फिसलन क्या है

संभालने की जितनी करूँ, उतनी फिसल रही है ज़िन्दगी! -
अभिषेक क्या है? अभिषिक्त होने का क्या अर्थ है?
अभिषेक की उत्पत्ति चरवाहा के द्वारा व्यवहार में लाए जाने वाले एक अभ्यास से है। जूँए और अन्य कीड़े अक्सर भेड़ों के ऊन में चले आते हैं, और जब वे भेड़ के सिर के पास आते हैं, तो वे भेड़ों के कानों में घुसकर भेड़ों को मार सकते थे। इसलिए, प्राचीन समय के चरवाहों ने भेड़ों के सिर पर तेल डालते थे। इससे ऊन में फिसलन बन जाती थी, जिससे कीड़ों का भेड़ के कानों के पास आना असम्भव बन जाता था, क्योंकि इससे कीड़े नीचे गिर जाते थे। यहीं से, अभिषेक, आशीष, सुरक्षा और सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया।
"अभिषेक" के लिए यूनानी शब्द कारियो है, जिसका अर्थ "तेल के साथ मलना या रगड़ना" और, अपने निहितार्थ के द्वारा, "धार्मिक सेवा या पद के लिए दृढ़ीकृत करना"; और एलीप्हो, जिसका मतलब है "अभिषेक करने" से है। बाइबल के समय में, लोगों को परमेश्वर की आशीष की प्राप्ति या उस व्यक्ति के जीवन पर बुलाहट को दर्शाने के लिए तेल से अभिषेक किया जाता था (निर्गमन 29:7; निर्गमन 40:9; 2 राजा 9:6; सभोपदेशक 9:8; याकूब 5:14)। एक व्यक्ति को एक विशेष उद्देश्य के लिए अभिषेक किया जाता था जैसे कि — एक राजा, भविष्यद्वक्ता, एक निर्माण कार्य को करने के लिए इत्यादि। आज तेल के साथ एक व्यक्ति को अभिषेक करने में कुछ भी गलत नहीं है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि अभिषेक का उद्देश्य पवित्रशास्त्र की सहमति में है। अभिषेक को "जादू की औषधि" के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। तेल में कोई शक्ति नहीं है। यह तो केवल ईश्वर है, जो एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए एक व्यक्ति को अभिषेक कर सकता है। यदि हम तेल का उपयोग करते हैं, तो यह परमेश्वर क्या कर रहा है, को दर्शाने का एक प्रतीक मात्र है।
अभिषिक्त होने का एक अन्य अर्थ "चुने हुए" होने से है। बाइबल कहती है कि यीशु मसीह परमेश्वर की ओर से पवित्र आत्मा के द्वारा शुभ सन्देश का विस्तार करने के लिए और पाप के बन्धन में पड़े हुए बन्दियों को छुटकारा देने के लिए अभिषिक्त किया गया था (लूका 4:18-19; प्रेरितों के काम 10:38)। इस पृथ्वी से यीशु के जाने के पश्चात्, उसने हमें पवित्र आत्मा के वरदान को दिया है (यूहन्ना 14:16)। अब सभी मसीही विश्वासी अभिषिक्त, परमेश्वर के राज्य के विस्तार में विशेष उद्देश्य के साथ चुने हुए हैं (1 यूहन्ना 2:20)। "पर और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्वर है। "और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिसने हमारा अभिषेक किया वही परमेश्वर है।जिसने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया" (2 कुरिन्थियों 1:21-22)।
अभिषेक क्या है? अभिषिक्त होने का क्या अर्थ है?
