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दीर्घकालीन वित्त के स्रोत

दीर्घकालीन वित्त के स्रोत

दीर्घकालीन स्रोत क्या है?

इसे सुनेंरोकेंवित्त के स्थायी या दीर्घकालीन स्रोत ( Fixed or long term sources ) 1. साधारण अंश या समता अंश ( Ordinary fraction )- समता अंश वे हैं जिनके धारकों को कंपनी के संचालन की सामान्य जोखिम को उठाना होता है। संचित लाभ को कंपनी अपनी पूंजी के रूप में प्रयोग कर लेती है।

दीर्घकालीन वित्त का योग क्या है?

इसे सुनेंरोकेंदीर्घकालीन वित्त का आशय (Meaning of Long term finance) दीर्घकालीन वित्त से आशय औद्योगिक उपक्रम अथवा कम्पनी की ऐसी वित्तीय आवश्यकताओं से है जिनके लिए कम से कम 7 वर्ष से लेकर 10 वर्ष या अधिक अवधि के लिए वित्त का प्रबन्ध करता है ।

अल्पावधि वित्त क्या है अल्पावधि वित्त के स्रोत का उल्लेख करें?

इसे सुनेंरोकेंवित्त से तात्पर्य उस नकद या ऋण की राशि की व्यवस्था से हैं जो संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। प्रोफेसर कुच्छल के अनुसार – “वित्त एक प्रक्रिया है जो संचित कोषों को उत्पादक उपयोगों में परिवर्तित करती है।”

दीर्घकालीन प्रबंधन क्या है?

इसे सुनेंरोकेंदीर्घकालीन प्रबंधन का उद्देश्य संभावित आपदा के प्रभाव को कम करना होता है । सुरक्षित स्थान पर पहुँचने के बाद भोजन तथा पेयजल , बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था , महामारी से बचने के लिए गर्म जल , गर्म भोजन , आकस्मिक प्रबंधन का ही हिस्सा है ।

व्यवसाय को धन की आवश्यकता क्यों है?

इसे सुनेंरोकेंकिसी भी व्यवसाय के लिए धन की आवश्यकता मुख्यत संपत्ति के क्रय, विभिन्न दैनिक खर्चों के भुगतान, उत्पादन एवं बिक्री के बीच के समय की पूर्ति तथा अचानक होने वाले व्ययों की पूर्ति के लिए होती है।

इसे सुनेंरोकेंवित्त के स्थायी या दीर्घकालीन स्रोत ( Fixed or long term sources ) 1. साधारण अंश या समता अंश ( Ordinary fraction )- समता अंश वे हैं जिनके धारकों को कंपनी के संचालन की सामान्य जोखिम को उठाना होता है। इन अंशों के धारकों कंपनी के प्रबंध एवं संचालन को नियमित एवं नियंत्रित करने का अधिकार होता है।

अल्पकालीन वित्त की क्या आवश्यकता होती है?

इसे सुनेंरोकेंअल्पकालीन वित्त की आवश्यकता कच्चे माल के क्रय, मज़दूरी, किराया, बीमा, बिजली एवं जल के बिल, आदि का भुगतान करने के लिए होती है। अल्पकालीन वित्त की आवश्यकता एक वर्ष या इससे कम के लिये होती है। ऐसी अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकता को कार्यशील पूँजी या चक्रशील पूँजी कहते हैं।

दीर्घकालिक विकास क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसंरचनात्मक सुधार का आशय ऐसे दीर्घकालिक उपायों से होता है, जिनके सहारे अर्थव्यवस्था की कुशलता में वृद्धि की जाती है एवं अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों की अनम्यताओं को दूर कर उसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा क्षमता को बढ़ाया जाता है।

दीर्घकालीन वित्तीय योजना को क्या कहते हैं?

इसे सुनेंरोकें3. दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन एक व्यवसाय में पाँच वर्ष अथवा अधिक अवधि के लिए बनाई गई वित्तीय योजना दीर्घकालीन वित्तीय योजना कहलाती है। दीर्घकालीन वित्तीय योजना विस्तृत दृष्टिकोण पर आधारित योजना होती है जिसमें संस्था के सामने आने वाली दीर्घकालीन समस्याओं के समाधान हेतु कार्य किया जाता है।

अल्पकालीन स्थिति क्या है?

