उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता

GK-in-Hindi.com
दुनिया के सभी देश अपने आसपास के देशों से व्यापार बढ़ाना चाहते हैं ताकि उनके देश में मैन्यूफैक्चरिंग का कार्य कर रही कंपनियां बड़े स्तर पर अपने उत्पाद बेच सकें और अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकें। इस तरह का अंतराष्ट्रीय मुनाफा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने का एक सबसे अच्छा और सबसे बेहतर विकल्प होता है। हर देश की कंपनी चाहती है कि वह दूसरे देशों में अपना व्यापार फैलाए। व्यापार को फैलाने के लिए दो देशों के मध्य व्यापार की प्रक्रिया को सरल बनाना आवश्यक होता है इस प्रक्रिया को आसान बनाने हेतु सभी देश आपस में कुछ समझौते करते हैं यह समझौते विशेषकर उन देशों के मध्य होते हैं जिनके साथ देश की भौतिक सीमा लगती हो। जैसे कि भारत की सीमा नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों के साथ लगती है इसलिए यदि भारत इन देशों के साथ व्यापार करे तो ज्यादा सुगम होगा बजाए यूरोपीय के देशों के साथ व्यापार करने के। क्योंकि पड़ोसी देशों के बाजार तक अपना सामान पहुँचाना ज्यादा आसान व सहज होता है। इसलिए जिन देशों की भौतिक सीमा आपस में मिलती हैं वे अपने व्यापार को और अधिक सरल व सहज बनाने के लिए कुछ सीमा समझौते करते हैं जैसे कि वे किसी देश से आने वाले सामान पर टैक्स कम लगाएंगे या फिर इसे बिल्कुल टैक्स फ्री कर देंगे जिससे दोनों देशों की कंपनियां आपस में सामान का आदान-प्रदान कर सकें। इस प्रकार के समझौते दो या दो से अधिक देशों के मध्य आयात-निर्यात आसान बनाते हैं जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। इसी प्रकार का एक समझौता है नाफ्टा। जो उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता भौतिक रूप से जुड़े तीन देश सयुंक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको के बीच हुआ है। नाफ्टा के अंतर्गत इन तीनों देशों ने एक दूसरे के साथ किए जा रहे किसी भी प्रकार के व्यापारिक आयात-निर्यात को निशुल्क कर दिया है।
NAFTA की फुल फॉर्म :
NAFTA की फुल फॉर्म है North American Free Trade Agreement इसे हिन्दी में नार्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट लिखा जाता है तथा इसका हिन्दी में अर्थ होता है उत्तरी अमेरिका मुक्त व्यापार समझौता। जैसे कि इसके नाम से ही पता चलता है कि यह समझौता उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप पर स्थित देशों के मध्य हुआ एक फ्री ट्रेड एग्रीमेंट समझौता है जो दो या दो से अधिक देशों के मध्य होने वाले व्यापार को टैक्स फ्री बनाता है। इस समझौते के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको तीनों देश बिना किसी सीमा शुल्क के अपनी सीमाओं के आर-पार आयात-निर्यात कर सकते हैं। जिससे इन तीनों देशों की कंपनियों को संयुक्त रूप से लाभ पहुँचता है तथा इन तीनों देशों की कंपनियां बिना किसी रूकावट के आपस में व्यापार कर सकती हैं और साथ ही अपने लाभ के अनुसार इन तीनों देशों में से किसी भी देश में बिना किसी बाधा के अपना मैन्युफैक्चरिंग हब स्थापित कर सकती हैं। यह समझौता वर्ष 1993 में किया गया था तथा 01 जनवरी 1994 से प्रभावी हो गया था। इस समझौते के समय अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन थे। जो कि वर्ष 2001 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे।
