शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता

Published on: September 13, 2022 16:12 IST
शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता
अस्वीकरण :
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India रुपये का ‘बचाव’ नहीं कर रहा, हमारी मुद्रा खुद इसमें सक्षम: CEA
अगस्त में रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर 80.15 प्रति डॉलर पर आ गया था। फिलहाल या 79.25 प्रति डॉलर पर है।
Edited By: Alok Kumar @alocksone
Published on: September 13, 2022 16:12 IST
Photo:FILE Indian Rupee
Highlights
- अगस्त में रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर 80.15 प्रति डॉलर पर आ गया था
- विदेशी मुद्रा भंडार 26 अगस्त को घटकर 561.04 अरब डॉलर रह गया
- रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित कर रहा है कि रुपया जिस भी दिशा में जा रहा है
India अपनी मुद्रा रुपये का ‘बचाव’ नहीं कर रहा है। हमारी मुद्रा खुद इसमें सक्षम। ये बातें मंगलवार को मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने कही। उन्होंने कहा कि भारत अपनी मुद्रा रुपये का ‘बचाव’ नहीं कर रहा है और केंद्रीय बैंक द्वारा रुपये के उतार-चढ़ाव को धीमा और बाजार रुख के अनुरूप रखने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। नागेश्वरन ने मंगलवार शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता को यहां एक कार्यक्रम में कहा कि रुपये का प्रबंधन जिस तरीके से किया जा रहा है वह अर्थव्यवस्था की बुनियाद को दर्शाता है। उन्होंने कहा, ‘‘भारत अपने रुपये का ‘बचाव’ नहीं कर रहा है। मुझे नहीं लगता है कि देश की बुनियाद ऐसी है जहां हमें अपनी मुद्रा का बचाव करना पड़े। रुपया इसमें खुद सक्षम है।’’
रुपया सर्वकालिक निचले स्तर तक गिरा था
अगस्त में रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर 80.15 प्रति डॉलर पर आ गया था। फिलहाल या 79.25 प्रति डॉलर पर है। सीईए ने कहा, ‘‘रिजर्व बैंक यह सुनिश्चित कर रहा है कि रुपया जिस भी दिशा में जा रहा शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता है, वह काफी तेजी से नहीं हो और बाजार रुख के अनुरूप हो।’’ विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट पर उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर जोखिम से बचाव का रुख पूंजी को यहां आने से रोक रहा है। निश्चित रूप से इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है।’’रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, देश का विदेशी मुद्रा भंडार 26 अगस्त को समाप्त सप्ताह में तीन अरब डॉलर से अधिक घटकर 561.04 अरब डॉलर रह गया।
कई देश रुपये में द्विपक्षीय व्यापार करने के इच्छुक
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा हाल ही में एक तंत्र की घोषणा के बाद कई देशों ने रुपये में ‘द्विपक्षीय व्यापार’ करने में रुचि दिखाई है। वित्त मंत्री ने हीरो माइंडमाइन शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि यह सरकार द्वारा किए गए अन्य उपायों के साथ पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता की दिशा में उठाया गया कदम है। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत पूंजी खाते में बदलाव के लिए तैयार है, उन्होंने कहा यह रूबल-रुपये का पुराना प्रारूप नहीं है। अब यह द्विपक्षीय रुपया व्यापार का प्रारूप आया है। मुझे खुशी है कि केंद्रीय बैंक इसे ऐसे समय लाया है, जब यह बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि कई देशों ने रुपये में व्यापार करने में रुचि दिखायी है, कहा, ‘‘एक तरह से यह भारतीय अर्थव्यवस्था को हमारी उम्मीद से अधिक खोलने के समान है।’’
Sri Lanka ने समय पर IMF से मदद मांगी होती तो आज हालात इतने नहीं बिगड़ते
राजपक्षा सरकार बिगड़ती स्थिति का अंदाजा नहीं लगा सकी। उसने जल्द जरूरी कदम उठाने और आईएमएफ सहित दूसरी जगहों से मदद मांगने के बजाय इंतजार करना ठीक समझा। महीनों तक विपक्ष के नेताओं और एक्सपर्ट्स ने सरकार से कुछ करने की अपील की। लेकिन, सरकार पर असर नहीं पड़ा
इस साल मार्च तक श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 1.93 अरब डॉलर रह गया। यह एक महीने के आयात का बिल चुकाने के लिए भी काफी नहीं था। आयात घटने लगा। इसके चलते धीरे-धीरे जरूरी चीजों की कमी होने लगी।