इसे सुनेंरोकेंइसमेंं सहायता रोकड़ के रूप में ना होकर अग्रिम माल के रूप मेंं की जाती है। अल्पकालीन वित्त का यह सबसे प्रचलित स्रोत है। ऋण एवं अग्रिम (loan and advances)- इसके अंतर्गत बैंक द्वारा व्यवसायी को एक निश्चित धनराशि एक निश्चित समयावधि में वापसी की शर्त पर प्रदान की जाती है। इसमें ली गई राशि पर ब्याज भी देय होता है।

दीर्घकालीन वित्त के स्रोत

वित्त के स्थायी या दीर्घकालीन स्रोत ( Fixed or long term sources )

1. साधारण अंश या समता अंश ( Ordinary fraction )- समता अंश वे हैं जिनके धारकों को कंपनी के संचालन की सामान्य जोखिम को उठाना होता है। इन अंशों के धारकों कंपनी के प्रबंध एवं संचालन को नियमित एवं नियंत्रित करने का अधिकार होता है।

2. पूर्वाधिकार अंश ( Preference share )- उन अंशों से हैं, जिन पर अंश धारियों को एक निश्चित दर से प्रतिवर्ष लाभांश पाने का अधिकार होता है तथा समापन के समय पूंजी की वापसी का पूर्व अधिकार होता है।

3. ऋण पत्र ( Loan letter )- ऋण पत्र कंपनी के सार्वमुद्रा के अधीन जारी एक ऐसा प्रलेख है जो कंपनी पर ऋण को प्रमाणित करता है तथा ऋण की प्रमुख शर्तों को प्रकट करता है।

4. अर्जित आय का पुनः निवेश ( Re-invested income )- कम्पनी या संस्था लाभ का एक भाग भविष्य की आवश्यकता के लिए संचय करके रख लेती है। संचित लाभ को कंपनी अपनी पूंजी के रूप में प्रयोग कर लेती है। उसे अर्जित आय का पुनः निवेश कहते हैं।

5. विशिष्ट वित्तीय संस्थाएं ( Specific financial institutions )– राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर अनेक वित्तीय संस्थाएं हैं जो व्यवसायिक संस्थाओं को अनेक प्रकार की वित्तीय साधन उपलब्ध करा रही है। जैसे भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक आदि।

6. लीज पट्टे पर वित्त- इसमें वित्त नकद रूप में प्राप्त, नहीं होता है बल्कि मशीन उपकरण या अन्य पूंजी संपत्ति के रूप में प्राप्त होता है।

दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन वित्त के स्रोत - Sources of long term and short term finance

दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन वित्त के स्रोत - Sources of long term and short term finance

एक व्यावसायिक उपक्रम में विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। व्यवसाय की वित्तीय आवश्यकताओं को समय के आधार पर दीर्घकालीन वित्त के स्रोत तीन वर्गो में बाँटा जाता है। दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताएँ, मध्यकालीन वित्तीय आवश्यकताएँ तथा अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताएँ। समय अवधि के आधार पर वित्तीय आवश्यकताएँ का यह वर्गीकरण जितना सरल दिखायी देता है व्यवहार में उतना ही जटिल है। सभी व्यवसायों के लिए स्पष्ट रूप से यह कहना बड़ा कठिन है कि कौन सी वित्तीय आवश्यकताएँ अल्पकालीन है तथा कौन सी आवश्यकताएँ दीर्घकालीन । अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं के मध्य विभाजन रेखाएँ खीचना बड़ा कठिन है परंतु इसके बावजूद भी अधिकांश प्रबंधक वित्तीय आवश्यकताओं के बारे में कुछ मात्रा में सहमत हैं।

सामान्यतः एक व्यवसाय के लिए एक वर्ष अथवा उससे कम अवधि वाली वित्तीय आवश्यकताओं को अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताएँ कहा जाता हैं। एक वर्ष से अधिक परंतु पाँच वर्ष से कम अवधि तक की आवश्यकताओं को मध्यकालीन वित्तीय आवश्यकताएँ कहते हैं तथा पाँच वर्ष से अधिक अवधि के लिए आवश्यक वित्तीय आवश्यकताओं को दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताएँ कहते हैं।

• दीर्घकालीन वित्त के स्रोत - दीर्घकालीन वित्त के स्त्रोतों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। प्रथम स्वामीगत साधन तथा, द्वितीय ऋणगत साधन । स्वामीगत साधन व साधन होते हैं