अभिषेक की उत्पत्ति चरवाहा के द्वारा व्यवहार में लाए जाने वाले एक अभ्यास से है। जूँए और अन्य कीड़े अक्सर भेड़ों के ऊन में चले आते हैं, और जब वे भेड़ के सिर के पास आते हैं, तो वे भेड़ों के कानों में घुसकर भेड़ों को मार सकते थे। इसलिए, प्राचीन समय के चरवाहों ने भेड़ों के सिर पर तेल डालते थे। इससे ऊन में फिसलन बन जाती थी, जिससे कीड़ों का भेड़ के कानों के पास आना असम्भव बन जाता था, क्योंकि इससे कीड़े नीचे गिर जाते थे। यहीं से, अभिषेक, आशीष, सुरक्षा और सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया।
"अभिषेक" के लिए यूनानी शब्द कारियो है, जिसका अर्थ "तेल के साथ मलना या रगड़ना" और, अपने निहितार्थ के द्वारा, "धार्मिक सेवा या पद के लिए दृढ़ीकृत करना"; और एलीप्हो, जिसका मतलब है "अभिषेक करने" से है। बाइबल के समय में, लोगों को परमेश्वर की आशीष की प्राप्ति या उस व्यक्ति के जीवन पर बुलाहट को दर्शाने के लिए तेल से अभिषेक किया जाता था (निर्गमन 29:7; निर्गमन 40:9; 2 राजा 9:6; सभोपदेशक 9:8; याकूब 5:14)। एक व्यक्ति को एक विशेष उद्देश्य के लिए अभिषेक किया जाता था जैसे कि — एक राजा, भविष्यद्वक्ता, एक निर्माण कार्य को करने के लिए इत्यादि। आज तेल के साथ एक व्यक्ति को अभिषेक करने में कुछ भी गलत नहीं है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि अभिषेक का उद्देश्य पवित्रशास्त्र की सहमति में है। अभिषेक को "जादू की औषधि" के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। तेल में कोई शक्ति नहीं है। यह तो केवल ईश्वर है, जो एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए एक व्यक्ति को अभिषेक कर सकता है। यदि हम तेल का उपयोग करते हैं, तो यह परमेश्वर क्या कर रहा है, को दर्शाने का एक प्रतीक मात्र है।
अभिषिक्त होने फिसलन क्या है का एक अन्य अर्थ "चुने हुए" होने से है। बाइबल कहती है कि यीशु मसीह परमेश्वर की ओर से पवित्र आत्मा के द्वारा शुभ सन्देश का विस्तार करने के लिए और पाप के बन्धन में पड़े हुए बन्दियों को छुटकारा देने के लिए अभिषिक्त किया गया था (लूका 4:फिसलन क्या है 18-19; प्रेरितों के काम 10:38)। इस पृथ्वी से यीशु के जाने के पश्चात्, उसने हमें पवित्र आत्मा के वरदान को दिया है (यूहन्ना 14:16)। अब सभी मसीही विश्वासी अभिषिक्त, परमेश्वर के राज्य के विस्तार में विशेष उद्देश्य के साथ चुने हुए हैं (1 यूहन्ना 2:20)। "पर और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिस ने हमें अभिषेक किया वही परमेश्वर है। "और जो हमें तुम्हारे साथ मसीह में दृढ़ करता है, और जिसने हमारा अभिषेक किया वही परमेश्वर है।जिसने हम पर छाप भी कर दी है और बयाने में आत्मा को हमारे मनों में दिया" (2 कुरिन्थियों 1:21-22)।
मुद्दा: फिसलन भरी पगडंडी
दुर्भाग्य से किसी भी सरकार ने श्रमिकों, खासकर प्रवासी श्रमिकों को लेकर नीति निर्माण में गंभीरता नहीं दिखाई। असमान पारिश्रमिक, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और श्रमिक अधिकार के सवालों पर ध्यान नहीं दिया गया।
पैदल ही सफल तय करते मजदूर। (फोटो- एक्सप्रेस)
ज्योति सिडाना
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उस देश की श्रमशक्ति पर निर्भर करती है। बिना श्रमिकों के किसी भी प्रकार के उत्पादन की संभावना नहीं हो सकती। ऐसे में प्रवासी श्रमिक भारतीय अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात जैसे राज्यों के विकास में प्रवासी श्रमिकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कम पारिश्रमिक और बहुत सारी कठिनाइयों को सहते हुए भी उन्होंने अपना योगदान किया है। विनिर्माण और निर्माण, खनन, होटल उद्योग, कपड़ा उद्योग, परिवहन, घरेलू कार्य आदि जैसे क्षेत्रों में अधिकांश नौकरियां जोखिमपूर्ण और कम भुगतान वाली होती हैं। साथ ही प्रतिकूल स्वास्थ्य सेवाएं, स्थायी आवास की समस्या, सांस्कृतिक मतभेद, भाषा संबंधी बाधाएं, कानूनी और आर्थिक अधिकारों से अपरिचित, स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा झेलता यह समूह बड़ी संख्या में अकुशल मजदूरों के रूप में काम करने को बाध्य होता है।
पिछली जनगणना के मुताबिक भारत में आंतरिक प्रवासियों की कुल संख्या 45.36 करोड़ थी, जो देश की जनसंख्या का लगभग सैंतीस फीसद था। 2016 में प्रवासी श्रमिकों का आंकड़ा पचास करोड़ के आसपास पहुंच गया है। देश में अंतरराज्यीय प्रवासियों की संख्या लगभग पैंसठ करोड़ है, जिनमें से लगभग तैंतीस फीसद श्रमिक वर्ग है। अनुमानों के अनुसार, इन प्रवासी श्रमिकों में से तीस फीसद अल्पकालिक तथा अन्य तीस प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य करने वाले नियमित कार्मिक हैं।
