विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है?

भीम आधार पे
भुगतान का सबसे आसान और सस्ता तरीका आधार भुगतान है। भारत का नागरिक जिसके पास आधार नंबर है, वह इस भुगतान विधि का उपयोग कर सकता है। भारतीयों के लगभग 43 करोड़ खाते आधार से लिंक हैं; और वे इस आधार सक्षम भुगतान मोड का उपयोग कर सकते हैं।
आधार भुगतान ऐप के लाभ:
ग्राहकों के लिए संव्यवहार करना आसान है, जबकि व्यापारियों को स्मार्टफोन, ऐप और फिंगरप्रिंट स्कैनर की व्यवस्था करने की आवश्यकता होती है।
रूस के सस्ते क्रूड से प्राइवेट रिफाइनिंग कंपनियां मालामाल, फिर सरकारी ऑयल कंपनियों को क्यों हो रहा लॉस?
सरकार तेल कंपनियों को जून तिमाही में लॉस हो सकता है। इसकी वजह यह है कि महंगे भाव पर क्रूड खरीदने के बावजूद वे कम कीमतों पर पेट्रोल और डीजल बेच रही हैं। बढ़ते इनफ्लेशन को देखते हुए वे पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें नहीं बढ़ा पा रही हैं
सरकारी तेल कंपनियों को प्रति लीटर पेट्रोल की बिक्री पर 17 रुपये और डीजल की बिक्री पर प्रति लीटर 20 रुपये का लॉस हो रहा है।
रूस का सस्ता क्रूड प्राइवेट रिफाइनिंग कंपनियों के लिए वरदान बन गया है। उधर, सरकारी रिफानिंग कंपनियां दबाव में है। रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) और नायरा (Nayara) रूस से सस्ता तेल खरीदने में सबसे आगे हैं। दोनों ने सस्ते भाव पर क्रूड खरीदा है और रिफानिंग के बाद महंगे भाव पर एक्सपोर्ट किया है। इस तरह उन्होंने खूब मुनाफा कमाया है।
उधर, सरकारी रिफाइनिंग कंपनियां (IOC, HPCL, BPCL) महंगे भाव पर क्रूड खरीदने के लिए मजबूर हैं। इसके अलावा उन्हें कम भाव पर घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल बेचना पड़ता है। इससे वे काफी दबाव में हैं। सरकारी रिफाइनिंग कंपनियों ने रूस से बहुत कम क्रूड खरीदा है। इसकी वजह यह है कि ये ज्यादातर सालाना डील के तहत क्रूड खरीदती हैं।
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इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि सरकार तेल कंपनियों को जून तिमाही में लॉस हो सकता है। इसकी वजह यह है कि महंगे भाव पर क्रूड खरीदने के बावजूद वे कम कीमतों पर पेट्रोल और डीजल बेच रही हैं। बढ़ते इनफ्लेशन को देखते हुए वे पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें नहीं बढ़ा पा रही हैं। अप्रैल की शुरुआत से पेट्रोल और डीजल की कीमतें नहीं बढ़ाई गई हैं। उधर, रिलायंस जैसी प्राइवेट कंपनियों को घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की खुदरा बिक्री करने का दबाव नहीं है। वे अपने ज्यादातर प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट करती हैं।
यूक्रेन पर रूस के हमले शुरू होने के बाद से इंडिया ने रूस से 6.25 करोड़ बैरल क्रूड रूस से खरीदा है। यह 2021 की इसी अवधि के मुकाबले तीन गुना से ज्यादा है। इसमें से आधा से ज्यादा क्रूड प्राइवेट कंपनियों ने खरीदा है। इनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी शामिल हैं। Refinitiv Eikon के डेटा से जानकारी मिली है।
साल 2022 के पहले पांच महीनों में इंडिया से ऑयल का एक्सपोर्ट 15 फीसदी ज्यादा रहा है। एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए प्राइवेट रिफानिंग कंपनियों ने घरेलू बाजार में ऑयल की बिक्री घटा दी है। फाइनेंशियल ईयर 2021-22 में घरेलू बाजार में फ्यूल की कुल बिक्री में प्राइवेट कंपनियों की हिस्सेदारी 10 फीसदी थी। इस साल अप्रैल में यह घटकर 7 फीसदी पर आ गई।
सरकारी तेल कंपनियों को प्रति लीटर पेट्रोल की बिक्री पर 17 रुपये और डीजल की बिक्री पर प्रति लीटर 20 रुपये का लॉस हो रहा है। इसे ध्यान में रख ब्रोकरेज फर्म आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज ने आईओसी (IOC) की रेटिंग घटा दी है। उसने इस शेयर पर अपनी राय 'बाय' से बदलकर 'होल्ड' कर दी है। उसने रिलायंस इंडस्ट्रीज को निवेश के लिए बेहतर स्टॉक बताया है।
MoneyControl News
First Published: Jun 03, 2022 9:50 AM
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डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है, रुपया कमजोर, डॉलर मजबूत क्यों हुआ?