जो व्यवसाय के स्वामियों द्वारा उपलब्ध करवाये जाते है। स्वामीगत साधनों में समता अंश, पूर्वाधिकारी अंश तथा प्रतिधारित अर्जने शामिल होती है। इस प्रकार ऋणगत साधन वे साधन होते हैं, जिनके अंतर्गत एक व्यवसाय ऋण के रूप में दीर्घकालीन साधन ऋणदाताओं से प्राप्त करता है। ये साधन ऋण पत्र बाँड अथवा दीर्घकालीन ऋण के रूप में होते है।

• अंश : संयुक्त स्कंध कंपनियों की स्वामित्व पूँजी अंशों में विभक्त होते हैं। कंपनी अपनी स्वामित्व पूँजी अंशों के निर्गमन द्वारा प्राप्त करनती है। पूँजी का वह आनुपातिक भाग जिसका प्रत्येक सदस्य अधिकारी होता है, अंश कहलाती है। विभिन्न पूर्णदत्त अंशों की एकत्रित रकम को स्कंध की संज्ञा दी जाती है। स्कंध को राशि को छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जा सकता है। इस रूप में हम यह कह सकते हैं

कि अंश स्वामित्व की दीर्घकालीन वित्त के स्रोत एक इकाई है, जिसका धारक कंपनी का आंशिक स्वामी होता है। स्वामित्व का प्रतिनिधित्व अंश प्रमाण पत्र द्वारा होता है। अंश के आबंटन के पश्चात् प्रत्येक अंशधारी को, जिसे अंश आंबटित किए गए है अंश की संख्या उनके क्रमांश तथा उनका अंकित मूल्य लिखा रहता है। अंशों के निर्गमन से प्राप्त अंश पूँजी की कुछ विशेषताएँ होती है जिनकी वित्तीय प्रबंधकों को जानकारी होनी चाहिए। अंश पूँजी कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार है:

1. स्थायी पूँजी की प्राप्ति नहीं होती

2. लाभांश देने की अनिवार्यता नहीं होती है,

3. संपत्ति को बंधक रखने की आवश्यकता नहीं होती,

4. कंपनी के जीवन काल में धन वापसी नहीं करनी होती,

5. कंपनी के समापन पर समस्त देनदारियों के भुगतान के बाद धन की वापसी का प्रवधान होता है,

6. अंशधारियों को अपने अंश बेचने का अधिकार होती है,

7. आय में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार समाहित होती है।

8. कंपनी के प्रबंध का अधिकार प्राप्त होती है,

9. प्रत्येक अंशधारी का दायित्व अपने द्वारा क्रय किए गए अंशों अंकित मूल्य तक सीमित रहता है तथा

10. कंपनियों द्वारा विभिन्न प्रकार के विनियोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के अंश निर्गमित किए जाते है।

• ऋण पूँजी : व्यावसायिक उपक्रमों के विस्तार के साथ-साथ उनकी वित्तीय आवश्यकताएँ बढ़ती जाती है, जिनकी पूर्ति स्वामित्व पूँजी के अतिरिक्त ऋण पूँजी द्वारा भी की जाती है। यह पूँजी ऋणदाताओं द्वारा प्रदत्त होने के कारण ऋण पूँजी कहलाती है। ऋण पूँजी से साधन कंपनी की अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राप्त किए जा सकते है। अल्पकालीन ऋण कार्यशील पूँजी के उस भाग की पूर्ति करते है, जिसकी प्रकृति मौसमी होती है। अल्पकालीन ऋण व्यापारिक बैंकों, साहूकारों आदि से प्राप्त किए जाते है। दीर्घकालीन ऋण लंबी अवधि के लिए प्राप्त किए जाते हैं तथा इनसे स्थायी पूँजी एवं कार्यशील पूँजी के स्थायी भाग की वित्तीय व्यवस्था की जाती है। ये ऋण प्रायः ऋणपत्र अथवा बंधक निर्गमित करके प्राप्त किए जाते है। इसलिए उन्हें निधित ऋण कहते है।

