एक दलाल का वेतन क्या है

कुँवर साहब सांसारिक पुरुष न थे। उनका अधिकांश समय धर्म-ग्रंथों के पढ़ने में लगता था। वह किसी ऐसे काम में शरीक न होना चाहते थे, जो उनकी धार्मिक एकाग्रता में बाधक हो। धूर्ती ने उन्हें मानव-चरित्र का छिद्रान्वेषी बना दिया था। उन्हें किसी पर विश्वास न होता था। पाठशालाओं और अनाथालयों को चंदे देते हुए वह बहुत डरते रहते थे, और बहुधा इस विषय में औचित्य की सीमा से बाहर निकल जाते थे-सुपात्रों को भी उनसे निराश होना पड़ता था। पर संयमशीलता जहाँ इतनी सशंक रहती है, वहाँ लाभ का विश्वास होने पर उचित से अधिक निःशंक भी हो जाती है। मिस्टर जॉन सेवक का भाषण व्यावसायिक ज्ञान से परिपूर्ण था; पर कुँवर साहब पर इससे ज्यादा प्रभाव उनके व्यक्तित्व का पड़ा। उनकी दृष्टि में जॉन सेवक अब केवल धन के उपासक न थे, वरन् हितैषी मित्र थे। ऐसा आदमी उन्हें मुगालता न दे सकता था।
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जॉन सेवक—“जी हाँ, बड़ी आसानी से। आपसे मैं हिस्से लेने के लिए विनय करता, पर जब तक एक साल का लाभ दिखा न दूँ, आग्रह नहीं कर सकता। हाँ, इतना अवश्य निवेदन करूँगा कि उस दशा में, संभव है, हिस्से बराबर पर न मिल सके। १००) के हिस्से शायद २००) पर मिलें।"
कुँवर साहब—"मुझे अब एक ही शंका और है। यदि इस व्यवसाय में इतना लाभ हो सकता है, तो अब तक ऐसी और कम्पनियाँ क्यों न खुलीं?"
जॉन सेवक—(हँसकर) "इसलिए कि अभी तक शिक्षित समाज में व्यवसाय-बुद्धि पैदा नहीं हुई। लोगों की नस-नस में गुलामी समाई हुई है। कानून और सरकारी नौकरी के सिवा और किसी ओर निगाह जाती ही नहीं। दो-चार कंपनियाँ खुलीं भी, किन्तु उन्हें विशेषज्ञों के परामर्श और अनुभव से लाभ उठाने का अवसर न मिला। अगर मिला भी, तो बड़ा मँहगा पड़ा! मशीनरी मँगाने में एक के दो देने पड़े, प्रबन्ध अच्छा न हो सका। विवश होकर कंपनियों का कारबार बन्द करना पड़ा। यहाँ प्रायः सभी कंपनियों का यही हाल है। डाइरेक्टरों की थैलियाँ भरी जाती हैं, हिस्से बेचने और विज्ञापन देने में लाखों रुपये उड़ा दिये जाते हैं, बड़ी उदारता से दलालों का आदर-सत्कार किया जाता है, इमारतों में पूँजी का बड़ा भाग खर्च कर दिया जाता है, मैनेजर भी बहुवेतन-भोगो रखा जाता है। परिणाम क्या होता है? डाइरेक्टर अपनी जेब भरते हैं, मैनेजर अपना पुरस्कार भोगता है, दलाल अपनी दलाली लेता है; मतलब यह कि सारी पूँजी ऊपर-ही-ऊपर उड़ जाती है। मेरा सिद्धान्त है, एक दलाल का वेतन क्या है कम-से-कम खर्च और ज्यादा-से-ज्यादा नफा। मैंने एक कौड़ी दलाली नहीं दी, विज्ञापनों की मद उड़ा दी। यहाँ तक कि मैंने मैनेजर के लिए एक दलाल का वेतन क्या है भी केवल ५००) ही वेतन देना निश्चित किया है, हालाँ कि किसी दूसरे कारखाने में एक हजार सहज ही में मिल जाते। उस पर घर का आदमी। डाइरेक्टरों के बारे में भी मेरा यही निश्चय है कि सफर-खर्च के सिवा और कुछ न दिया जाय।"
