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क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं?

क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं?
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80 के स्तर को लांघा रुपया

सुबह के कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया सर्वकालिक निचले स्तर 80.06 तक फिसल गया था। हालांकि कारोबार की समाप्ति पर यह 79.95 पर बंद हुआ। सोमवार को रुपया 79.98 पर बंद हुआ था। डॉलर की तुलना में रुपये में इस साल अब तक 7.01 फीसदी की गिरावट आई है।

स्थानीय मुद्रा 80 रुपये प्रति डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर के पार पहुंच गई थी लेकिन मुद्रा डीलरों का कहना है कि कई कारकों ने रुपये को सहारा दिया जिससे वह थोड़ा संभल गया।

आरबीआई ने 80 के स्तर पर मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया, वहीं डॉलर सूचकांक के कमजोर होने, देसी शेयर बाजार के चढ़ने और निर्यातकों की ओर से बैंकों द्वारा डॉलर की बिकवाली करने से रुपये की गिरावट थामने में मदद मिली।

अमेरिकी डॉलर सूचकांक इस महीने की शुरुआत में 20 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया था लेकिन फेडरल रिजर्व द्वारा इस महीने के अंत तक दरों में 100 आधार अंक के बजाय 75 आधार अंक की बढ़ोतरी के संकेत दिए जाने से पिछले कुछ दिनों से डॉलर सूचकांक में गिरावट आई है। डॉलर सूचकांक से अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले छह प्रमुख मुद्राओं को आंका जाता है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक दोपहर बाद कारोबार के दौरान 106.60 पर था जबकि शुक्रवार को यह 108.06 पर था। इस साल रुपये में जो 7 फीसदी की नरमी आई है, उनमें से ज्यादातर गिरावट बीते एक महीने में दर्ज की गई। कई डीलरों का कहना है कि हाल के समय में वैश्विक जिंसों के दाम घटने से रुपया मौजूदा स्तर से और नीचे नहीं आएगा।

आईएफए ग्लोबल के मुख्य कार्याधिकारी अभिषेक गोयनका ने कहा, ‘काफी सारी नकारात्मक घटनाओं का रुपये पर असर दिख चुका है। हमें लगता है कि रुपया अब बुरे क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? दौर के अंतिम चरण में है। जिंसों के दाम में गिरावट, आपूर्ति श्रृंखला में सुधार और तेल के दाम नियंत्रण में डॉलर सूचकांक जल्द ही नीचे आ सकता है।’गोयनका का कहना है कि 2022 की दूसरी छमाही से देश में विदेशी निवेश का प्रवाह लौट सकता है और डॉलर-रुपया का मौजूदा स्तर निर्यातकों को डॉलर की बिकवाली धीरे-धीरे करने के लिए प्रोत्साहित करेगा जिससे रुपये को मदद मिलेगी। एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस साल अब तक रिकॉर्ड 30 अरब डॉलर से ज्यादा की बिकवाली की है। विशेषज्ञों का कहना है कि चालू खाते के बढ़ते घाटे की चिंता के बावजूद विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में आरबीआई के हस्तक्षेप से भी रुपये में उतार-चढ़ाव को काबू में करने में मदद मिलेगी।

बैंक ऑफ अमेरिका में इंडिया कंट्री ट्रेजरर क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? जयेश मेहता ने कहा, ‘विदेशी मुद्रा भंडार और केंद्रीय बैंकों की सक्रियता की वजह से उभरते बाजारों की मुद्राएं पहले की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। इस लिहाज से हमें रुपये को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है।’

उन्होंने कहा, ‘अगर डॉलर में और मजबूती आती है तो निश्चित तौर पर रुपया सहित अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं पर इसका असर पड़ेगा। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार बेहतर होने से रुपये में तेज गिरावट की आशंका नहीं है।’

विश्लेषकों ने यह भी कहा कि डॉलर की तुलना में रुपये में नरमी आई है लेकिन यूरो, पाउंड और येन की तुलना में यह मजबूत हुआ है।

ब्लूमबर्ग के आंकड़ों से पता चलता है कि 31 दिसंबर, 2021 को यूरो के मुकाबले रुपया 84.21 पर था, जो अब 81.87 पर आ गया है। ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले रुपये में मजबूती काफी तगड़ी रही है। घरेलू मुद्रा 96.08 प्रति पाउंड रही, जो 31 दिसंबर, को 100.44 थी।