ऋण पूँजी चाहे अल्पकालीन साधनों से प्राप्त की जाए अथवा दीर्घकालीन साधनों से प्राप्त की जाए उसकी एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि उस पर निश्चित दर से ब्याज चुकाने तथा ऋण के परिपक्क होने पर उसके शोधन का दायित्व उत्पन्न होता है। आज किसी संस्था के लिए ऋण लेना उसकी कमजोर वित्तीय स्थिति का परिचालक नहीं माना जाता है बल्कि ऋण लेकर व्यवसाय को सफलतापूर्वक संचालित करना वित्तीय प्रबंधक कीकुशलता का प्रतीक माना जाता है।

एक कंपनी की वित्तीय व्यवस्था में ऋण लेने का प्रमुख उद्देश्य अपने प्रबंध में बाहय लोगों को अधिकार दिए बगैर अधिक पूँजी प्राप्त करना होता है जिससे कंपनी के सदस्यों की आय में वृद्धि की जा सके। कंपनी की ऋण लेने की क्षमता उसकी स्वयं की आर्थिक स्थित, ऋणदाताओं में उसके प्रति विश्वास, पूँजी बाजार की दशा आदि तत्वों पर निर्भर करती है। आज सभी व्यावसायिक कंपनियाँ अपनी पूँजी का एक भाग स्वामीगत प्रतिभूतियों से प्राप्त करके शेष भाग ऋण पूँजी से प्राप्त करती है।

GYANGLOW

किसी व्यवसाय के वित्त पोषण के स्रोत का उस समय अवधि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है जिसके लिए धन की आवश्यकता होती है।

आपने अगले व्यावसायिक विचार के बारे में सोचा है जिसे आप लॉन्च करना चाहते हैं? बधाई हो! लेकिन क्या आपके व्यवसाय के लिए वित्त के स्रोत आपको रात में जगाए रखते हैं? आपकी उद्यमशीलता की यात्रा में, धन का स्रोत खोजना शायद सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू है। जैसा कि प्रसिद्ध कहावत है, पैसा बनाने के लिए आपको पैसे की जरूरत होती है। इसलिए, प्रारंभिक पूंजी खोजना महत्वपूर्ण है और आपके व्यवसाय के पूरे पाठ्यक्रम को बदल सकता है।

इसी तरह, आपके व्यवसाय के परिचालन खर्चों को पूरा करने के लिए भी धन की आवश्यकता होगी। जब तक आप व्यवसाय के लिए वित्त के स्रोत के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं, तब तक व्यवसाय विचार, चाहे दीर्घकालीन वित्त के स्रोत वह कितना भी अच्छा क्यों न हो, विफल हो सकता है।

इसलिए, अन्य कार्रवाई योग्य कदम उठाने से पहले वित्त के विभिन्न स्रोतों को समझना जिन्हें आप टैप कर सकते हैं, एक अच्छा प्रारंभिक बिंदु है। वित्त के स्रोत विभिन्न तरीकों से हो सकते हैं: शुद्ध इक्विटी, ऋण, ऋण और इक्विटी का मिश्रण, कार्यशील पूंजी ऋण, ऋण पत्र सुविधाएं, आदि। लेकिन आप सोच रहे होंगे: आप कैसे तय करते हैं कि वित्त का कौन सा स्रोत सबसे अच्छा है आपकी आवश्यकताओं के अनुकूल?

व्यवसाय के लिए धन की व्यवस्था कैसे करें?

वित्त के सही स्रोत का चयन करने का निर्णय कई कारकों पर निर्भर करता दीर्घकालीन वित्त के स्रोत है। सबसे महत्वपूर्ण, किसी भी वित्तपोषण को चुकाने या सुनिश्चित रिटर्न का वादा करने के लिए कंपनी की वित्तीय ताकत और क्षमता। यदि कंपनी की वित्तीय स्थिति स्थिर नहीं है, तो वित्त के सही स्रोत को आकर्षित करना एक चुनौती है। दूसरे, व्यवसाय के पैमाने के बावजूद, कंपनी के जोखिम प्रोफाइल के साथ-साथ वित्त के स्रोत का आकलन करना महत्वपूर्ण है जिस पर वह विचार कर रहा है। वित्त के विशिष्ट स्रोत भी कंपनी की साख को प्रभावित कर सकते हैं। यदि कोई कंपनी सुरक्षित डिबेंचर जारी करके खुद को वित्त देना चाहती है, तो यह असुरक्षित लेनदारों को प्रभावित कर सकती है जो क्रेडिट की एक और लाइन का विस्तार करने के इच्छुक नहीं हो सकते हैं।

वित्त के विभिन्न स्रोत

वर्गीकरण के मानदंड के आधार पर, वित्त के विभिन्न स्रोत उपलब्ध प्रतीत होते हैं। वर्गीकरण के लिए मानक मानदंड समय, स्रोत और स्वामित्व हैं। सही चुनाव करने के लिए प्रत्येक स्रोत को अच्छी तरह से समझना आवश्यक है।

दीर्घकालिक और अल्पकालिक वित्त क्या है?