नाफ्टा समझौता किए जाने के बाद तीनों देशों की अर्थव्यवस्था पर मिले-जुले प्रभाव देखने को मिले। जिनमें तीनों देशों के संयुक्त रूप से कुछ फायदे हुए तथा संयुक्त रूप से ही कुछ नुकसान उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता भी हुए। संयुक्त राज्य अमेरिका की नजर से देखा जाए तो उसने यह समझौता अपने देश की कंपनियों को कनाडा और मैक्सिको के बाजार में सस्ते दामों पर अपने उत्पाद बेचने हेतु सक्षम बनाने के लिए किया था और साथ ही वह चाहता था कि मेक्सिको से अवैध तरीके से आ रहे अप्रवासियों पर भी लगाम लग सके। हालांकि अमेरिका इस उद्देश्य में ज्यादा सफल नहीं हो सका और इसके विपरीत मेक्सिको से आने वाले अवैध अप्रवासियों की सँख्या बढ़ गई और साथ ही इसका एक साइड इफेक्ट यह हुआ कि यूएसए की कंपनियां अपने मैन्युफैक्चरिंग हब मैक्सिको जैसे देश में स्थापित करने लगी जहां पर उन्हें सस्ते में मैन-पॉवर मिल जाती थी जिस कारण अमेरिका में बेरोजगारी बढ़ने लगी। इसके अलावा नाफ्टा केे तहत इन तीनों देशों ने एक दूसरे को मोस्ट फेवर्ड नेशन का स्टेटस भी दिया जिसके तहत तीनों देशों को एक दूसरे के व्यापारिक लाभ का बराबर ध्यान रखना था। इस समझौते के अनुसार यह तय किया गया था कि तीनों देशों के मध्य व्यापार में आने वाली सभी बाधाओं को दूर किया जाएगा और देश के भीतर चलने वाले घरेलू कानूनों को इस समझौते से नीचे रखा जाएगा और घरेलु कानून किसी भी प्रकार से इन तीनों उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता देशों के मध्य होने वाले व्यापार को प्रभावित नही कर सकेंगे। इसके अलावा इस समझौते में यह भी प्रावधान रखा गया कि तीनों देशों की कंपनियों के मध्य शुद्ध प्रतिस्पर्धा होगी। इस समझौते के बाद यह संभावना भी जताई गई कि इन तीनों देशों में इन्वेस्टमेंट की अपॉर्चुनिटी एक साथ बढ़ेगी और साथ ही यदि व्यापार से संबंधित कोई पुराना विवाद है तो उसे सुलझाया जाएगा।
परन्तु इन सब के बावजूद इस समझौते को अमेरिका में सदैव एक नकारात्मक नजरिए से देखा गया और यह समझौता वहां की राजनीति में दो दशकों तक बहस का मुख्य विषय बना रहा। बहुत से तर्कों के अनुसार अमेरिका इस समझौते के तहत यूरोपियन यूनियन जैसा संघ बनाना चाहता था। लेकिन इस समझौते के प्रति लोगों में रोष की भावना थी जो समय-समय पर उभर कर सामने आती रही। परिणाम स्वरूप वर्ष 2018 में इस समझौते को "यूनाइटेड स्टेट्स-मैक्सिको-कनाडा संधि" (यूएसएमसीए) से बदल दिया गया।
मुक्त व्यापार की नीति से आप क्या समझते हैं
मुक्त व्यापार आयात और निर्यात के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने की नीति है। विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के खरीदारों और विक्रेता स्वैच्छिक रूप से माल और सेवाओं पर टैरिफ, कोटा, सब्सिडी या प्रतिबंध लागू करने के बिना सरकार के व्यापार कर सकते हैं। मुक्त व्यापार व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद के विपरीत है।
राजनीतिक रूप से, एक मुक्त व्यापार नीति किसी भी व्यापार नीतियों की अनुपस्थिति हो सकती है, इसलिए सरकार को मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है। इसे लाईसेज़-फेयर ट्रेड या व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है। मुक्त व्यापार समझौते वाली सरकारें आयात और निर्यात कराधान के सभी नियंत्रणों को जरूरी नहीं छोड़ती हैं। आधुनिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में, कुछ एफटीए परिणामस्वरूप पूरी तरह से मुक्त व्यापार करते हैं।
मुक्त व्यापार का अर्थशास्त्र