कमजोर रुपया निर्यातकों, खास तौर पर भारतीय आईटी क्षेत्र के लिए सकारात्मक है, जबकि इसका दवा उद्योग पर असर मिलाजुला रहेगा। आईटी उद्योग के राजस्व में अमेरिका 50 फीसदी से अधिक योगदान देता है, इसलिए डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से उनकी आमदनी बढ़ती है। विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में 100 आधार अंक की गिरावट से परिचालन मार्जिन 30 आधार अंक बढ़ जाता है।

इसके साथ ही पाउंड, यूरो और येन के मुकबले डॉलर में मजबूती का उद्योग का नकारात्मक असर पड़ता है क्योंकि इस उद्योग के लिए अमेरिका के बाद ब्रिटेन और यूरोप सबसे बड़े बाजार हैं। ऐसा भारतीय आईटी कंपनियों के जून तिमाही के नतीजों भी नजर आया। इतना ही नहीं, यात्रा, वीजा और वेतन खर्च भी बढ़ रहे हैं।

दवा उद्योग को कमजोर रुपये से होने वाले लाभ बढ़ती इनपुट लागत से सपाट हो सकते हैं। उद्योग ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडिएंट (एपीआई) और अन्य कच्चे माल का आयात करता है। इसमें से ज्यादातर आयात चीन से होता है और उसका भुगतान डॉलर में होता है। इसके अलावा प्रमुख एपीआई की कीमतें 30 से 140 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं, जबकि हाल के महीनों में मालभाड़ा और बिजली की लागत भी बढ़ी है।

वाहन क्षेत्र में बजाज ऑटो जैसी परंपरागत वाहन विनिर्माता को फायदा मिलना चाहिए क्योंकि इस दिग्गज दोपहिया कंपनी की करीब आधी आमदनी निर्यात से होती है। हालांकि वास्तविक लाभ कंपनी के अपने विदेशी मुद्रा जोखिम की हेजिंग पर निर्भर करेगा। जर्मनी की लक्जरी कार विनिर्माता पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है, लेकिन यूरो के मुकाबले मजबूत हुआ है। कंपनी यूरोप से काफी बड़ी मात्रा में कलपुर्जों और कारों का आयात करती है।

कपड़ा एवं रेडीमेड गारमेंट और रत्नाभूषण विनिर्माता रुपये में कमजोरी से उत्साहित हैं।

जो लोग विदेश यात्रा या अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए अमेरिकी कॉलेजों में भेजने की योजना बना रहे हैं, उन्हें ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए तैयार रहना होगा।

(साथ में शैली सेठ मोहिले, सोहिनी दास, शिवानी शिंदे, अनीश फडणीस, बिंदिशा सारंग, विनय उमरजी, शाइन जैकब और संजय सिंह)

Dollar vs Rupee: सबके लिए घाटे का सौदा नहीं होता गिरता रुपया, इन भारतीयों को हो रहा है मोटा फायदा!

Dollar vs Rupee: डॉलर ने यूरोप से लेकर अमेरिकी महाद्वीप की कई बड़ी अर्थव्यवस्था वाली करेंसी को भी गहरी चोट पहुंचाई है. लेकिन भारतीय रुपये की गिरती कीमत कुछ लोगों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है.

डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में बड़ी गिरावट

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 17 जुलाई 2022, 2:04 PM IST)
  • एक्सपोर्टरों को भी मिलता है गिरते रुपये का फायदा
  • इंपोर्ट के लिए खर्च करनी पड़ती है अधिक रकम

डॉलर (Dollar) के मुकाबले भारतीय रुपया (Indian Currency) इन दिनों अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. रुपया डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर लुढ़क चुका है. गुरुवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79.99 पर बंद हुआ था. हालांकि, ऐसा नहीं है कि डॉलर के मुकाबले सिर्फ भारतीय करेंसी ही कमजोर हुई है. डॉलर ने यूरोप से लेकर अमेरिकी महाद्वीप की कई बड़ी अर्थव्यवस्था वाली करेंसी को भी गहरी चोट पहुंचाई है. लेकिन भारतीय रुपये की गिरती कीमत कुछ लोगों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है.

