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निवेश और अर्थव्यवस्था

निवेश और अर्थव्यवस्था

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

भारत जीडीपी के संदर्भ में वि‍श्‍व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है । यह अपने भौगोलि‍क आकार के संदर्भ में वि‍श्‍व में सातवां सबसे बड़ा देश है निवेश और अर्थव्यवस्था और जनसंख्‍या की दृष्‍टि‍ से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधि‍त मुद्दों के बावजूद वि‍श्‍व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्‍वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्‍त करने की दृष्‍टि‍ से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्‍मूलन और रोजगार उत्‍पन्‍न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।

इति‍हास

ऐति‍हासि‍क रूप से भारत एक बहुत वि‍कसि‍त आर्थिक व्‍यवस्‍था थी जि‍सके वि‍श्‍व के अन्‍य भागों के साथ मजबूत व्‍यापारि‍क संबंध थे । औपनि‍वेशि‍क युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचा जाता निवेश और अर्थव्यवस्था था जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था । इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ए डी के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया । 1947 में भारत के स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात अर्थव्‍यवस्‍था की पुननि‍र्माण प्रक्रि‍या प्रारंभ हुई । इस उद्देश्‍य से वि‍भि‍न्‍न नीति‍यॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से कार्यान्‍वि‍त की गयी ।

1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे जि‍नमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है । सकल स्‍वदेशी उत्‍पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.निवेश और अर्थव्यवस्था 24 प्रति‍शत के रूप में बढ़ गयी ।

कृषि‍

कृषि‍ भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ है जो न केवल इसलि‍ए कि‍ इससे देश की अधि‍कांश जनसंख्‍या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्‍कि‍ इसलि‍ए भी भारत की आधी से भी अधि‍क आबादी प्रत्‍यक्ष रूप से जीवि‍का के लि‍ए कृषि‍ पर नि‍र्भर है ।

वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपायों के द्वारा कृषि‍ उत्‍पादन और उत्‍पादकता में वृद्धि‍ हुई, जि‍सके फलस्‍वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्‍त हुई । कृषि‍ में वृद्धि‍ ने अन्‍य क्षेत्रों में भी अधि‍कतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जि‍सके फलस्‍वरूप सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में और अधि‍कांश जनसंख्‍या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मि‍लि‍यन टन का एक रि‍कार्ड खाद्य उत्‍पादन हुआ, जि‍समें सर्वकालीन उच्‍चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्‍पादन हुआ । कृषि‍ क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रति‍शत प्रदान करता है ।

उद्योग

औद्योगि‍क क्षेत्र भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लि‍ए महत्‍वपूर्ण है जोकि‍ वि‍भि‍न्‍न सामाजि‍क, आर्थिक उद्देश्‍यों की पूर्ति के लि‍ए आवश्‍यक है जैसे कि‍ ऋण के बोझ को कम करना, वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्‍मनि‍र्भर वि‍तरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परि‍दृय को वैवि‍ध्‍यपूर्ण और आधुनि‍क बनाना, क्षेत्रीय वि‍कास का संर्वद्धन, गरीबी उन्‍मूलन, लोगों के जीवन स्‍तर को उठाना आदि‍ हैं ।

स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात भारत सरकार देश में औद्योगि‍कीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्‍टि‍ से वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपाय करती रही है । इस दि‍शा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगि‍क नीति‍ संकल्‍प की उदघोषणा करना है निवेश और अर्थव्यवस्था जो 1948 में पारि‍त हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारि‍त हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रति‍बंधों को हटाना, पहले सार्वजनि‍क क्षेत्रों के लि‍ए आरक्षि‍त, नि‍जी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनि‍श्‍चि‍त मुद्रा वि‍नि‍मय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि‍ के द्वारा महत्‍वपूर्ण नीति‍गत परि‍वर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्‍यधि‍क अपेक्षि‍त तीव्रता प्रदान की ।

आज औद्योगि‍क क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रति‍शत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रति‍शत अंशदान करता है ।

सेवाऍं

आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि‍ आधरि‍त अर्थव्‍यवस्‍था से ज्ञान आधारि‍त अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में परि‍वर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रति‍शत ( 1991-92 के 44 प्रति‍शत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक ति‍हाई है और भारत के कुल निवेश और अर्थव्यवस्था नि‍र्यातों का एक ति‍हाई है

भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्‍लेखनीय वैश्‍वि‍क ब्रांड पहचान प्राप्‍त की है जि‍सके लि‍ए नि‍म्‍नतर लागत, कुशल, शि‍क्षि‍त और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्‍ति‍ के एक बड़े पुल की उपलब्‍धता को श्रेय दि‍या जाना चाहि‍ए । अन्‍य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्‍यवसाय प्रोसि‍स आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परि‍वहन, कई व्‍यावसायि‍क सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधि‍त सेवाऍं और वि‍त्तीय सेवाऍं शामि‍ल हैं।

बाहय क्षेत्र

1991 से पहले भारत सरकार ने वि‍देश व्‍यापार और वि‍देशी नि‍वेशों पर प्रति‍बंधों के माध्‍यम से वैश्‍वि‍क प्रति‍योगि‍ता से निवेश और अर्थव्यवस्था अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति‍ अपनाई थी ।

उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परि‍वर्तित हो गया । वि‍देश व्‍यापार उदार और टैरि‍फ एतर बनाया गया । वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश सहि‍त वि‍देशी संस्‍थागत नि‍वेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लि‍ए जा रहे हैं । वि‍त्‍तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्‍य अन्‍य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्‍ति‍यों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।

आज भारत में 20 बि‍लि‍यन अमरीकी डालर (2010 - 11) का वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश हो रहा है । देश की वि‍देशी मुद्रा आरक्षि‍त (फारेक्‍स) 28 अक्‍टूबर, 2011 को 320 बि‍लि‍यन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बि‍लि‍यन अ.डालर की तुलना में )

भारत माल के सर्वोच्‍च 20 नि‍र्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्‍च 10 सेवा नि‍र्यातकों में से एक है ।

भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ने लगा विदेशी निवेशकों का भरोसा; लेकिन जोखिम भी बरकरार, क्‍या कह रहे सरकार के आंकड़े

देश की भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशी निवेशकों के बढ़ते विश्‍वास के चलते हालात बेहतर होने के संकेत हैं। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 13.6 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। जानें निवेश और अर्थव्यवस्था क्‍या है मौजूदा हालात.

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार की रिपोर्ट बतलाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ने लगा है। हालांकि वैश्विक उथल पुथल का दौर अभी थमा नहीं है। चीन की अर्थव्यवस्था भी जद्दोजहद कर रही है। अन्‍य पड़ोसी मुल्‍कों में भी हालात अच्‍छे नहीं हैं। इसका प्रभाव वैश्विक रूप से पड़ने की आशंकाएं हैं। यही नहीं विकसित देश भी अपनी अर्थव्‍यवस्‍था की मजबूती के लिए सख्‍त फैसले ले सकते हैं। इससे जोखिम भी बना हुआ है। पेश है मौजूदा तस्‍वीर बयां करती एक रिपोर्ट.

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एफपीआइ की तरफ से 2.9 अरब डालर का निवेश

वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा फिर से बढ़ने लगा है और अगस्त महीने की 12 तारीख तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) की तरफ से 2.9 अरब डालर का निवेश किया जा चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 13.6 अरब डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रहा जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 11.6 अरब डालर का विदेशी निवेश किया गया था।

भारत की अर्थव्यवस्था 6.6 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ेगी।

वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का माहौल

फरवरी आखिर में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का माहौल होने से निवेशक उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं से अपने पैसे निकालने लगे थे और भारत भी इससे प्रभावित हुआ था। वहीं, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सरकार का पूंजीगत व्यय 1.75 लाख करोड़ तक पहुंच गया जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 57 प्रतिशत अधिक है।

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विकास और महंगाई दोनों मोर्चों पर कम हुई चिंता

केंद्रीय वित्‍त मंत्रालय की तरफ से शुक्रवार को जारी जुलाई माह की आर्थिक रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के लिए अब विकास और महंगाई दोनों को लेकर चिंता कम हुई है। इसकी मुख्य वजह है कि गत जून से अगस्त माह निवेश और अर्थव्यवस्था में कच्चे तेल के दाम में अच्छी गिरावट हुई है। खुदरा महंगाई दर सात प्रतिशत से नीचे आ गई है और राजस्व संग्रह में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