श्रीलंका (Sri Lanka) के लोगों ने शायद ही कभी ऐसे दिन के बारे में सोचा होगा। देश की 2.2 करोड़ आबादी को जरूरी चीजें तक नहीं मिल पा रही हैं। अस्पताल में दवाइयां नहीं है। फ्यूल के लिए लंबी लाइन लग रही है। घंटों उन्हें बगैर बिजली सप्लाई गुजारा करना पड़ रहा है। देश के लोगों में सरकार के खिलाफ गुस्सा है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षा (Gotabaya Rajapaksa) पर दबाव लगातर बढ़ रहा है।
दरअसल, राजपक्षा ने अगर समय पर जरूरी कदम उठाए होते तो आज हालात यहां तक नहीं पहुंचे होते। सरकार के पास विदेशी मुद्रा नहीं बची है। यही वजह है कि उसने विदेशी लोन का पेमेंट करने से मना कर दिया है। सरकार को हालात से निपटने का कोई रास्ता नहीं नजर नहीं आ रहा। स्थिति दिन ब दिन खराब हो रही है।
श्रीलंका की सरकार आज (सोमवार) आज अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) से बातचीत शुरू करेगी। वह आईएमएफ से आर्थिक मदद मांगेगी ताकि जरूरी चीजों का वह आयात कर सके। उसने इंडिया और चाइना सहित पड़ोसी देशों से भी मदद मांगी है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने किया रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण, जानें- क्या है इसका मतलब और आगे की चुनौतियां?
RBI Internationalizes The Rupee: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रुपया का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया है. यह तत्काल प्रभाव से लागू भी कर दिया गया है. हालांकि, किसी देश की मुद्रा को आम तौर पर 'अंतरराष्ट्रीय' तब माना जाता है जब उसे दुनिया भर में व्यापार के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है.
Updated: July 13, 2022 11:08 AM IST
RBI Internationalizes Rupee: दो दिन पूर्व भारत के केंद्रीय बैंक आरबीआई ने घोषणा की कि वह रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार सेटिलमेंट के लिए एक सिस्टम स्थापित कर रहा है. यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. आरबीआई ने कहा कि सिस्टम को “निर्यात पर जोर देने के साथ वैश्विक व्यापार के विकास को बढ़ावा देने” के लिए डिज़ाइन किया गया है.
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आरबीआई ने कहा कि भारत से निर्यात पर जोर देने के साथ वैश्विक व्यापार के विकास को बढ़ावा देने के लिए और INR में वैश्विक व्यापारिक समुदाय के बढ़ते हित का शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता समर्थन करने के लिए, चालान, भुगतान और निर्यात के सेटिलमेंट के लिए एक अतिरिक्त व्यवस्था करने का निर्णय लिया गया है कि आयात भी भारतीय मुद्रा यानी कि रुपये में किया जाए.
बता दें, आरबीआई का यह आदेश ऐसे समय में आया है जब हाल के दिनों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है.
पिछले हफ्ते, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने प्रस्ताव दिया कि आरबीआई को “रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए सचेत प्रयास” करना चाहिए. एसबीआई ने अपने “शुरुआत से विदेशी मुद्रा व्यापारी तक का रास्ता रिसर्च इकोरैप” में कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध और इसके कारण भुगतान में रुकावट, कुछ छोटे निर्यात भागीदारों के साथ शुरुआत करके रुपये में निर्यात निपटान पर जोर देने का एक अच्छा अवसर है.
रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते का क्या है मतलब?
भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) के तहत रुपये में सीमा पार व्यापार लेनदेन के लिए व्यापक रूपरेखा का विस्तार किया है.
- इस व्यवस्था के तहत सभी निर्यात-आयात और चालान रुपये में किए जा सकते हैं.
- दो व्यापारिक भागीदार देशों की मुद्राओं के बीच विनिमय दरें बाजार द्वारा निर्धारित की जा सकती हैं.
- इस व्यवस्था के तहत व्यापार लेनदेन का निपटान रुपये में होना चाहिए.
आयात और निर्यात के लिए क्या है इसका मतलब?
- इस तंत्र के माध्यम से आयात करने वाले भारतीय आयातकों को रुपये में भुगतान करने की आवश्यकता होगी, जिसे विदेशी विक्रेता या आपूर्तिकर्ता से माल या सेवाओं की आपूर्ति के लिए चालान के खिलाफ भागीदार देश के संवाददाता बैंक के विशेष वोस्ट्रो खाते में जमा किया जाना चाहिए.
