
शाह ने कहा कि भारत कई दशकों से सीमा-पार से प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है और भारतीय सुरक्षा बलों और आम नागरिकों को गंभीर आतंकवादी हिंसा की घटनाओं से जूझना पड़ा है।
उन्होने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक सामूहिक रुख है कि आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की जानी चाहिए।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारत का मानना है कि आतंकवाद से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका अंतरराष्ट्रीय सहयोग और राष्ट्रों के बीच रियल-टाइम तथा पारदर्शी सहयोग ही है।
शाह ने कहा कि वैश्विक स्तर पर मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के उभरते चलन और नार्को-आतंकवाद जैसी चुनौतियों से आतंकवाद के वित्तपोषण को एक नया जरिया मिला है।
उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए सभी राष्ट्रों के बीच इस विषय पर घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय संस्थाएं और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफएटीएफ) जैसे आम सहमति वाले मंचों की मौजूदगी आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने में सबसे अधिक प्रभावी हैं।’’
उन्होंने कहा कि एफएटीएफ धन शोधन और आतंकवादियों के वित्तपोषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र माधव
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)
सिंगापुर के डिप्टी पीएम ने एफटीएक्स के लिए क्रिप्टो-अटकलबाजी को प्रतिबंधित करने के फैसले को दोहराया
एफटीएक्स का पतन पूरे उद्योग में लहरें पैदा करना जारी रखता है, नियामकों और राजनेताओं को समान रूप से वेक-अप कॉल भेज रहा है। क्रिप्टो का विरोध करने वालों को इस उपन्यास तकनीक का विरोध जारी रखने का एक नया कारण मिल गया है। उल्टे इसका समर्थन करने वाले इस विनाशकारी घटना में अरबों डॉलर का नुकसान देखकर उनके फैसलों पर सवाल उठा रहे हैं.
एफटीएक्स के प्रभाव का बड़ा हिस्सा पश्चिम में स्थित ग्राहकों द्वारा अवशोषित किया गया है, लेकिन इसने अन्य देशों को क्रिप्टो-नियमों के प्रति अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने से नहीं रोका है। सिंगापुर का द्वीप राष्ट्र अब ऐसे नियमों को लागू करना चाह रहा है जो क्रिप्टो-ट्रेडिंग और अटकलों को प्रभावी रूप से प्रतिबंधित करेगा।
एफटीएक्स के पतन से प्रबलित क्रिप्टो के खिलाफ विवादास्पद रुख
सिंगापुर के उप प्रधान मंत्री और वित्त मंत्री लॉरेंस वोंग ने FTX की धोखाधड़ी वाली व्यावसायिक गतिविधियों के कारण होने वाली उथल-पुथल का संज्ञान लिया है। के साथ एक साक्षात्कार में ब्लूमबर्ग , वोंग ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का हवाला दिया, जो खुदरा निवेशकों के सट्टा और ट्रेडिंग क्रिप्टोकरेंसी के खिलाफ द्वीप राष्ट्र की मजबूत स्थिति को मजबूत करने के कारण के रूप में है। उसने बोला,
“और हमने यह लंबे समय से कहा है, तब भी जब लोगों ने यह कहने के लिए हमारी आलोचना की, जो कि हमें क्रिप्टो अटकलों और व्यापार के खिलाफ एक मजबूत रुख अपनाने की जरूरत है, खासकर खुदरा निवेशकों द्वारा।”
मंत्री वोंग ने स्पष्ट किया कि सिंगापुर डिजिटल और डिजिटल एसेट इनोवेशन के लिए खुला है, लेकिन क्रिप्टो-सट्टा वह जगह है जहां देश रेखा क्रिप्टो करेंसी को रोका नहीं जा सकता खींचता है। मंत्री सीमा पार से भुगतान, वित्तीय और पूंजी बाजार आदि में क्रांति लाने में ब्लॉकचेन तकनीक की क्षमता पर सहमत हुए। हालांकि, खुदरा निवेशकों को क्रिप्टो-अटकलबाजी के लिए उजागर करना कुछ समय के लिए जोखिम भरा माना गया है।
मंत्री वोंग ने खुलासा किया कि एफटीएक्स गाथा सामने आने से पहले सिंगापुर क्रिप्टो-ट्रेडिंग और इस बाजार में खुदरा पहुंच के लिए नियामक नियमों को कड़ा करने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए एक परामर्श पत्र पर काम चल रहा है। यह इस उद्योग के लिए नियमों और नियमों की समीक्षा करेगा।
FTX में सिंगापुर सरकार को $275 मिलियन का नुकसान हुआ
अक्टूबर 2021 और जनवरी 2022 के बीच, सिंगापुर स्थित टेमासेक होल्डिंग्स लिमिटेड ने क्रमशः 1% और 1.5% के दांव के लिए FTX इंटरनेशनल में $210 मिलियन और FTX US में $65 मिलियन का निवेश किया।
17 नवंबर को, टेमासेक एक राज्य-समर्थित निवेश एजेंसी, ने खुलासा किया कि वह FTX में इस $275 मिलियन के निवेश को घटाकर 0 कर देगी।