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प्रभावित हो सकती है तेल और गैस की सप्लाई

हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक वजहों से अब भी जोखिम बरकरार है। सर्दी के मौसम में कच्चे तेल और गैस की सप्लाई प्रभावित हो सकती है। चीन की अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही है और इसका प्रभाव वैश्विक रूप से हो सकता है। दूसरी तरफ विकसित देश अपनी महंगाई को दो से तीन प्रतिशत तक कम करने के लिए ब्याज दरों को और बढ़ा सकते हैं जिससे आर्थिक विकास और कारपोरेट मुनाफा प्रभावित हो सकता है।

निवेश से जुड़ी उलझन

कारोबार तथा लोगों का आवागमन दोबारा पटरी पर लौटने से लगता है कि महामारी और उसके कारण लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से मांग में आई कमी से उत्पन्न स्थिति बीते एक वर्ष के दौरान काफी दुरुस्त हो गई है। इससे यह उम्मीद भी पैदा हुई कि अर्थव्यवस्था में निजी निवेश में सुधार होगा और वृद्धि में सुधार को भी मजबूती मिलेगी। हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था की बात करें तो महामारी के आगमन के पहले से ही वह निजी निवेश की कमी की समस्या से जूझ रही थी। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में सकल स्थायी पूंजी निर्माण यानी जीएफसीएफ कभी उस स्तर पर नहीं पहुंच पाया जिस स्तर पर वह 2000 के दशक के तेज वृद्धि वाले वर्षों में देखा गया था। परंतु इस रुझान में स्पष्ट सुधार तब देखने को मिला जबकि वास्तविक जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 2022-23 की पहली तिमाही में 34.7 फीसदी हो गई जबकि पिछले वर्ष की समान तिमाही में यह केवल 32.8 फीसदी थी। कुछ लोगों ने आशा जताई थी कि यह सुधार निजी मांग में हुई बढ़ोतरी की वजह से था। ऐसा इसलिए कि अंतिम निजी खपत की जीडीपी में ​हिस्सेदारी की बात करें तो वह भी पहली तिमाही में महामारी के पहले वाली तिमाही की तुलना में तकरीबन 10 प्रतिशत अ​धिक थी। इसके बावजूद एक सहज स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि जीडीपी के हिस्से के रूप में सरकारी व्यय में गिरावट को लेकर यह प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।

निजी मांग का ग​णित काफी अहम है क्योंकि जब तक कंपनियों को अर्थव्यवस्था में मांग की वापसी नहीं नजर आती है तब तक वे भी निवेश के अहम प्रयास नहीं करतीं। इसके अलावा घरेलू मांग की वास्तविक राह को लेकर आगे दिख रही अनि​श्चितता की बात करें तो यह स्पष्ट है कि वै​श्विक वृद्धि के सामने भी तमाम विपरीत चुनौतियां रहेंगी। महामारी के दौरान आपूर्ति क्षेत्र की बाधाओं के कारण जिस तरह तैयार माल के भंडार बन गए थे, सबसे पहले उनको निपटाना होगा। कई बड़े कारोबारी ब्लॉक अभी भी महामारी के पहले जैसा आयात नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा वृद्धि अनुमानों में कमी और बढ़ती मुद्रास्फीति की वजह से इस बात की काफी संभावना है कि भविष्य की वै​श्विक मांग समय पर न सुधर सके और शायद वह उस स्तर तक न आ सके जैसा कि भारतीय निर्यातक चाहते हैं। उम्मीद है कि अनुमान से कम मांग का असर कीमतों पर भी पड़ेगा और वै​श्विक आय में कमी आएगी। ऐसे में कंपनियों को निवेश का प्रोत्साहन कहां से मिलेगा।