एक दलाल का वेतन क्या है
जगदलपुर : कर्मचारी फेडरेशन ने दीपावली के पहले वेतन भुगतान की मांग
जगदलपुर, 12 अक्टूबर (हि.स.)। छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन ने कलेक्टर से मांग की है कि जिले के समस्त शासकीय अर्ध शासकीय कर्मचारी अधिकारियों को अक्टूबर माह का वेतन दीपावली के पूर्व किया जाए। छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के संभाग प्रभारी कैलाश चौहान संभागीय संयोजक गजेंद्र श्रीवास्तव तथा जिला संयोजक आरडी तिवारी ने कहा कि हिंदुओं का प्रमुख त्योहार दीपावली 24 अक्टूबर सोमवार को है तथा इसके पूर्व दो दिन का अवकाश है। अत: दीपावली महापर्व के पूर्व समस्त शासकीय अर्ध शासकीय कर्मचारी अधिकारी का वेतन भुगतान किया जाए जिससे कर्मचारी दिवाली मना सकें।
तो क्या पत्रकारों को दलाल समझती है सरकार !
लखनऊ, 17 मार्च। आरोप हर पेशेवर पर लगते हैं। सरकारी कर्मचारियों/अफसरों पर रिश्वत लेने के आरोप लगते हैं। सरकारी डाक्टरों पर प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप लगते हैं। सरकारी शिक्षकों पर ट्यूशन के आरोप लगते हैं। धार्मिक गुरुओं पर धर्म की ठेकेदारी के आरोप लगते हैं।.. इसी तरह हर पेशे के हर पेशेवर पर आरोप लगते हैं।
पत्रकारों पर दलाली के आरोप लगते हैं। पत्रकारों पर ऐसे आरोप लगना कोई नयी बात नहीं है। नयी और आश्चर्यजनक बात ये है कि पत्रकार दलाली करते हैं, इस बेबुनियाद और वाहियात बात पर शायद सरकार ने यक़ीन कर लिया है। पत्रकार दलाल होते हैं इस बात पर सरकार एक दलाल का वेतन क्या है ने खासतौर से सरकार के राज्य सम्पत्ति विभाग ने एक तरह से मोहर लगा दी है।
आरपीएफ ने टिकट दलाल को पकड़ा
आरपीएफ पटना द्वारा अवैध रूप से टिकटों की खरीद बिक्री करने वाले रेलवे टिकट दलालों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत एक टिकट दलाल को पकड़ा गया है। जंक्शन के निरीक्षक प्रभारी पटना विनोद कुमार सिंह के निर्देश पर कुंदन कुमार व पूजा रानी कैथवास के संग आरक्षी विपिन कुमार चतुर्वेदी व आरक्षी चिंताहरण पाण्डेय ने राजेंद्र नगर में छापेमारी की। राजेंद्र नगर के गली नंबर 15 स्थित रैपिड डाटा सॉल्यूशन में छापेमारी के दौरान दुकान के संचालक को कुल 59 टिकटों के साथ पकड़ा गया। इसमें से 58 टिकट पहले के हैं जिसपर सफर हो चुका है। जबकि एक टिकट अभी भविष्य का है। पकड़ा गया टिकट दलाल राजीव रंजन, उम्र 29 वर्ष, पिता शिव कुमार साव राजेंद्रनगर का रहने वाला है। छापेमारी में उसके दुकान से आरपीएफ ने एक भविष्य के टिकट, 58 पहले के इस्तेमाल हो चुके ई टिकट, एक मोबाइल फोन, एक मॉनिटर, एक सीपीयू, एक प्रिंटर, एक माउस व 14 सौ रुपए नकद बरामद किए हैं।
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