डॉलर की मजबूती

अमेरिकी डॉलर की मजबूती बरकरार, रुपया 83.06 के रिकॉर्ड निचले स्तर डॉलर की मजबूती पर पहुंचा
मुंबई। विदेशी कोषों की निरंतर निकासी और अमेरिकी डॉलर की मजबूती के चलते रुपया गुरुवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले छह पैसे टूटकर 83.06 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि घरेलू शेयर में गिरावट और निवेशकों के जोखिम न लेने की प्रवृत्ति से भी डॉलर की मजबूती रुपया …
मुंबई। विदेशी कोषों की निरंतर निकासी और अमेरिकी डॉलर की मजबूती के चलते रुपया गुरुवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले छह पैसे टूटकर 83.06 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। विदेशी मुद्रा कारोबारियों ने कहा कि घरेलू शेयर में गिरावट और निवेशकों के जोखिम न लेने की प्रवृत्ति से भी रुपया प्रभावित हुआ। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया, डॉलर के मुकाबले 83.05 पर कमजोर खुला, और फिर फिसलकर 83.06 पर आ गया।
इस तरह रुपया पिछले बंद भाव के मुकाबले छह पैसे टूट गया। शुरुआती सौदों में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 83.07 के स्तर तक गया। रुपया पिछले सत्र में, बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 60 पैसे की गिरावट के साथ पहली बार 83 रुपये के स्तर से नीचे चला गया था। इसबीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.07 प्रतिशत बढ़कर 113.06 पर आ गया।
वैश्विक तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.17 प्रतिशत गिरकर 92.25 डॉलर प्रति के भाव पर था। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बुधवार को शुद्ध रूप से 453.91 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
शेयर बाजारों में गिरावट
वैश्विक बाजारों में कमजोर रुख और विदेशी कोषों की निकासी जारी रहने के बीच गुरुवार को शुरुआती कारोबार के दौरान प्रमुख शेयर सूचकांकों में गिरावट हुई और चार दिन से जारी तेजी थम गई। इस दौरान 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 315.91 अंक गिरकर 58,791.28 डॉलर की मजबूती पर आ गया। व्यापक एनएसई निफ्टी 90.2 अंक गिरकर 17,422.05 पर था। सेंसेक्स में इंडसइंड बैंक, टाइटन, महिंद्रा एंड महिंद्रा, एनटीपीसी, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, एचडीएफसी और मारुति गिरने वाले प्रमुख शेयरों में शामिल थे।
दूसरी ओर, नेस्ले, रिलायंस इंडस्ट्रीज, आईटीसी और हिंदुस्तान यूनिलीवर में मजबूती थी। अन्य एशियाई बाजारो में सियोल, तोक्यो, शंघाई और हांगकांग के बाजार नुकसान में कारोबार कर रहे थे। अमेरिकी शेयर बाजार शुक्रवार को गिरावट के साथ बंद हुए थे। बुधवार को तीस शेयरों पर आधारित बीएसई सेंसेक्स 146.59 अंक यानी 0.25 प्रतिशत की बढ़त के साथ 59,107.19 अंक पर बंद हुआ था।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 25.30 अंक डॉलर की मजबूती यानी 0.14 प्रतिशत की बढ़त के साथ 17,512.25 अंक पर बंद हुआ था। अंतरराष्ट्रीय तेल सूचकांक ब्रेंट क्रूड 0.17 फीसदी की गिरावट के साथ 92.25 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था। शेयर बाजार के अस्थाई आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने बुधवार को शुद्ध रूप से 453.91 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
डॉलर की मजबूती
डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है। आज 1 डॉलर तब मिलेगा जब 82.38 रुपये दिए जाएंगे। आप कहेंगे कि डॉलर से आप के ऊपर तो कुछ भी फर्क नहीं पड़ता तो चिंता की क्या बात है? आपका 100 रुपया आज भी 100 रुपया है। उससे उतना ही सामान और सेवा खरीदी जा सकती है जितनी पहले मिलती थी तो चिंता की क्या बात? लेकिन यहीं आप ग़लत हैं। हकीकत यह है कि जब डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होता है तो भले ही आप चिंता करे या न करे,भले ही आपने जीवन में कभी डॉलर न देखा हो, मगर आप और हम जैसों आम लोगों पर ही असर पड़ता है।
भारत में सब कुछ तो पैदा नहीं होता। अपनी कई बुनियादी जरूरतों के लिए भारत विदेशों पर निर्भर है। विदेशी व्यापार डॉलर में होता है। क्रूड आयल यानी कच्चे तेल को ही देखिये। भारत की जरूरत का तकरीबन 85 फीसदी बाहर से आयात होता है। जब तेल की खरीदारी डॉलर में होगी तो इसका मतलब है कि बाहर से तेल मंगाने पर आपको ज़्यादा रुपया देना होगा। इससे क्या होगा। आपके देश में तेल के दाम बढ़ंगे। तेल यानी पेट्रोल, डीज़ल के दाम बढ़गें तो आपको ज़्यादा रुपया चुकाना पड़ेगा। साथ ही अन्य सामानों पर भी महंगाई बढ़ेगी। महंगाई बढ़ेगी तो इसका डॉलर की मजबूती सबसे ज्यादा असर उन्हीं 90 प्रतिशत कामगारों पर पड़ेगा जो महीने में 25 हजार रुपये से कम कमाते हैं। यानी डॉलर के मुकाबले जब रुपया गिरता है तो आम आदमी की कमर तोड़ने वाले महंगाई अर्थव्यवस्था के गहरी जड़ों में समाने लगती हैं।
अब आप कहेंगे ठीक बात है - रुपये के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने पर आयात महंगा हो जाता है, लेकिन निर्यात में भी तो फायदा होता है। इसका फायदा भी तो मिलता है तो डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने के खराबी के तौर पर क्यों देखा जाए? इसका जवाब यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था चालू खाता घाटे वाली व्यवस्था है। भारत में आयात, निर्यात से अधिक होता है। यानी भारत से कॉफी, मसाले जैसे सामान और तकनीकी सेवाओं का जितना निर्यात होता है, उससे कई गुना अधिक आयात होता है। भारत में विदेशी व्यापार हमेशा नकारात्मक रहता है। इसका मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने पर भारत को मुनाफा कम, आम आदमी को हर्जाना ज्यादा भुगतना पड़ेगा।
डॉलर और रुपये की बहस में यह बात जान लेने के बाद कि कैसे डॉलर का गिरना आम लोगों पर असर डालता है? अब हाल फिलहाल में चर्चाओं के गलियारे में छा रही खबर पर बात करते हैं। खबर यह है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से जब अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में पूछा गया कि डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट पर आपकी क्या राय है? इस पर निर्मला सीतारमण ने कहा कि 'सबसे पहले तो मैं इसे ऐसे नहीं देखती हूं कि रुपया गिर रहा है। मैं इसे देखती हूं कि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है। इसलिए स्वाभाविक रूप से वे करेंसीज कमजोर होंगी, जिसकी तुलना में डॉलर मजबूत हो रहा है।'
नेताओं को यह कला बखूबी आती है कि वह वही बोलते हैं, जिससे उनकी गलती न दिखे। लेकिन नेताओं के बयानों के हिसाब से देखा जाए तो साफ़- साफ दिखेगा कि निर्मला सीतारमण उतना ही सच बोल रही हैं कि गोदी मीडिया यह हेडिंग बनाये कि रुपया गिर नहीं रहा बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है। साल 2013 में 1 डॉलर जब 60 रुपये के आसपास चला गया तो निर्मला सीतारमण ने बयान दिया कि रुपये का गिरना भारतीय अर्थव्यवस्था की चिंताजनक हाल को बताता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली को प्रतिबिंबित करता है।