सरकार वृद्धि में सुधार के लिए निजी निवेश के महत्त्व को समझती है। उसे यह भी पता है कि सरकारी व्यय और निवेश की बदौलत वृद्धि को बहुत लंबे समय तक बढ़ावा नहीं दे सकती है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में उद्योगपतियों से पूछा कि आ​खिर क्यों कॉर्पोरेट करों में कमी करने और उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना यानी पीएलआई समेत वि​भिन्न प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत के बाद भी निजी क्षेत्र का निवेश कम था। इस सवाल के जवाब का एक हिस्सा तो यह है कि निस्संदेह इसकी एक वजह अनि​श्चितता भी है। बहरहाल, विनिर्माण क्षेत्र में पूंजी का इस्तेमाल अब पहले की तुलना में बेहतर हो रहा है। 2021-22 की अंतिम तिमाही में यह 75 प्रतिशत का स्तर पार कर गया जिससे उम्मीद पैदा होती है। बैंक तथा कॉर्पोरेट घरानों की बैलेंस शीट में भी बीती कुछ​ तिमाहियों में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिल रहा है। मध्यम से लंबी अव​धि में निजी निवेश में भी सुधार के लिए अनुकूल माहौल बन रहा है। अगर ऋण का स्तर और क्षमता का इस्तेमाल दोनों अगली कुछ तिमाहियों तक इसी रुझान में बने रहे तो यह सुधार दिख सकता है। घरेलू और वै​श्विक अर्थव्यवस्था में टिकाऊ वृद्धि का अनुमानित स्तर अब सबसे अहम कारक होगा। सरकार को अब नीतिगत नि​​श्चिंतता का माहौल बनाने का प्रयास करना चाहिए।

निवेश के लिए भारत सबसे अच्छी जगह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि खासकर कोविड-19 के बाद भारत वैश्विक निवेशकों के लिए सबसे अच्छी जगह बन गया है और आपूर्ति श्रृंखला में भारत एक विश्वसनीय खिलाड़ी है। उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कर्नाटक के वैश्विक निवेशक सम्मेलन (जीआईएम) के उद्घाटन समारोह में कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत तेजी से वृद्धि कर रहा है और वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखता है।

मोदी ने कहा, 'भारत में निवेश का मतलब सबके लिए समावेशी धारणा में, लोकतंत्र में और दुनिया के साथ एक बेहतर, स्वच्छ और सुरक्षित ग्रह के लिए निवेश करना है। निवेशकों को लालफीताशाही में फंसाने के बजाय हमने निवेश के लिए काफी उपयुक्त माहौल बनाया।’ उन्होंने 9-10 साल पहले की स्थिति का जिक्र किया जब देश नीति और क्रियान्वयन के मुद्दों से जूझ रहा था। मोदी ने कहा, 'नए जटिल कानून बनाने के बजाय हमने उन्हें तर्कसंगत बनाया।

भारत को पिछले साल रिकॉर्ड स्तर पर 84 अरब डॉलर का विदेशी निवेश मिला था। अनिश्चित समय में अधिकांश देश भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों के बारे में आश्वस्त हैं। भारत दुनिया के साथ आगे बढ़ रहा है और उसके साथ काम कर रहा है। उन्होंने कहा, ‘भारत आपूर्ति श्रृंखला में बाधा के दौर में दवाओं और टीकों की आपूर्ति के बारे में दुनिया को आश्वस्त कर सकता है।’

मोदी ने कहा कि वैश्विक संकट में भी विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों ने एक उम्मीदों वाली जगह के रूप में भारत को सराहा है। उन्होंने कहा, 'हम हर गुजरते दिन के साथ भारत की अर्थव्यवस्था को और मजबूत करने के लिए अपनी बुनियाद को मजबूत करने निवेश और अर्थव्यवस्था की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।’

प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार ने जो सुधार किए हैं उनमें जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर), आईबीसी (दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता), बैंकिंग सुधार, यूपीआई (एकीकृत भुगतान इंटरफेस) और 1,500 पुराने कानूनों को समाप्त करना और 40 हजार अनावश्यक अनुपालन शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि कंपनी कानून के कई प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, ऑनलाइन आकलन, एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) के लिए नए रास्ते, ड्रोन नियमों को उदार बनाने जैसे कदमों के साथ ही, भू-स्थानिक, अंतरिक्ष क्षेत्र और रक्षा निवेश और अर्थव्यवस्था क्षेत्र जैसे कदम अभूतपूर्व ऊर्जा ला रहे हैं। मोदी ने कहा कि पिछले आठ वर्षों में परिचालन वाले हवाईअड्डों की संख्या दोगुनी हो गई है और 20 से अधिक शहरों में मेट्रो का विस्तार हुआ है।