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महिला प्रवासी श्रमिकों की सबसे अधिक हिस्सेदारी निर्माण क्षेत्र में है, जबकि सबसे अधिक पुरुष प्रवासी श्रमिकों की भागीदारी सार्वजनिक सेवाओं (परिवहन, डाक, सार्वजनिक प्रशासन) तथा आधुनिक सेवाओं (वित्तीय मध्यस्थता, अचल संपत्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य) में है। ऐसे में देश के आर्थिक विकास की चर्चा करते समय इस जनसंख्या की उपेक्षा नहीं की जा सकती। अगर यह तर्क दिया जाता है कि नई तकनीक प्रवासी श्रमिकों की कमी को कुछ हद तक पूरा कर देगी तो यह सोचना गलत है, क्योंकि प्रौद्योगिकी पूरी तरह मानव श्रम को कभी भी विस्थापित नहीं कर पाएगी।
ऑटो मोबाइल उद्योग में पहली बार अप्रैल माह में वाहनों की बिक्री शून्य रही। पूर्णबंदी के चलते पर्यटन उद्योग को आठ सौ करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। एक माह में केवल उत्तर प्रदेश के ही साठ फीसद से अधिक कुटीर उद्योग संकट में आ गए हैं। इससे पूरे देश के कुटीर उद्योगों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब किसी उद्योग की बिक्री दर नीचे आती या शून्य हो जाती है तो उसे आर्थिक और अन्य सहयोग की जरूरत होती है, ताकि उसका अस्तित्व बचा रहे। इसलिए उद्योगों को पुन: खोलने के लिए एक अच्छी रणनीति की आवश्यकता है।
दूसरी तरफ संकट की इस घड़ी में प्रवासी श्रमिकों को शहरों के अंदर असुरक्षित छोड़ दिया गया, जो पहले से ही अनिश्चितता की स्थिति में जीने को अभिशप्त हैं। नतीजतन, वे लोग अपने गांवों को लौटने के लिए बाध्य फिसलन क्या है हो गए। परिवहन की सुविधा उपलब्ध न होने के कारण हजारों किलोमीटर दूर पैदल अपने गंतव्य को चल पड़े। उनमें से कुछ ने रास्ते में दम तोड़ दिया। ऐसे में संकट खत्म हो जाने के बाद अगर उन्होंने वापस आने से मना कर दिया या कम संख्या में वापस आए तो औद्योगिक विकास पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए कितना बड़ा खतरा है, इस पर सामूहिक विमर्श की आवश्यकता है। क्योंकि इनकी वापसी के बिना अर्थव्यवस्था को गति नहीं मिल सकेगी। देश के सबसे गरीब तबके यानी मजदूरों की समस्याओं की उपेक्षा या उन पर कम ध्यान देना किसी भी देश के लिए शर्म की बात होनी चाहिए। अन्य नागरिकों की तरह इन्हें भी सम्मान और प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
मजदूर क्रांति परिषद के नेता अमिताभ भट्टाचार्य ने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर मजदूर को काम मिल सके, ताकि उसकी रोजी-रोटी पर संकट न पैदा हो। ऐसा न होने की स्थिति में ऐसे मजदूरों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए। यह कैसी विडंबना है कि हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए श्रमिक वर्ग का दोहन करते हैं, पर इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के समय स्वयं को इनसे अलग कर लिया। समाजशास्त्री एमील दुरखाइम इसे मौलिक अन्याय कहते हैं। यह एक बड़ा कारण है, जिसकी वजह से श्रमिक वर्ग में अलगाव और निराशा के भाव उत्पन्न हो जाते हैं।
यहां एक और विसंगति की चर्चा होनी चाहिए। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि सैंतीस फीसद से ज्यादा भारतीय एक कमरे और बत्तीस फीसद भारतीय दो कमरों के घरों में रहते हैं और चार फीसद लोग बेघर हैं। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग (वास्तव में शारीरिक दूरी) की बात कठिन नजर आती है। इसे मूर्त रूप देना तकनीकी रूप से संभव नहीं है।
आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। शिक्षा क्षेत्र में नीति बन रही है कि अगस्त में नया सत्र शुरू होगा और नई तकनीक के माध्यम से आॅनलाइन पढ़ाई होगी। क्या भारत जैसे देश में यह मूर्त रूप ले पाएगी? क्योंकि इस महामारी के लिए कोई दवाई या टीका बाजार में कब तक आएगा या यह बीमारी कब खत्म होगी, यह कहना मुश्किल है। ऐसे में शैक्षणिक संस्थानों में भी असुरक्षा बनी रहेगी और केवल वही शिक्षण संस्थान संचालित हो सकेंगे, जिनमें आवासीय सुविधाएं हैं।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उत्तर-कोरोना युग में औद्योगिक विकास और शिक्षा में जबर्दस्त नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है। परिणामस्वरूप इससे किसी भी देश के विकास की प्रक्रिया बरसों पीछे चली जाएगी, इस संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता। क्या भारत के शैक्षणिक संस्थानों में बैठे बुद्धिजीवी या शिक्षक इसका विकल्प तलाश सकते हैं? महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में वे कैसे और किस तरह पढ़ाएंगे?