भारतीय रुपया इस साल डॉलर के मुकाबले करीब 7 फीसदी कमजोर हुआ है. न केवल रुपया बल्कि दुनियाभर की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई हैं. यूरो, डॉलर के मुकाबले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. आखिर क्या वजह है कि दुनियाभर की करेंसी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रही हैं और डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है?
पंकज कुमार
- नई दिल्ली,
- 19 जुलाई 2022,
- (अपडेटेड 19 जुलाई 2022, 1:46 PM IST)
- एक डॉलर की कीमत 80 रुपये हुई
- डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ
मेरी पीढ़ी ने जबसे होश संभाला है तब से अख़बारों और टीवी पर यही हेडलाइन पढ़ी कि डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट. आज फिर हेडलाइन है रुपये में रिकॉर्ड गिरावट, एक डॉलर की कीमत 80 रुपये के पार हुई. अक्सर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत को देश की प्रतिष्ठा के साथ जोड़ा जाता है. लेकिन क्या यह सही है? आजादी के बाद भारत सरकार ने लंबे समय तक कोशिश की कि रुपये की कीमत को मजबूत रखा जा सके. लेकिन उन देशों का क्या जिन्होंने खुद अपनी करेंसी की कीमत घटाई? करेंसी की कीमत घटाने की वजह से उन देशों की आर्थिक हालत न केवल बेहतर हुई बल्कि दुनिया की चुनिंदा बेहतर अर्थव्यवस्थाओं में वो देश शामिल भी हुए.
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है?
किसी भी देश की करेंसी की कीमत अर्थव्यवस्था के बेसिक सिद्धांत, डिमांड और सप्लाई पर आधारित होती है. फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में जिस करेंसी की डिमांड ज्यादा होगी उसकी कीमत भी ज्यादा होगी, जिस करेंसी की डिमांड कम होगी उसकी कीमत भी कम होगी. यह पूरी तरह से ऑटोमेटेड है. सरकारें करेंसी के रेट को सीधे प्रभावित नहीं कर सकती हैं.
करेंसी की कीमत को तय करने का दूसरा एक तरीका भी है. जिसे विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है? Pegged Exchange Rate कहते हैं यानी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट. जिसमें एक देश की सरकार किसी दूसरे देश के मुकाबले अपने देश की करेंसी की कीमत को फिक्स कर देती है. यह आम तौर पर व्यापार बढ़ाने औैर महंगाई को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.
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उदाहरण के तौर पर नेपाल ने भारत के साथ फिक्सड पेग एक्सचेंज रेट अपनाया है. इसलिए एक भारतीय रुपये की कीमत नेपाल में 1.6 नेपाली रुपये होती है. नेपाल के अलावा मिडिल ईस्ट के कई देशों ने भी फिक्स्ड एक्सचेंज रेट अपनाया है.
किसी करेंसी की डिमांड कम और ज्यादा कैसे होती है?
डॉलर दुनिया की सबसे बड़ी करेंसी है. दुनियाभर में सबसे ज्यादा कारोबार डॉलर में ही होता है. हम जो सामान विदेश से मंगवाते हैं उसके बदले हमें डॉलर देना पड़ता है और जब हम बेचते हैं तो हमें डॉलर मिलता है. अभी जो हालात हैं उसमें हम इम्पोर्ट ज्यादा कर रहे हैं और एक्सपोर्ट कम कर रहे हैं. जिसकी वजह से हम ज्यादा डॉलर दूसरे देशों को दे रहे हैं और हमें कम डॉलर मिल रहा है. आसान भाषा में कहें तो दुनिया को हम सामान कम बेच रहे हैं और खरीद ज्यादा रहे हैं.