इसे थोड़ा भाजपा के बयान से देखिये। साल 2013 में डॉलर के मुकाबले रुपये गिरकर 68 रुपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुकाबले रुपया तभी मजबूत होगा जब देश में मजबूत नेता आएगा। उस समय कहा जा रहा था कि यह बताना मुश्किल है कि डॉलर के मुकाबले रुपया ज्यादा गिर रहा है या कांग्रेस पार्टी? कांग्रेस पार्टी और रुपये के गिरने में होड़ लगी है। 2018, 2019, 2020 और 2021 में लगातार रुपया कमज़ोर होता गया। चार साल से भारत का रुपया कमज़ोर होता जा रहा है। अब यह कमजोर होकर सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है।
यानी यह बात समझने वाली है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोर होने की कहानी रूस और यूक्रेन डॉलर की मजबूती की लड़ाई के बाद ही शुरू नहीं हुई है, बल्कि यह बहुत लम्बे समय से चलते आ रही है। भाजपा के मुताबिक मजबूत नेता के आ जाने के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपया में मजबूती होनी चाहिए थी, लेकिन यह पहले से ज्यादा मजबूत होने की बजाए कमजोर हो गया। कहने का मतलब है कि रूपये को गिरने को लेकर बयानबाजी वाली राजनीति होती आ रही है। अगर इस जमीन से देखेंगे तो निर्मला सीतारमण के तर्क महज अवसरवादिता के अलावा कुछ नहीं दिखेगा।
जब इस मसले पर वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार आनिंदो चक्रवर्ती से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि निर्मला सीतारमण जो कह रही हैं वह बात सही है। डॉलर मजबूत हो रहा है और रुपया गिर रहा है। रुपया जिस दर से गिर रहा है, उससे ज्यादा तेजी से यूरोप की दूसरी करेंसी गिर रही हैं। इस पूरे मसले की जड़ में भारत की आर्थिक नीतियां है। पिछले 30 साल के आर्थिक नीतियों का नतीजा है कि डॉलर के मुकाबले रुपया लागातर गिर रहा है। भारत ने खुली अर्थव्यवस्था की नीति पूरी तरह से अपना ली। इसलिए यह हो रहा है।
पहले विनिमय दर को सरकार नियंत्रित करती थी। डॉलर के मुकाबले रुपया को बहुत ज्यादा गिरने नहीं दिया जाता था। यह नीति अब पूरी तरह से हटा दी गयी है। उदाहरण के तौर पर जब पहले अमेरिका की बैंक अपने यहां ब्याज दर बढाती थी तो ऊँचा ब्याज कमाने के लिए चाहे जितना मर्जी उतना डॉलर भारत के बाजार से अमेरिका के बाजार में नहीं चला जाता था। उस पर एक सीमा लगी होती थी। जिसके तहत एक निश्चित सीमा से ज्यादा डॉलर भारत के बाजारों से नहीं निकाला जा सकता था। अब यह छूट पूरी तरह से हटा ली गयी है। अब जिसे जितना मर्जी उतना डॉलर वह देश से निकालकर बाहर इन्वेस्ट कर सकता है। यानी अब विनिमय दर को सरकार नियोजित नहीं करती है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि वित्तीय कारोबार की दुनिया में जहां पर ब्याज दर अधिक होता है, वहां डॉलर चला जाता है। जहां तक यूरोपीय मुल्कों की बात है तो वह अपने ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस और यूक्रेन पर ज्यादा निर्भर थे। अब जब से वहाँ पर लड़ाई छिड़ी हैं तब से ऊर्जा जरूरतों के लिए पहले जो पैसा खर्च किया जाता था। इसलिए डॉलर जर्मनी और इंग्लैंड जैसी करेंसी ज्यादा दर से गिर रही है।