कैसे मिल रहा है फायदा

मान लीजिए कि आपके घर का कोई व्यक्ति अमेरिका (USA) में किसी सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी करता है. चूंकि अमेरिका की करेंसी डॉलर है, तो उसे भी सैलरी इसी करेंसी में मिलती है. इसके बाद वो अपनी सैलरी भारत में आपके पास भेजता है. डॉलर में भेजी गई रकम आपको एक्सचेंज (Currency Exchange) के बाद भारतीय रुपये में मिलती है. ऐसे में अगर आज के समय में एक डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू करीब 80 रुपये हो गई है, तो आपके लिए डॉलर में भेजी गई रकम भी इसी अनुपात में मिलेगी.

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अगर 100 डॉलर आपके लिए किसी ने भेजा है, तो आज के समय भारतीय करेंसी (Indian Currency) में ये लगभग 8000 रुपये होगी. वहीं, अगर डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की वैल्यू 70 रुपये होती, तो आपको 7000 रुपये मिलते. यानी 1000 रुपये आपको कम प्राप्त होते. इस तरह रुपये की गिरती वैल्यू के बीच भी कई लोगों को तगड़ा फायदा मिल रहा है.

कितना क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? आता है विदेशों से पैसा

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत में विदेशों से साल 2020 में 83 अरब डॉलर से अधिक धन भेजा गया था. वहीं, 2021 में 87 अरब डॉलर की रकम भारत आई थी. विदेशों में नौकरी कर रहे भारतीय भारी मात्रा में पैसा देश में अपने परिवारों के पास भेजते हैं. इससे देश के विदेशी मुद्रा कोष को फायदा होता है.क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं?

एक्सपोर्टरों के लिए भी फायदे का सौदा

जब भी डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू गिरती है, तो एक्सपोर्टर फायदे में रहते हैं. सॉफ्टवेयर कंपनियां और फार्मा कंपनियां इसका अधिक फायदा उठाती हैं. क्योंकि उन्हें पेमेंट का भुगतान डॉलर में मिलता है, जिसकी वैल्यू भारत में आकर बढ़ जाती है. इस वजह उन्हें रुपये में आई गिरावट का फायदा मिलता है.

हालांकि, कुछ एक्सपोर्टर अधिक महंगाई दर की वजह से इसका फायदा नहीं उठा पाते हैं, क्योंकि उनके प्रोडक्ट की लागत बढ़ जाती है. पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स, ऑटोमोबाइल, मशीनरी सामान बनाने वाली कंपनियों की प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ जाती है.

भारत अधिक इंपोर्ट करने वाला देश

भारत एक्सपोर्ट के मुकाबले अधिक इम्पोर्ट करने वाला देश है. यानी ऐसी बहुत सी वस्तुएं हैं जिनके लिए हम विदेशों से आयात पर निर्भर करते हैं. पेट्रोलियम उत्पाद के साथ-साथ खाद्य तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामान महत्वपूर्ण है. ऐसे में अब जब डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होकर 80 रुपये के स्तर तक पहुंच गया है. इस वजह हमें अब आयात के लिए अधिक पैसा खर्च करना पडे़गा.

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट

भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक तेजी कई अंतरराष्ट्रीय कारणों की वजह से रुपये में लगातार गिरावट देखी जा रही है. इस बीच देश के विदेशी मुद्रा भंडार (India's Forex Reserve) में तेजी से गिरावट आई है. देश का व्यापार घाटा भी बढ़ा है. जून में देश का व्यापार घाटा 26.18 अरब डॉलर रहा है. रुपये को संभालने के लिए आरबीआई ने खुले मार्केट में डॉलर की बिक्री भी की है, लेकिन अभी तक इसका असर दिख नहीं रहा है.

आधिकारिक डिजिटल करेंसी का अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर? क्या तैयार है इंडिया

कागज के नोट छापने पर आरबीआई का बड़ा पैसा खर्च होता है. (फोटो- मनीकंट्रोल)

2023 की शुरुआत तक संभावना है कि भारत के पास अपना खुद का "डिजी रुपी" (Digi Rupee) होगा. पूरे भारत में इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए RBI को बड़ी लागत वहन करनी पड़ सकती है.

  • News18Hindi
  • Last Updated : October 27, 2022, 12:23 IST

हाइलाइट्स

बैंकनोट की परिभाषा और दायरे को बढ़ाने की आवश्यकता.
वीडीए (VDAs) से होने वाली कमाई पर 30 फीसदी का टैक्स लगेगा.
कोई भी VDA भारतीय या विदेशी मुद्रा के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हैं.