पीएम-गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर योजना का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि इसका उद्देश्य एकीकृत बुनियादी ढांचे का विकास करना है। उन्होंने बताया कि न केवल बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बल्कि मौजूदा बुनियादी ढांचे के लिए भी एक रोडमैप तैयार किया जाता है, जबकि योजना को लागू करने में सबसे सक्षम तरीके निवेश और अर्थव्यवस्था पर चर्चा की जाती है। मोदी ने सुदूर इलाके तक कनेक्टिविटी स्थापित कर उत्पाद या सेवा को विश्वस्तरीय बनाकर इसे और बेहतर बनाने के तरीकों पर जोर दिया।

उन्होंने कहा कि कारोबारी सुगमता के मामले में कर्नाटक को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। उन्होंने रेखांकित किया, ‘फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से 400 यहां हैं और भारत के 100 से अधिक यूनिकॉर्न में से 40 से अधिक कर्नाटक में हैं।’

इस सम्मेलन का मकसद निवेशकों को आकर्षित करना और अगले दशक के लिए विकास एजेंडा स्थापित करना है। कार्यक्रम में कुमार मंगलम बिड़ला, सज्जन जिंदल और विक्रम किर्लोस्कर सहित कुछ शीर्ष उद्योगपतियों ने हिस्सा लिया।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि बेंगलूरु में होने वाले इस आयोजन में पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश आएगा। सरकार ने यह भी कहा कि उसे उम्मीद है कि निवेश पूरा होने पर पांच लाख से अधिक रोजगार के मौके सृजित होंगे।

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ा, नवंबर के पहले हफ्ते में निवेश किए 15,280 करोड़ रुपए

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) की तरफ से नीतिगत दरों में बढ़ोतरी को लेकर नरम रहने की उम्मीद में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजारों में जमकर खरीदारी की.

दो महीनों तक भारतीय बाजारों से निकासी करने वाले विदेशी निवेशकों (FPI) ने नवंबर के पहले हफ्ते में जोरदार वापसी करते हुए घरेलू इक्विटी बाजारों में 15,280 करोड़ रुपए मूल्य के शेयरों की खरीद की है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) की तरफ से नीतिगत दरों में बढ़ोतरी को लेकर नरम रहने की उम्मीद में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजारों में जमकर खरीदारी की.

कोटक सिक्योरिटीज के इक्विटी रिसर्च (रिटेल) प्रमुख श्रीकांत चौहान ने कहा कि फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPI) का प्रवाह निकट समय में मौद्रिक सख्ती को देखते हुए उतार-चढ़ाव से भरा रह सकता है. इसके साथ ही जियो-पॉलिटिकल चिंताएं भी एक कारक बन सकती है.

लगातार दो महीने निकासी के बाद की खरीदारी

डिपॉजिटरी से मिले आंकड़ों के मुताबिक, FPI ने 1 से 4 नवंबर के बीच भारतीय इक्विटी बाजारों में 15,280 करोड़ रुपए का निवेश किया. इसके पहले एफपीआई ने अक्टूबर में भारतीय बाजारों से 8 करोड़ रुपए और सितंबर में 7,624 करोड़ रुपए निकासी की थी.

इसके पहले FPI ने अगस्त में 51,200 करोड़ रुपए और जुलाई में करीब 5,000 करोड़ रुपए मूल्य के शेयरों की खरीदारी की थी. उसके पहले के 9 महीनों तक एफपीआई लगातार बिकवाल बने हुए थे. इस तरह इस साल अब तक एफपीआई भारतीय बाजारों से कुल 1.53 लाख करोड़ रुपए की निकासी कर चुके हैं.

एक्सपर्ट्स की राय

सैंक्टम वेल्थ के प्रोडक्ट एंड सॉल्यूशंस को-हेड मनीष जेलोका ने कहा, नवंबर के पहले हफ्ते में FPI की तगड़ी मौजूदगी का कारण फेडरल रिजर्व की तरफ से नरमी दिखाने की उम्मीद रहा है.

जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के चीन इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजिस्ट वी के विजयकुमार ने कहा, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड और डॉलर के मजबूत होने के समय में भी भारतीय बाजार में FPI का खरीदारी करना एक महत्वपूर्ण पहलू है. यह भारतीय अर्थव्यवस्था में एफपीआई के विश्वास को दर्शाता है.

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