- इसी तरह, इस सिस्टम के जरिए वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करने वाले भारतीय निर्यातकों को भागीदार देश के संपर्ककर्ता बैंक के निर्दिष्ट विशेष वोस्ट्रो खाते में शेष राशि से रुपये में निर्यात आय का भुगतान किया जाना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में रुपया
- किसी मुद्रा को आम तौर पर ‘अंतरराष्ट्रीय’ तब माना जाता है जब उसे दुनिया भर में व्यापार के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है.
- अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत मुद्रा है, इसके बाद यूरोपीय यूरो का स्थान आता है.
- इससे पहले 1960 के दशक में कतर, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और ओमान जैसे खाड़ी देशों में रुपया स्वीकार किया गया था. भारत के पूर्वी यूरोप के साथ भुगतान समझौते भी थे और इन भुगतान समझौतों के तहत रुपये को खाते की एक इकाई के रूप में इस्तेमाल किया गया था.
हालांकि, 1960 के दशक के मध्य में, इन व्यवस्थाओं को समाप्त कर दिया गया था.
आगे क्या हैं चुनौतियां?
अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सक्षम करने के लिए या इसे एक संपत्ति के रूप में रखने के लिए रुपये को एक स्थिर मुद्रा बनाकर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है.
अगर हम इसको आसान भाषा में समझें तो हम कह सकते हैं कि रुपये को एक मुद्रा बनने की जरूरत है जिसमें संपत्तियां होती हैं.
रुपये के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बनने से भारत का व्यापार घाटा कम होने की संभावना है. वैश्विक बाजार में रुपया मजबूत होगा. अन्य देश रुपये को अपनी व्यापारिक मुद्रा के रूप में अपनाना शुरू कर सकते हैं.
हालांकि, व्यापार की मुद्रा के रूप में रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण में चुनौतियां हैं.
रुपये में विदेशी व्यापार की मंजूरी से मुद्रा पर दबाव घटेगा
पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, “इस व्यवस्था से रुपये पर दबाव कम होगा क्योंकि आयात के लिए डॉलर की मांग नहीं रह जाएगी.”
बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने एक रिपोर्ट में कहा कि इस कदम से डॉलर की मांग पर दबाव तात्कालिक रूप से कम हो जाना चाहिए.
बार्कलेज के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) राहुल बजोरिया ने कहा कि रुपये की मौजूदा कमजोरी के बीच यह कदम संभवतः व्यापार सौदों के रुपये में निपटान को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा की मांग घटाने के लिए उठाया गया है.
आरबीआई ने कहा है कि व्यापार सौदों के निपटान के लिए संबंधित बैंकों को साझेदार देश के एजेंट बैंक का विशेष रुपया वोस्ट्रो खातों की जरूरत होगी.
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के सौम्यजीत नियोगी के मुताबिक, आरबीआई की यह घोषणा पूंजी खाते की परिवर्तनीयता के उदारीकरण की राह प्रशस्त करती है.
सीआर फॉरेक्स एडवाइजर्स के प्रबंध निदेशक अमित पबरी ने कहा कि वोस्ट्रो खातों के जरिये रुपये में विदेशी सौदों के भुगतान की मंजूरी देना खास तौर पर रूस के साथ व्यापार को फायदा पहुंचाने के लिए उठाया गया कदम है.
शॉर्ट टर्म में क्या दिक्कतें आएंगी?
भारत को अन्य देशों को अधिक निर्यात शुरू करने की आवश्यकता है. साथ ही, भारत को एक निर्माता बनने की जरूरत है, क्योंकि इससे रुपये को व्यापार की मुद्रा बनने में काफी मदद मिलेगी.
इस साल 23 मार्च को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने घोषणा की कि यूरोपीय देशों को सभी प्राकृतिक गैस आयात के लिए अमेरिकी डॉलर या यूरो के बजाय रूसी मुद्रा रूबल में भुगतान करना होगा. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसकी मांग कर सकते हैं, क्योंकि रूस यूरोपीय संघ की प्राकृतिक गैस आवश्यकताओं का 40 प्रतिशत आपूर्ति करता है.
हां इतना जरूर है कि यदि रुपये का वास्तव में अंतर्राष्ट्रीयकरण हो जाता है, तो भारत आत्मनिर्भर बन सकता है.
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