एक मुक्त व्यापार व्यवस्था में, दोनों अर्थव्यवस्थाएं तेजी से विकास दर का अनुभव कर सकती हैं। यह पड़ोसियों, कस्बों या राज्यों के बीच स्वैच्छिक व्यापार से अलग नहीं है। नि: शुल्क व्यापार कंपनियों को विनिर्माण वस्तुओं और सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाता है जहां उनके पास एक अलग तुलनात्मक लाभ होता है, 1 9 17 में राजनीतिक अर्थव्यवस्था और कराधान के सिद्धांतों पर अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो द्वारा व्यापक रूप से लोकप्रिय लाभ। अर्थव्यवस्था की विविधता, ज्ञान, और कौशल, मुक्त व्यापार भी विशेषज्ञता और श्रम विभाजन को प्रोत्साहित करता है।
कुछ मुद्दों को आम जनता से मुक्त व्यापार जैसे अलग-अलग मुद्दों से अलग करते हैं। शोध से पता चलता है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में संकाय अर्थशास्त्री आम जनता की तुलना में मुक्त व्यापार नीतियों का समर्थन करने की सात गुना अधिक संभावना रखते हैं। अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्राइडमैन ने कहा, अर्थशास्त्र पेशे मुक्त व्यापार की वांछनीयता के विषय पर लगभग सर्वसम्मति से है। इसके बावजूद, विशेषज्ञों ने मुक्त व्यापार नीतियों को बढ़ावा देने के प्रयासों में काफी हद तक असफल रहा है।
मुक्त व्यापार और संयुक्त राज्य अमेरिका
संयुक्त राज्य अमेरिका के पास अन्य देशों के साथ वास्तविक मुक्त व्यापार नहीं है, जिनमें देशों के साथ एफटीए भी शामिल है। कई राजनेता इस आधार पर मुक्त व्यापार का विरोध करते हैं कि विनिर्माण जैसे कुछ क्षेत्रों को विदेशी उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। हालांकि उपभोक्ताओं को सुरक्षा मूल्यों के तहत उच्च कीमतों और कम विकल्पों का सामना करना पड़ता है, फिर भी अमेरिकी खरीद के लिए आंदोलन आम तौर पर व्यापक समर्थन उत्पन्न करते हैं।
गैर-अमेरिकी विक्रेताओं को आयात पर प्रवेश और शुल्क के लिए बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उन्हें अमेरिकी निर्यात के लिए सब्सिडी के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी। विशेष रुचि समूहों ने स्टील, चीनी, ऑटोमोबाइल, दूध, टूना, चिकन, गोमांस और डेनिम कपड़ों सहित सैकड़ों विदेशी उत्पादों पर व्यापार प्रतिबंध लगाने के लिए सफलतापूर्वक लॉब किया है।
मुक्त व्यापार समझौते और वित्तीय बाजार
अमेरिकी सरकार और विश्व व्यापार संगठन वित्तीय सेवाओं सहित वित्तीय बाजारों में सार्वजनिक रूप से अधिक सीमा पार व्यापार का समर्थन करते हैं। हालांकि, पूरी तरह से मुक्त व्यापार असंभव है। वित्तीय बाजारों के लिए कई सुपरनैशनल नियामक संगठन हैं, जैसे कि बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल कमेटी, सिक्योरिटीज आयोग का अंतर्राष्ट्रीय संगठन और पूंजी आंदोलनों और अदृश्य लेनदेन समिति। विदेशी वित्तीय बाजारों में बढ़ी हुई पहुंच से अमेरिकी निवेशकों को प्रतिभूतियों, मुद्राओं और वित्तीय उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान की जाती है।
मुक्त व्यापार पर हिचक कम हो
वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कारण सुस्त होती जा रही है. ऐसी स्थिति में अगर हमारी व्यापारिक हिस्सेदारी में तीन-चार फीसदी की भी बढ़ोतरी होती है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत उत्साहजनक होगा.
तीन साल पहले चीन समेत 15 देशों के मुक्त व्यापार समझौते ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ से भारत ने अचानक अपने पैर खींच लिये थे. इस समझौते के लिए बातचीत लगभग 10 वर्षों से चल रही थी, जिसमें भारत की सक्रिय और उत्साहपूर्ण हिस्सेदारी थी. वर्तमान में यह समूह दुनिया की लगभग 30 फीसदी जीडीपी का प्रतिनिधित्व करता है और आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. भारत के बिना इस समूह के सदस्यों के बीच 2.3 ट्रिलियन डॉलर का आपसी व्यापार होता है.