नई दिल्ली. अक्टूबर 2021 की बात है. तब भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकार को एक खास प्रपोजल दिया था. इसके अनुसार, भारत सीबीडीसी (सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी) के इस्तेमाल से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्थाओं में से एक बनने के पथ पर आगे बढ़ेगा. सेंट्रल बैंक ने आरबीआई एक्ट, 1934, के “बैंकनोट” की परिभाषा के दायरे को बढ़ाने और पैसे को इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में उतारने की सिफारिश की थी.

अब राज्य वित्त मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में कहा है कि आरबीआई यूज केसेस को परख रहा है और चरणबद्ध तरीके से सीबीडीसी को लाने की योजना पर काम कर रहा है ताकि कोई दिक्कत न हो. देखा जाए तो CBDC (Central Bank Digital Currency) एक अच्छा ऑप्शन है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा. परंतु यहां सवाल यह है कि क्या भारत को सच में कैश की जगह किसी अन्य विकल्प की जरूरत है?

क्यों है कैश की जगह डिजिटल करेंसी की जरूरत

2023 की शुरुआत तक संभावना है कि भारत के पास अपना खुद का “डिजी रुपी” (Digi Rupee) होगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022 के लिए बजट पेश करते हुए इसका हिंट दिया था. इसके साथ ही एक नया सेक्शन 115BBH भी लागू किया था. इसके अनुसार, वीडीए (VDAs) से होने वाली कमाई पर 30 फीसदी का टैक्स लगेगा. वीडीए की फुल फॉर्म है वर्चुअल डिजिटल एसेट्स.

VDAs जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी, नॉन-फंजीबल या गवर्नेंस टोकन, गेमिंग कॉइन आदि- अभी भी भारतीय या विदेशी मुद्रा के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं हैं. और, मार्च 2021-2022 (Comscore.com, 2022) में क्रिप्टो बाजार में 17 से 90 मिलियन यूजर्स को देखते हुए, भारत सरकार को इसके संबंध में एक अहम कदम उठाना पड़ा. बेशक, 115बीबीएच, क्रिप्टो लेनदेन को वैध नहीं बनाता है, परंतु यह भविष्य में सरकार के वीडीए एक्सचेंज के संभावित वैधीकरण की तरफ इशारा जरूर करता है. और यह निश्चित रूप से क्रिप्टो ट्रेडर्स को कुछ राहत देता है.

MSMEs द्वारा डिजिटल पेमेंट स्वीकारना

उपरोक्त केस के अलावा, एमएसएमई द्वारा डिजिटल भुगतान की बढ़ती स्वीकृति एक और ऐसी चीज है, जो बाजार में एक कानूनी डिजिटल विकल्प पेश करने के लिए प्रेरित करती है. महामारी फैलने से पहले से ही डिजिटल पेमेंट मोड का उपयोग हो रहा था. महामारी के बाद तो इसके उपयोग में बेहद तेजी आई, क्योंकि लाखों भारतीयों के पास खरीदारी करते समय सोशल डिस्टेंसिंग का एक ही विकल्प बचा था.

तीसरी बात- प्राइवेट वर्चुअल एसेट्स की बढ़ती स्वीकृति को ध्यान में रखते हुए सेंट्रल बैंक को डिजिटल पेमेंट सिस्टम लाना होगा. तेजी से बढ़ती तकनीक के युग में फिलहाल वीडीए का कोई विश्वसनीय जारीकर्ता नहीं है. इन्हें जनता द्वारा ही बनाया और उपयोग किया जा रहा है. इसमें क्रेडिट जोखिम शामिल है, जिसमें आर्थिक अस्थिरता पैदा करने की क्षमता भी है.

क्या अर्थव्यवस्था को गिरा सकता है CBDC?

जीएलजी इनसाइट्स, जनवरी 2022, के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था का लगभग 53% अनौपचारिक या अवैध क्षेत्र को मिलाकर बनता है. पेपर-बेस्ड करेंसी कल्चर को संहिताबद्ध करने से अधिक पारदर्शिता और दक्षता लाकर भारत में शैडो अर्थव्यवस्था को कम करने में मदद मिलेगी.