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है? क्या होता है?
आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज रेट कहते हैं. यह एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.
करेंसी का डिवैल्यूऐशन और डिप्रीशीएशन क्या है?
करेंसी का डिप्रीशीएशन तब होता है जब फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर करेंसी की कीमत घटती है. करेंसी का डिवैल्यूऐशन तब होता है जब कोई देश जान बूझकर अपने देश की करेंसी की कीमत को घटाता है. जिसे मुद्रा का अवमूल्यन भी कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया. साल 2015 में People’s Bank of China (PBOC) ने अपनी मुद्रा चीनी युआन रेनमिंबी (CNY) की कीमत घटाई.
मुद्रा का अवमूल्यन क्यों किया जाता है?
करेंसी की कीमत घटाने से आप विदेश में ज्यादा सामान बेच पाते हैं. यानी आपका एक्सपोर्ट बढ़ता है. जब एक्सपोर्ट बढ़ेगा तो विदेशी मुद्रा ज्यादा आएगी. आसान भाषा में समझ सकते हैं कि एक किलो चीनी का दाम अगर 40 रुपये हैं तो पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे तो अब 80 रुपये हैं. यानी अब आप एक डॉलर में पूरे दो किलो चीनी खरीद सकते हैं. यानी रुपये की कीमत गिरने से विदेशियों को भारत में बना सामान सस्ता पड़ेगा जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा.
डॉलर की कीमत रुपये के मुकाबले क्यों बढ़ रही है?
डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी बाकी देशों की गिरी है.
यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले कम गिरा है.
डॉलर क्यों मजबूत हो रहा है?
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया में अस्थिरता आई. डिमांड-सप्लाई की चेन बिगड़ी. निवेशकों ने डर की वजह से दुनियाभर के बाज़ारों से पैसा निकाला और सुरक्षित जगहों पर निवेश किया. अमेरिकी निवेशकों ने भी भारत, यूरोप और दुनिया के बाकी हिस्सों से पैसा निकाला.
अमेरिका महंगाई नियंत्रित करने के लिए ऐतिहासिक रूप से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. फेडरल रिजर्व ने कहा था कि वो तीन तीमाही में ब्याज दरें 1.5 फीसदी से 1.75 फीसदी तक बढ़ाएगा. ब्याज़ दर बढ़ने की वजह से भी निवेशक पैसा वापस अमेरिका में निवेश कर रहे हैं.
2020 के आर्थिक मंदी के समय अमेरिका ने लोगों के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर किया था, ये पैसा अमेरिकी लोगों ने दुनिया के बाकी देशों में निवेश भी किया था, अब ये पैसा भी वापस अमेरिका लौट रहा है.
धनतेरस से ठीक पहले सस्ता हो गया सोना और चांदी
सोना (Gold) और चांदी (Silver) की खरीदारी का सबसे शुभ दिन धनतेरस (Dhanteras) बस 2 दिन ही दूर है . यदि आप भी धनतेरस पर सोना चांदी (Gold Silver Coin) खरीदने की सोच रहे थे तो आपके लिए अच्छी समाचार है . आज सोने की मूल्य में एक बार फिर कमी दर्ज की गई है . अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में गिरावट के बीच राष्ट्रीय राजधानी में शुक्रवार को सोने का रेट 372 रुपये की गिरावट के साथ 50,139 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गया . पिछले कारोबार में यह कीमती धातु 50,511 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुई थी .
चांदी भी टूटी
चांदी भी 799 रुपये की गिरावट के साथ 56,089 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई, जो 56,888 रुपये प्रति किलोग्राम थी . अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोना लाल रंग की मूल्य 1,621.25 $ प्रति औंस जबकि चांदी 18.41 $ प्रति औंस पर कारोबार कर रही थी .