इस साल जनवरी से लागू यह समझौता लगभग 90 फीसदी शुल्कों को हटाने की दिशा में कार्यरत है. इस प्रकार यह एक तरह का आर्थिक संघ बन जायेगा. इस समझौते को लेकर भारत को यह आशंका थी कि शुल्क-मुक्त चीनी सामानों से घरेलू बाजार भर जायेगा, लेकिन चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा बीते तीन सालों से लगातार बढ़ रहा है.
साथ ही, लद्दाख में झड़प के बावजूद कुल आपसी व्यापार में भी बढ़ोतरी हो रही है. भारत की जीडीपी वृद्धि भी पटरी पर आती दिख रही है और सात-साढ़े सात फीसदी दर की ओर अग्रसर है. कई वैश्विक निवेशकों की रणनीति ‘चाइना प्लस वन’ से भारत को भी आखिरकार फायदा होगा, क्योंकि वे चीन से बाहर वियतनाम, थाईलैंड, भारत जैसे देशों में फैक्ट्री लगाना चाहते हैं.
क्षेत्रीय भागीदारी समझौते में शामिल न होकर भारत ने इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्स्टाइल, ऑटोमोटिव जैसे क्षेत्रों से संबंधित आपूर्ति शृंखला में निवेश आकर्षित करने का मौका शायद कम कर दिया है. निवेशक वहां निवेश करना चाहते हैं, जहां पूरी मूल्य शृंखला उपलब्ध हो और अगर अलग-अलग देशों में निवेश करना पड़े, तो वे समझौते में शामिल देशों को वरीयता देंगे, ताकि वस्तुओं की आवाजाही आसानी से हो सके.
इसलिए, लगता है कि केवल व्यापार घाटे पर संकीर्ण ध्यान देकर भारत से मूल्य शृंखला की बस छूट गयी है. सनद रहे, इस समझौते में शामिल 15 में से 12 देशों के साथ भारत का पहले से ही मुक्त व्यापार समझौता था और अब ऑस्ट्रेलिया से भी ऐसा समझौता हुआ है. दुनिया में तीन बड़े व्यापार समूह- क्षेत्रीय आर्थिक भागीदारी के अलावा ट्रांस पैसिफिक भागीदारी और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क- हैं,
जिनके तहत एशिया का बड़ा हिस्सा आता है. हाल में बने फ्रेमवर्क में 14 देश हैं, जबकि ट्रांस पैसिफिक भागीदारी में 11 देश हैं. ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, वियतनाम, जापान और ब्रुनेई तीनों समूह के सदस्य हैं. भारत केवल एक का सदस्य है. चीन दो समूह में नहीं है, क्योंकि ये समूह चीन को बाहर रखने के लिए ही बनाये गये हैं.
ट्रांस पैसिफिक भागीदारी पहले के ऐसी भागीदारी का नया रूप है, जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति ओबामा के समय अमेरिका करता था, पर ट्रंप प्रशासन ने इससे अपने को अलग कर लिया था. नये समूह में अभी अमेरिका शामिल नहीं हुआ है. यह केवल एक व्यापार समझौता नहीं था, बल्कि इसका एक उद्देश्य एशिया में भविष्य के व्यापार नियमों को प्रभावित करना तथा चीन के बढ़ते वर्चस्व का प्रतिकार करना भी था.
इसीलिए इसमें निवेश नियमों, श्रम एवं पर्यावरण मानकों, मूल्य शृंखला का अंतरसंबंध व्यापक करना जैसे अनेक प्रावधान भी हैं. ट्रांस पैसिफिक भागीदारी महत्वाकांक्षी है और अब यह इतना आकर्षक हो गया है कि चीन भी उसके दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन भी सदस्यता के इच्छुक हैं. ध्यान रहे, 2018 से ही जापान का मुक्त व्यापार समझौता यूरोपीय संघ से है. इसका अर्थ यह है कि यूरोपीय संघ का भी एक पैर इसमें है.
इस समझौते (और चीन के नेतृत्व वाले भागीदारी समझौते से भी) से अलग रहने का खामियाजा अमेरिका भुगत रहा है. उसके व्यापार अवसर छूट रहे हैं और उसका भू-राजनीतिक प्रभाव सिमट रहा है. यही कारण है कि इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क की स्थापना के लिए उसने अतिसक्रियता दिखायी है. इस समूह में 14 देश हैं और वैश्विक जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी 28 फीसदी है.