समय के आधार पर स्रोतों को दीर्घकालीन, अल्पकालीन और मध्यम अवधि के वित्त में विभाजित किया जा सकता है। वित्त के दीर्घकालिक स्रोत एक वर्ष के भीतर चुकाए नहीं जाते हैं और अक्सर कंपनी की संस्थापक पूंजी का हिस्सा बन जाते हैं।

वित्त के दीर्घकालिक स्रोत विशेष रूप से तब उपयोगी होते हैं जब व्यवसाय बड़े पैमाने पर और विस्तार करना चाह रहा हो। इक्विटी, सावधि ऋण और उद्यम पूंजी सभी वित्त के दीर्घकालिक स्रोतों के उदाहरण हैं। वित्त के दीर्घकालिक स्रोतों को या तो कंपनी के स्वामित्व से जोड़ा जा सकता है (जैसा कि इक्विटी या उद्यम पूंजी के मामले में होता है) या एक ऋण (सावधि ऋण) या दोनों का मिश्रण। लंबी अवधि के वित्त के लिए जाने का लाभ यह है कि इसके माध्यम से बड़ी मात्रा में धन जुटाया जा सकता है।

वित्त का एक अल्पकालिक स्रोत आम तौर पर एक वर्ष या उससे कम के भीतर चुकाने योग्य होता है। अल्पकालिक वित्त प्राप्त करने के पीछे प्राथमिक उद्देश्य धन में किसी भी अस्थायी कमी को पूरा करना है। हालाँकि, अल्पकालिक वित्त की बाधा सीमित मात्रा में धन है जिसे उठाया जा सकता है। व्यापार ऋण और वाणिज्यिक पत्र वित्त के अल्पकालिक स्रोत के अच्छे उदाहरण हैं।

मध्यम अवधि के वित्त से तात्पर्य उस फंडिंग से है, जिसे एक वर्ष के बाद चुकाया जाता दीर्घकालीन वित्त के स्रोत है, लेकिन कर्ज लेने के पांच साल पूरे होने से पहले। वाणिज्यिक बैंकों और वित्तीय संस्थानों से सावधि ऋण उधार मध्यम अवधि के वित्त के विशिष्ट उदाहरण हैं।

वित्त जुटाने के रास्ते पीढ़ी के स्रोत पर भी निर्भर हो सकते हैं। इन्हें आगे वित्त के आंतरिक और बाहरी स्रोतों में विभाजित किया जा सकता है। वित्त के आंतरिक स्रोत व्यवसाय के भीतर उत्पन्न होते हैं - इसका सबसे सामान्य उदाहरण किसी कंपनी द्वारा किया गया लाभ है। इसके विपरीत, वित्त के बाहरी स्रोत कंपनी के बाहर हैं - ये उधारदाताओं से उधार या निवेशकों द्वारा प्रदान किए गए धन हो सकते हैं। वित्त के आंतरिक और बाहरी स्रोत, प्राप्त वित्त पोषण के अन्य स्रोतों के पूरक हो सकते हैं।

स्वामित्व के आधार पर:

स्वामित्व के आधार पर, वित्त या तो स्वामित्व में हो सकता है या उधार लिया जा सकता है। वित्त के सभी आंतरिक स्रोत स्वामित्व में हैं, जबकि कोई भी बाहरी स्रोत उधार लिया गया वित्त है।

वित्त के वैकल्पिक स्रोत

ऊपर वित्त के विभिन्न स्रोतों को देखने के बाद, उपलब्ध वित्त के विभिन्न वैकल्पिक स्रोतों पर एक नज़र डालना उपयोगी होगा। आज के युग में, एक नया और आगामी व्यवसाय पारंपरिक स्रोतों से परे जा सकता है और वित्त के वैकल्पिक स्रोतों जैसे कि क्राउडफंडिंग, पीयर टू पीयर लोन, पेंशन समर्थित ऋण और प्रारंभिक चरण के ऋण का पता लगा सकता है। बेशक, वित्त पोषण के किसी भी स्रोत को उस देश की कानूनी और नियामक आवश्यकताओं का पालन करना चाहिए जहां इस तरह के वित्तपोषण की मांग की जाती है।