दूसरे, कागजी पैसे से जुड़े खर्च आरबीआई की खाता-बही के एक महत्वपूर्ण हिस्से का इस्तेमाल कर लेते हैं. क्षतिग्रस्त धन आरबीआई के लिए नई मुद्राओं के मैनेजमेंट और प्रोसेसिंग के खर्च को और बढ़ा देता है. नियंत्रित डिजिटल मुद्रा के उपयोग से इन्हें कम किया जा सकता है.

क्या CBDC के लिए पूरा भारत तैयार है?

डिजिटल करेंसीज़ के साथ डील करते समय ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को समझना होगा. यह अब भी पुराने तरीकों का उपयोग कर रही है, लेकिन आवश्यक बैंकिंग सेवाओं के बिना समस्याओं से घिर सकती है. इसके अलावा, सीबीडीसी का व्यापक उपयोग निश्चित रूप से साइबर खतरों को बढ़ा देगा. सीबीडीसी की स्वीकृति के लिए तकनीकी जानकारी, ऑपरेशनल खर्च, बेहतर साइबर सुरक्षा, सीबीडीसी ऑपरेटरों की ट्रेनिंग और आम जनता को सीबीडीसी से परिचित कराना आवश्यक चीजें हैं. इस प्रकार, पूरे भारत में इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए RBI को बड़ी लागत वहन करनी पड़ सकती है.

ऐसे में, आरबीआई को भारतीय जनसंख्या के अलग-अलग हिस्सों, जिसमें डिजिटली ज्ञान न रखने वाले लोग भी शामिल हैं, पर गहन रिसर्च करनी चाहिए. इसे वर्तमान मौद्रिक नीतियों और मुद्रा संरचना के साथ-साथ वित्त वर्ष 2013 तक डिजिटल मुद्रा के लॉन्च के लिए समझदारी से आगे बढ़ना चाहिए. भारत में साइबर सुरक्षा से जुड़े अपराध काफी होते हैं, तो विभिन्न स्तरों पर सख्त नियम और निर्विवाद साइबर सुरक्षा अति आवश्यक होगी. भारत की सीबीडीसी रणनीति में शून्य व्यवधान और क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं? न्यूनतम आर्थिक झटके की गारंटी होनी चाहिए.

लेखक: एस रवि, बीएसई के पूर्व चेयरमैन, और रवि राजन एंड कंपनी के फाउंडर और मैनेजिंग पार्टनर.

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दिवाली से पहले डॉलर से भर गया देश का खजाना, विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर

विदेशी मुद्रा यानि डॉलर का सबसे ज्यादा खर्च कच्चे तेल तथा सोने के आयात पर खर्च होता है लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी निचले स्तर पर रही हैं और विदेशों से कच्चा तेल आयात करने के लिए पहले के मुकाबले कम डॉलर का खर्च आ रहा है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: November 14, 2020 10:37 IST

देश का विदेशी मुद्रा. - India TV Hindi News

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देश का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है (प्रतीतात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली। दिवाली से ठीक पहले देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर आई है, देश का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक 6 नवंबर को समाप्त हफ्ते के दौरान देश का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 568.49 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, एक हफ्ते के दौरान इसमें 7.77 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है।

कोरोना काल में अर्थव्यवस्था में कमजोरी देखने को मिली है लेकिन देश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ा है जो अर्थव्यवस्था को लेकर आगे चलकर मददगार साबित हो सकता है। साल 2020 के दौरान देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगभग 111 अरब डॉलर की जोरदार बढ़ोतरी हुई है। 2019 के अंत में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 457 अरब डॉलर होता था।

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 147 अरब डॉलर बढ़ा है और मोदी सरकार के दो कार्यकाल में के लगभग साढ़े 6 वर्ष में इसमें 256 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है। मई 2019 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 421 अरब डॉलर होता था और मई 2014 यह 312 अरब डॉलर था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 वर्ष के कार्यकाल में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 119 अरब डॉलर बढ़ा है।

दरअसल विदेशी मुद्रा यानि डॉलर का सबसे ज्यादा खर्च कच्चे तेल तथा सोने के आयात पर खर्च होता है लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें काफी निचले स्तर पर रही हैं और विदेशों से कच्चा तेल आयात करने के लिए पहले के मुकाबले कम डॉलर का खर्च आ रहा है। इसके अलावा सोने का आयात भी अब देश में काफी कम हुआ है और उसपर भी डॉलर खर्च घटा है। यही वजह है कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से बढ़ रहा है।

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