इसके चार आधार हैं- व्यापार, आपूर्ति शृंखला, कराधान और भ्रष्टाचार विरोध तथा स्वच्छ ऊर्जा. फ्रेमवर्क का कोई भी सदस्य इनमें से किसी आधार से अलग हो सकता है. यहां भी भारत ने अपनी हिचकिचाहट दिखाते हुए अपने को व्यापार से अलग रखा है. भारत के व्यापार मंत्री ने कहा कि चूंकि श्रम एवं पर्यावरण मानकों, डिजिटल व्यापार और सार्वजनिक खरीद जैसे मुद्दे शामिल हैं तथा इन पर सदस्यों में आम सहमति नहीं है, इसीलिए उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता भारत ने अपने को अलग रखा है. उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अमेरिका और जापान जैसे देशों द्वारा थोपे गये उच्च श्रम मानक भारत जैसे विकासशील देश के लिए बाधक हो सकते हैं.उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता
इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि भारत निम्न श्रम सुरक्षा मानकों का अनुपालन करता रहेगा या फिर पर्यावरण के लिए खतरनाक उद्योगों को कमजोर कानूनों के जरिये बढ़ावा देता रहेगा, ताकि वैश्विक व्यापार में उसकी हिस्सेदारी में बढ़ोतरी हो, लेकिन वे दिन अब अतीत हो चुके हैं. भारत ने पश्चिम के ढर्रे पर श्रम एवं पर्यावरण मानकों को अपनाने का वादा किया है, क्योंकि वह यूरोपीय संघ से मुक्त व्यापार समझौते के लिए प्रयासरत है.
ऐसे में व्यापार से अलग रहने का क्या तुक है? असल में, क्षेत्रीय आर्थिक भागीदारी से अलग होने के तुरंत बाद से भारत सक्रियता के साथ ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, कनाडा और यूरोपीय संघ से मुक्त व्यापार समझौतों के लिए कोशिश करता रहा है. फिर इंडो-प्रशांत भागीदारी जैसे बहुपक्षीय समझौतों में शामिल होने में हिचक क्यों है? भारत का विकास मुख्य रूप से उत्पादन और सेवा के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर निर्भर है.
हमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खुलेपन के सिद्धांत के प्रति प्रतिबद्ध रहना होगा. हमारे शुल्क उदार होने चाहिए तथा हमें घरेलू उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए लगातार संरक्षण देने के उपायों से भी परहेज करना होगा. वैश्विक भागीदारी से मूल्य संवर्द्धन के साथ रोजगार के अवसर भी बनेंगे. ‘चाइना प्लस वन’ से पैदा हुए मौके हमेशा नहीं होंगे. यह हमारे व्यापक हित में है कि हम हर क्षेत्र में मुक्त या लगभग मुक्त व्यापार को अपनायें.
वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कारण सुस्त होती जा उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता रही है. ऐसी स्थिति में अगर हमारी व्यापारिक हिस्सेदारी में तीन-चार फीसदी की भी बढ़ोतरी होती है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत उत्साहजनक होगा. और, यह तभी संभव होगा, जब हम खुले और मुक्त व्यापार को लेकर कम आशंकित होंगे.