वित्त के दीर्घकालिक और अल्पकालिक स्रोत आम तौर पर उपलब्ध अन्य विकल्पों की तुलना में व्यवसाय के वित्तपोषण का सबसे पसंदीदा स्रोत हैं। व्यवसाय की सटीक जरूरतों और कंपनी की वित्तीय ताकत के आधार पर, वित्त के दीर्घकालिक और अल्पकालिक स्रोतों के साथ आगे बढ़ने से आपके बेहतर होने की संभावना है। लेकिन अगर पारंपरिक स्रोतों से चिपके रहना आपको उत्साहित नहीं करता है, तो धन के वैकल्पिक स्रोतों की एक दुनिया है जिसे आप तलाश सकते हैं।

Financial Sources

1. साधारण अंश या समता अंश ( Ordinary fraction )- समता अंश वे हैं जिनके धारकों को दीर्घकालीन वित्त के स्रोत कंपनी के संचालन की सामान्य जोखिम को उठाना होता है। इन अंशों के धारकों कंपनी के प्रबंध एवं संचालन को नियमित एवं नियंत्रित करने का अधिकार होता है।

2. पूर्वाधिकार अंश ( Preference share )- उन अंशों से हैं, जिन पर अंश धारियों को एक निश्चित दर से प्रतिवर्ष लाभांश पाने का अधिकार होता है तथा समापन के समय पूंजी की वापसी का पूर्व अधिकार होता है।

3. ऋण पत्र ( Loan letter )- ऋण पत्र कंपनी के सार्वमुद्रा के अधीन जारी एक ऐसा प्रलेख है जो कंपनी पर ऋण को प्रमाणित करता है तथा ऋण की प्रमुख शर्तों को प्रकट करता है।

4. अर्जित आय का पुनः निवेश ( Re-invested income )- कम्पनी या संस्था लाभ का एक भाग भविष्य की आवश्यकता के लिए संचय करके रख लेती है। संचित लाभ को कंपनी अपनी पूंजी के रूप में प्रयोग कर लेती है। उसे अर्जित आय का पुनः निवेश कहते हैं।

5. विशिष्ट वित्तीय संस्थाएं ( Specific financial institutions ) – राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर अनेक वित्तीय संस्थाएं हैं जो व्यवसायिक संस्थाओं को अनेक प्रकार की वित्तीय साधन उपलब्ध करा रही है। जैसे भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, भारतीय औद्योगिक निवेश बैंक आदि।

6. लीज पट्टे पर वित्त- इसमें वित्त नकद रूप में प्राप्त, नहीं होता है बल्कि मशीन उपकरण या दीर्घकालीन वित्त के स्रोत अन्य पूंजी संपत्ति के रूप में प्राप्त होता है।

7. अन्य स्रोत ( Other sources )

  1. विदेशों से ऋण
  2. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश
  3. विदेशी वित्तीय संस्थाएं
  4. निवेश ट्रस्ट या प्रन्यास
  5. सहयोग निधियां

अल्पकालीन वित्त के स्रोत ( Short term finance sources )

1. सार्वजनिक निक्षेप या जमाएं ( Public deposits or deposits )- एकाकी व्यापार या साझेदारी संस्थाएं केवल अपने संबंधियों से ही व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए जमाएं स्वीकार कर सकते हैं तथा केवल निजी कार्यों के लिए ही जन सामान्य से जमाएं स्वीकार कर सकते हैं।