आज की भूमण्डलीकृत दुनिया में डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट से बचने का उपाय यह है कि भारत खुली अर्थव्यवस्था की नीति से खुद को दूर रखे। नियोजित व्यापार वाली नीती अपनाए। अगर खुले व्यापार की नीति होगी तब दुनिया के विकसित देशों से आयात ज्यादा होगा। जैसा कि अब तक होते आ रहा है। भारत केवल बाजार डॉलर की मजबूती बनकर रह जाएगा। इसकी अपनी अर्थव्यवस्था इसकी जरूरतों को पूरा करने की बजाय दूसरी अर्थव्यवस्था के सामान हावी रहेंगे। भारत में निवेशकों को ज्यादा मुनाफा नहीं दिखेगा और डॉलर के मुकाबले रुपया का गिरना लगातार जारी रहेगा।
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पिछले एक साल में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में 9.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. साल की शुरुआत में US Dollar के मुकाबले में 73.21 रुपये रहने वाला जहां रुपया अब गिरकर 81.50 रुपये हो गया है. इस बीच अमेरिका में हाई इन्फ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए यूएस फेड द्वारा 2022 के साथ ही 2023 में रेपो रेट समेत अन्य जरुरी दरों में इजाफा जारी रखे जाने की संभावना है. जिसकी वजह से साल की शुरुआत से ही डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट देखी जा रही है. साथ ही इस गिरावट के आगे जारी रहनी की आशंका बनी हुई है.
डॉलर के मुकाबले रुपया के कमजोर होने का मतलब क्या है ?
2017 में आपको एक डॉलर खरीदने के लिए 64 रुपये खर्च करने पड़े थे, लेकिन अब एक डॉलर लेने के लिए आपको 80 रुपये से ज्यादा का भुगतान करना होगा, जो रुपये आज की स्थिति को दिखाता है. इससे यह भी पता चलता है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में सालाना आधार पर करीब 5 फीसदी की गिरावट आई है. दूसरी ओर रुपये की मजबूती का मतलब होता है कि आपको पहले की तुलना में डॉलर खरीदने के लिए कम भारतीय मुद्रा का भुगतान करना होगा.
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रुपये की कमजोरी या उसमें आई गिरावट से आपका व्यक्तिगत वित्त प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं. अर्थव्यवस्था पर भी अच्छे और बुरे दोनों तरह के डॉलर की मजबूती प्रभाव पड़ते हैं. जब INR में गिरावट आती है तो निर्यातकों की जीत होती है, लेकिन चूंकि भारत मुख्य रूप से एक आयात पर निर्भर देश है, इसलिए कमजोर INR के परिणाम अधिक गंभीर होते हैं. कुछ वस्तुओं की लागत में इजाफा और परिणामस्वरूप हाई इन्फ्लेशन एक इनडायरेक्ट इफेक्ट है. क्योंकि हमारा देश एक बड़ा तेल आयातक है, जिसकी वजह से रुपये में कमजोरी आने का असर अन्य वस्तुओं पर पड़ा तय है. रुपये में गिरावट की वजह से आयात किये गए सामान के बदले में ज्यादा भारतीय मुद्रा का भुगतान करना होगा. जिससे उस सामान या वस्तु की लागत बढ़ जाएगी.
रुपये में आई गिरावट आप की EMI में इजाफा कर देती है
डॉलर के मुकाबले में रुपये में गिरावट आने से मार्केट में हाई इन्फ्लेशन शुरु हो जाता है, जिसे कंट्रोल करने के लिए आरबीआई द्वारा रेपो रेट में इजाफा किया जाता है. जिसकी वजह से आप के लोन की EMI में बढ़ोतरी हो जाती है. यानी आप को अपने लोन के एवज में दी जाने वाली EMI के लिए ज्यादा पैसों का भुगतान करना होगा. हाल ही में RBI ने 29 सितंबर को रेपो रेट में एक बार फिर से 50 बेसिक पॉइंट्स का इजाफा किया है.