क्या कहते है विशेषज्ञ
एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने कहा, “कॉमेक्स स्पॉट गोल्ड दूसरी साप्ताहिक गिरावट की ओर अग्रसर है, अप्रैल 2020 के बाद से कीमतें अपने सबसे निचले स्तर के करीब हैं, क्योंकि $ मजबूत है और ईटीएफ-विस्तारित गिरावट में होल्डिंग है . ”
कल कैसा था बाजार का हाल?
वैश्विक बाजारों में बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में मजबूती के बीच भारतीय बाजार में शनिवार को सोने के रेट में 270 रुपये की तेजी देखी गई थी . सोना 50,400 रुपये प्रति 10 ग्राम पर कारोबार करता रहा था . वहीं उससे पहले के सत्र में अंतिम बार सोना 600 रुपया सस्ता हुआ था . चांदी के रेट में कल 250 रुपये की गिरावट देखी गई थी .
भारत के स्वर्ण भंडार में भी भारी गिरावट
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का सिलसिला जारी रहने के बीच 23 सितंबर को खत्म हफ्ते में यह 8.134 अरब $ घटकर 537.518 अरब $ रह गया है . विदेशी मुद्रा भंडार इससे पिछले हफ्ते 5.2 अरब $ से अधिक घटकर 545.54 अरब $ रह गया था . केंद्रीय बैंक ने बोला कि समीक्षाधीन हफ्ते के दौरान एफसीए 7.688 अरब $ घटकर 477.212 अरब $ रह गया . $ के संदर्भ में एफसीए में विदेशी मुद्रा भंडार में रखे गए यूरो, पाउंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में वृद्धि या मूल्यह्रास का असर शामिल है . आंकड़ों के अनुसार, सोने के भंडार का मूल्य 30 करोड़ $ घटकर 37.886 अरब $ पर आ गया है .
सोना वायदा रेट में नरमी
सटोरियों के सौदों की संख्या घटाने से वायदा कारोबार में शुक्रवार को सोने की मूल्य 232 रुपये टूटकर 49,911 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गयी . मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में दिसंबर में आपूर्ति वाले अनुबंध का रेट 232 रुपये यानी 0.46 फीसदी की गिरावट के साथ 49,911 रुपये प्रति 10 ग्राम रह गया . इसमें 12,801 लॉट का कारोबार हुआ . बाजार विश्लेषकों ने बोला कि कारोबारियों के अपने सौदे में कमी किये जाने से सोना वायदा कीमतों में गिरावट आई . अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूयॉर्क में सोना 0.51 फीसदी की गिरावट के साथ 1,628.40 $ प्रति औंस पर रहा .
चांदी 666 रुपये फिसली
कमजोर हाजिर मांग के कारण कारोबारियों के अपने सौदे घटाये जाने से वायदा कारोबार में शुक्रवार को चांदी की मूल्य 666 रुपये फिसलकर 55,987 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई . मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में चांदी का दिसंबर डिलिवरी का रेट 666 रुपये यानी 1.18 फीसदी की गिरावट के साथ 55,987 रुपये प्रति किलोग्राम रही . इसमें 21,847 लॉट का कारोबार हुआ . अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्यूयॉर्क में चांदी 1.39 फीसदी की गिरावट के साथ 18.43 $ प्रति औंस के रेट पर रही .
Dollar Index Explained : डॉलर इंडेक्स का क्या है मतलब, इस पर क्यों नजर रखती है सारी दुनिया?
डॉलर इंडेक्स पर सारी दुनिया की नज़र रहती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है? है.
डॉलर इंडेक्स में भले ही 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है. (File Photo)
What is US Dollar Index and Why it is Important : रुपये में मजबूती की खबर हो या गिरावट की, ब्रिटिश पौंड अचानक कमजोर पड़ने लगे या रूस और चीन की करेंसी में उथल-पुथल मची हो, करेंसी मार्केट से जुड़ी तमाम खबरों में डॉलर इंडेक्स का जिक्र जरूर होता है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार की हलचल से जुड़ी खबरों में तो रेफरेंस के लिए डॉलर इंडेक्स का नाम हमेशा ही होता है. ऐसे में मन में यह सवाल उठना लाज़मी है कि करेंसी मार्केट से जुड़ी खबरों में इस इंडेक्स को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि डॉलर इंडेक्स आखिर है क्या?