2. व्यापारिक ऋण या साख ( Trade credit or credit ) –

  • चालू उधार खाता – कुछ स्थायी ग्राहक होते हैं। वह माल दीर्घकालीन वित्त के स्रोत क्रय करते हैं। ऐसी दशा में उनके खातों में एक निश्चित राशि का माल उधार बेचने की शर्त हो सकती है। उधार की राशि की सीमा का निर्धारण क्रेता की आर्थिक स्थिति एवं भुगतान प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर किया जाता है।
  • विनिमय विपत्र – – विक्रेता व्यापारी माल बेचते समय ही माल के भुगतान के लिए विनिमय विपत्र लिख देता है तथा क्रेता उसे स्वीकार कर लेता है।
  • प्रतिज्ञा पत्र – कई व्यापारी माल खरीदने के साथ ही माल के मूल्य के भुगतान की तिथि का एक प्रतिज्ञा पत्र लिख देते हैं। इन में लिखी तिथि पर विक्रेता क्रेता से धन की मांग कर लेता है तथा क्रेता भुगतान कर देता है।
  • हुण्डियां – व्यापारी कई बार माल क्रय करने के साथ ही हुण्डी लिखकर देते हैं। हुण्डी में लिखित तिथि को भुगतान हो जाता है।
  • अदत्त खर्चे- कुछ खर्चे देय होने के बहुत दिनों बाद भुगतान करना पड़ता है। उदाहरण – बिक्री कर, आयकर, बिजली के बिल की राशि आदि।

3. व्यापारिक बैंक ( Trading bank ) – व्यापार की अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकता को पूरा करते हैं। इनके द्वारा प्रदत ऋणों को चालू पूंजी के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।

4. ह्रास कोष ( Depletion fund )- संपत्तियों जैसे भवन, मशीन आदि के लिए ह्रास कोष बनाया जाता है ताकि संपत्तियों के बेकार हो जाने या अप्रचलित हो जाने पर नई संपत्तियों का क्रय किया जा सके। इस राजकोष का उपयोग अल्पकालीन वित्त के स्रोत के रूप में किया जा सकता है।

5. साहूकार या देशी बैंकर ( Moneylender or native banker ) – देशी बैंकर्स अपना व्यवसाय पारिवारिक या व्यक्तिगत रूप से किया करते हैं। देशी बैंकर्स को विभिन्न नामों से जैसे साहूकार, सेठ, महाजन आदि नामों से पुकारते हैं।छोटी व्यवसायिक संस्थाओं, एकाकी व्यापारी तथा साझेदारी संस्थाओं के लिए इस स्रोत का विशेष महत्व है।

6. गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियां ( Non-banking financial companies ) – वित्तीय कंपनियां जो जनता से अनेक बचत योजनाओं के अंतर्गत धन प्राप्त करती है और उस धन को उद्योगों को उधार पर दे देती है। यह कंपनियां अंशों, ऋण पत्रों, प्रतिज्ञापत्रों, बिलों एवं हुंडियों पर भी ऋण उपलब्ध कराती है।

7. ग्राहकों से अग्रिम ( Advance from customers )- कई व्यवसायिक संस्थाएं अपनी अल्पकालीन पूंजी की आवश्यकता की पूर्ति के लिए ग्राहकों से माल के आदेश के साथ ही अग्रिम ले लेती है। यह स्रोत उन संस्थाओं के लिए खुला दीर्घकालीन वित्त के स्रोत है जिनके द्वारा उत्पादित माल की मांग बहुत अधिक है।

8. वाणिज्य पत्र ( Commercial paper )- वाणिज्य पत्र 15 दिन से 1 वर्ष की अवधि के लिए 5 लाख या उसके गुणक के रूप में वित्तीय संस्थाओं द्वारा जारी किए जाने वाले आरक्षित वचन पत्र है, जो अंकित मूल्य से छूट पर जारी किए जाते हैं एवं परिपक्वता पर अंकित मूल्य का भुगतान किया जाता है।

9. आढतीकरण ( Overture ) – यह देनदारियों का एक प्रकार का विक्रय है जिसमें बैंक या वित्तीय संस्थान को देनदारी वसूलने का अधिकार दे दिया जाता है एवं इसकी एवज में कुछ बट्टा काटकर कम राशि पहले ही ले ली जाती है। यह आलम्बन सहित एवं रहित हो सकता है।

10. अन्य स्रोत ( other sources ) – ज्यादा कंपनियों की दशा में एक कंपनी अपने संचालकों के अधीन दूसरी कंपनी से ऋण प्राप्त कर सकती है। कई संस्थाएं दलालों के माध्यम से भी ऋण प्राप्त कर सकती है। विदेशों से व्यापारिक ऋण प्राप्त किया जा सकता है। जमा प्रमाण पत्र योजना के अधीन भी बैंकों से ऋण प्राप्त किया जा सकता है।

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