अगर आप का बच्चा विदेश में पढ़ता है तो आप को इंटरनेशनल एजुकेशन के लिए डॉलर भेजने के लिए ज्यादा भारतीय मुद्रा का पेमेंट करना होगा. INR में गिरावट से खुद को बचाने के लिए विदेशों में पढ़ रहे स्टूडेंट्स को विदेशी बैंक के अकाउंट में पैसे रखने चाहिए. इसके साथ ही अगर आप अपने परिवार के साथ विदेश में घुमने का प्लान बना रहे हैं तो ये ध्यान में रखना होगा कि रुपये में कमजोरी की वजह से आपको ज्यादा राशि का भुगतान करना पड़ेगा.
डॉलर की मजबूती के दौर में अपने आर्थिक हितों की ऐसे करे रक्षा
डॉलर के मुकाबले में रुपये में मजबूती में लंबा समय लग सकता है. ऐसे में अगर आप अपने बच्चों को किसी विदेश में पढ़ाने के लिए प्लान बना रहे हैं तो आप को अमेरिकी इक्विटी खरीदने या विदेशी बैंक खाते में पैसे जमा करने पर विचार करना चाहिए. भारतीय रिजर्व बैंक लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम विदेशों में भेजे गए पैसों को नियंत्रित करती है. इस स्कीम डॉलर की मजबूती के तहत नाबालिगों सहित सभी निवासियों को किसी भी कानूनी चालू या पूंजी खाता लेनदेन या दोनों के संयोजन के लिए प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में 2,50,000 अमरीकी डालर तक स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई है.
डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 83 के पार, 24 माह में 10% कमजोर हुआ रुपया
Rupees Vs Dollar : वैश्विक बाजारों में डॉलर के मजबूत होने और विदेशी निवेशकों की तरफ से लगातार की जा रही बिकवाली के बीच बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया ( Rupees Vs Dollar ) 61 पैसे गिरकर पहली बार 83 रुपए के स्तर से नीचे चला गया। इसका सीधा असर कच्चे तेल की कीमतों पर हुआ है। कहने का मतलब यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपए के गिरने का सिलसिला जारी है और त्योहारी सीजन में महंगाई ( inflation ) की आशंका पहले से ज्यादा बढ़ गई है।
एक दिन पहले डॉलर के मुकाबले रुपया ( Rupees Vs Dollar ) अपने पिछले 82.36 की तुलना में 82.3062 पर खुलने के बाद अब तक के सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ। बुधवार को एक अस्थिर कारोबारी सत्र में ग्रीनबैक के मुकाबले घरेलू मुद्रा 83.02 के नए इंट्रा-डे रिकॉर्ड निचले स्तर पर गिर गई। विदेशी बाजारों में डॉलर की मजबूती के बीच बुधवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 61 पैसे टूटकर 83 अंक से नीचे आया है। कारोबारियों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और निवेशकों के बीच जोखिम-प्रतिकूल भावना ने स्थानीय मुद्रा को प्रभावित किया।
रुपए में जारी गिरावट को लेकर ट्रेडर्स का कहना है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और निवेशकों के बीच रिस्क-एवर्स सेंटीमेंट का असर लोकल करेंसी पर पड़ा है। विगत दो साल में रुपया 10 प्रतिशत से ज्यादा गिर चुका है। नवंबर 2021 में डॉलर के मुकाबले रुपया लगभग 73.90 पर था। जुलाई में ये पहली बार 80 के पार पहुंचा था।
सीतारमण पर तंज - रुपया कमजोर नहीं डॉलर मजबूत हो रहा
Rupees Vs Dollar : ट्रेडर्स रुपए के वर्तमान रुख पर तंजिया लहजे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर तंज कस रहे हैंं। ट्रेडर्स का कहना है कि चिंता नहीं कीजिए, रुपया कमजोर नहीं मजबूत हो रहा है। दरअसल, 16 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होते रुपए पर अमेरिका में बयान दिया था। सीतारमण ने कहा था कि रुपया कमजोर नहीं, बल्कि डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है।