औद्योगिक संस्थानों में श्रमिकों को कैसे वापस लाया जाएगा और उनके लिए किस तरह का सुरक्षित माहौल बनाया जाएगा, ताकि उन्हें भविष्य और जीवन में सुनिश्चितता अनुभव हो। इसके लिए नए सिरे से देश के शैक्षणिक और औद्योगिक संस्थानों के लिए खाका तैयार करने की आवश्यकता है, जिसमें श्रमिकों और शिक्षाविदों की भूमिका की उपेक्षा नहीं की जा सकती। अगर केवल प्रशासकों के सहारे इस प्रारूप को तैयार किया गया, तो कोई भी देश विकास की प्रक्रिया में तेजी से आगे नहीं बढ़ पाएगा, क्योंकि आज इस संकट की स्थिति से निपटने के लिए और देश को वापस विकास की पटरी पर दौड़ाने के लिए एक दूरदर्शी नेतृत्व की आवश्यकता है।
दुर्भाग्य से किसी भी सरकार ने श्रमिकों, खासकर प्रवासी श्रमिकों को लेकर नीति निर्माण में गंभीरता नहीं दिखाई। असमान पारिश्रमिक, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य और श्रमिक अधिकार के सवालों पर ध्यान नहीं दिया गया। नतीजतन, आपदा के इस दौर में प्रवासी श्रमिकों को लगा कि नगर अब उनके लिए सुरक्षित नहीं हैं। नीतियों के आभाव में उन्हें न तो नगरों से और न ही नियोक्ता-श्रमिक संबंधों से भावनात्मक लगाव हुआ। नियोक्ता भी इस आपात स्थिति में उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहे या इंकार कर दिया। इसलिए सरकार और नियोक्ताओं को श्रमिकों के संदर्भ में नए सिरे से विचार करने की जरूरत है, ताकि आर्थिक चुनौतियों का सामना किया जा सके।
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Stock Market: रुपये में फिसलन के बीच सपाट खुले शेयर बाजार, Wipro के शेयर 2% लुढ़के
Stock Market: Nifty की तरह BSE Sensex पर Wipro के शेयरों में सबसे ज्यादा 1.63 फीसदी की टूट देखने को मिली. इसके अलावा Kotak Mahindra Bank, L&T, HDFC Bank, HDFC Finance, Asian Paints, SBI, Reliance Industries, Infosys, HDFC, बजाज फिनजर्व, TCS, एनटीपीसी और आईसीआईसीआई बैंक के शेयरों में लाल निशान के साथ कारोबार हो रहा था.
जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इंवेस्टमेंट स्ट्रेटेजिस्ट वी के विजयकुमार ने कहा जून के करेक्शन के बाद करीब 8.5 फीसदी की बढ़त के साथ अगले दौर में प्रवेश से पहले निफ्टी के कॉन्सॉलिडेट होने की उम्मीद है. इस पर 21 जुलाई और 27 जुलाई को होने वाली ECB और फेड रिजर्व की बैठकों का असर देखने को मिलेगा.
#फिसलन quotes
कुछ उलझ चुकी अब तक, कुछ उलझ रही है ज़िन्दगी,
संभालने की जितनी करूँ, उतनी फिसल रही है ज़िन्दगी!
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घर से निकला फिसलन तो कई बार मिली 'नाचीज'।
मगर मुहब्बत को मजिंल शिद्दत से भी ना मिली।
प्यासी रूह सुकून के लिये बस तरसती रहती है
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अपनी जहनी सतह की फिसलन पर, हर एक को गिराना चाहता है
वो शख्स बाहर से बुलंद , पर भीतर से अदना सा नज़र आता है
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छुअन पिता की ज़रा खुरदरी सी लगती है,
सतह ग़र नर्म हो तो फिसलन बनी रहती है।
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फासले तुमसे नही तुम्हारी नजरो से है
कुछ अजीब सी फिसलन जो है इसमें
दूरिया तुमसे नही तुम्हारी हरकतों से है
कच्ची सी बड़ी उलझन जो है इसमें
यारिया तुमसे नही तुम्हारी खामिशियो से है
एक आवाज सी नई मसलन जो है इसमें
हा चाहते तुमसे नही तुम्हारी परछाइयों से है
मेरी अटखेलियों सी जकड़न जो है इसमें
ऐतबार वाकई तुमसे नही तुम्हारी खुमारियो से है
खुद के जज्बातो सी अकडन जो है इसमें.
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