डॉलर इंडेक्स क्या है?
डॉलर इंडेक्स दुनिया की 6 प्रमुख करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती या कमजोरी का संकेत देने वाला इंडेक्स है. इस इंडेक्स में उन देशों की मुद्राओं को शामिल किया गया है, जो अमेरिका के सबसे प्रमुख ट्रे़डिंग पार्टनर हैं. इस इंडेक्स शामिल 6 मुद्राएं हैं – यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना और स्विस फ्रैंक. इन सभी करेंसी को उनकी अहमियत के हिसाब से अलग-अलग वेटेज दिया गया है. डॉलर इंडेक्स जितना ऊपर जाता है, डॉलर को उतना मजबूत माना जाता है, जबकि इसमें गिरावट का मतलब ये है कि अमेरिकी करेंसी दूसरों के मुकाबले कमजोर पड़ रही है.
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डॉलर इंडेक्स में किस करेंसी का कितना वेटेज?
डॉलर इंडेक्स पर हर करेंसी के एक्सचेंज रेट का असर अलग-अलग अनुपात में पड़ता है. इसमें सबसे ज्यादा वेटेज यूरो का है और सबसे कम स्विस फ्रैंक का.
- यूरो : 57.6%
- जापानी येन : 13.6%
- कैनेडियन डॉलर : 9.1%
- ब्रिटिश पाउंड : 11.9%
- स्वीडिश क्रोना : 4.2%
- स्विस फ्रैंक : 3.6%
हर करेंसी के अलग-अलग वेटेज का मतलब ये है कि इंडेक्स में जिस करेंसी का वज़न जितना अधिक होगा, उसमें बदलाव का इंडेक्स पर उतना ही ज्यादा असर पड़ेगा. जाहिर है कि यूरो में उतार-चढ़ाव आने पर डॉलर इंडेक्स पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है.
डॉलर इंडेक्स का इतिहास
डॉलर इंडेक्स की शुरुआत अमेरिका के सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिजर्व ने 1973 में की थी और तब इसका बेस 100 था. तब से अब तक इस इंडेक्स में सिर्फ एक बार बदलाव हुआ है, जब जर्मन मार्क, फ्रेंच फ्रैंक, इटालियन विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है? लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियन फ्रैंक को हटाकर इन सबकी की जगह यूरो को शामिल किया गया था. अपने इतने वर्षों के इतिहास में डॉलर इंडेक्स आमतौर पर ज्यादातर समय 90 से 110 के बीच रहा है, लेकिन 1984 में यह बढ़कर 165 तक चला गया था, जो डॉलर इंडेक्स का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है. वहीं इसका सबसे निचला स्तर 70 है, जो 2007 में देखने को मिला था.
डॉलर इंडेक्स इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
डॉलर इंडेक्स में भले ही सिर्फ 6 करेंसी शामिल हों, लेकिन इस पर दुनिया के सभी देशों में नज़र रखी जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण करेंसी है. न सिर्फ दुनिया में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल ट्रेड डॉलर में होता है, बल्कि तमाम देशों की सरकारों के विदेशी मुद्रा भंडार में भी डॉलर सबसे प्रमुख करेंसी है. यूएस फेड के आंकड़ों के मुताबिक 1999 से 2019 के दौरान अमेरिकी महाद्वीप का 96 फीसदी ट्रेड डॉलर में हुआ, जबकि एशिया-पैसिफिक रीजन में यह शेयर 74 फीसदी और बाकी दुनिया में 79 फीसदी रहा. सिर्फ यूरोप ही ऐसा ज़ोन है, जहां सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय व्यापार यूरो में होता है. यूएस फेड की वेबसाइट के मुताबिक 2021 में दुनिया के तमाम देशों में घोषित विदेशी मुद्रा भंडार का 60 फीसदी हिस्सा अकेले अमेरिकी डॉलर का था. जाहिर है, इतनी महत्वपूर्ण करेंसी में होने वाला हर उतार-चढ़ाव दुनिया भर के सभी देशों पर असर डालता है और इसीलिए इसकी हर हलचल पर सारी दुनिया की नजर रहती है.