Prabhat Khabar App :
देश, दुनिया, बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस अपडेट, टेक & ऑटो, क्रिकेट और राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
कनाडा के साथ तनाव के बीच ट्रंप सिंगापुर रवाना
क्यूबेक सिटी, 10 जून (आईएएनएस)| अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व्यापार और उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (नाफ्टा) जैसे मुद्दों पर कनाडा के साथ तनाव के बीच शनिवार को जी7 सम्मलेन से सिंगापुर के लिए रवाना हो गए जहां वह 12 जून को उत्तर कोरिया के शीर्ष नेता किम जोंग-उन से मुलाकात करेंगे। ट्रंप जी7 सम्मलेन से समय से पहले ही प्रस्थान कर लिया।
समाचार एजेंसी 'एफे' के मुताबिक, राष्ट्रपति के साथ सिंगापुर के लिए रवाना हुए उनके प्रतिनिधिमंडल में व्हाइट हाउस के स्टाफ प्रमुख जॉन केली और ट्रंप के आर्थिक सलाहकार जॉन बोल्टन शामिल हैं।
जी7 सम्मेलन के दौरान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन टड्रो और ट्रंप के बीच तनाव देखने को मिला। अमेरिकी राष्ट्रपति नाफ्टा के हर पांच साल पर स्वत: भंग किए जाने पर जोर देते रहे और धमकी दी कि अमेरिका उन देशों के साथ व्यापार बंद कर देगा जो उसके निर्यात पर सीमा शुल्क लगाते हैं।
कनाडाई प्रधानमंत्री ने कहा कि यह बात यह जानते हुए कि उनकी सरकार ने अमेरिका से कनाडाई स्टील और एल्यूमिनीयम पर कड़े सीमा शुल्क लगाने की शिकायत की थी, बावजूद इसके राष्ट्रपति जो कह रहे हैं उसे कहते रहेंगे
उन्होंने कहा, मैंने राष्ट्रपति से यह स्पष्ट कर दिया है कि हम (जवाब में सीमा शुल्क लागू करना) ऐसा कुछ करना पसंद नहीं करते, लेकिन यह कुछ ऐसा है जिसे हम निश्चित रूप से करेंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा, कनाडाई विनम्र और विवेकशील होते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें पीछे कर दिया जाए।
ट्रंप ने उड़ान के दौरान ट्वीट किया कि वह किम के साथ मुलाकात को लेकर आशावादी हैं।
उन्होंने कहा, मैं सिंगापुर के रास्ते में हूं, जहां हमारे पास उत्तर कोरिया और दुनिया के लिए वास्तव में एक शानदार परिणाम हासिल करने का मौका है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें लगता है कि यह मौका बेकार नहीं जाएगा।
(ये खबर सिंडिकेट फीड से ऑटो-पब्लिश की गई है. हेडलाइन को छोड़कर क्विंट हिंदी ने इस खबर में कोई बदलाव नहीं किया है.)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)
मुक्त व्यापार की नीति से आप क्या समझते हैं
मुक्त व्यापार आयात और निर्यात के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने की नीति है। विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के खरीदारों और विक्रेता स्वैच्छिक रूप से माल और सेवाओं पर टैरिफ, कोटा, सब्सिडी या प्रतिबंध लागू करने के बिना सरकार के व्यापार कर सकते हैं। मुक्त व्यापार व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद के विपरीत है।
राजनीतिक रूप से, एक मुक्त व्यापार नीति किसी भी व्यापार नीतियों की अनुपस्थिति हो सकती है, इसलिए सरकार को मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है। इसे लाईसेज़-फेयर ट्रेड या व्यापार उदारीकरण के रूप में जाना जाता है। मुक्त व्यापार समझौते वाली सरकारें आयात और निर्यात कराधान के सभी नियंत्रणों को जरूरी नहीं छोड़ती हैं। आधुनिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में, कुछ एफटीए परिणामस्वरूप पूरी तरह से मुक्त व्यापार करते हैं।
मुक्त व्यापार का अर्थशास्त्र
एक मुक्त व्यापार व्यवस्था में, दोनों अर्थव्यवस्थाएं तेजी से विकास दर का अनुभव कर सकती हैं। यह पड़ोसियों, कस्बों या राज्यों के बीच स्वैच्छिक व्यापार से अलग नहीं है। नि: शुल्क व्यापार कंपनियों को विनिर्माण वस्तुओं और सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम बनाता है जहां उनके पास एक अलग तुलनात्मक लाभ होता है, 1 9 17 में राजनीतिक अर्थव्यवस्था और कराधान के सिद्धांतों पर अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डो द्वारा व्यापक रूप से लोकप्रिय लाभ। अर्थव्यवस्था की विविधता, ज्ञान, और कौशल, मुक्त व्यापार भी विशेषज्ञता और श्रम विभाजन को प्रोत्साहित करता है।
कुछ मुद्दों को आम जनता से मुक्त व्यापार जैसे अलग-अलग मुद्दों से अलग करते हैं। शोध से पता चलता है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में संकाय अर्थशास्त्री आम जनता की तुलना में मुक्त व्यापार नीतियों का समर्थन करने की सात गुना अधिक संभावना रखते हैं। अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्राइडमैन ने कहा, अर्थशास्त्र पेशे मुक्त व्यापार की वांछनीयता के विषय पर लगभग सर्वसम्मति से है। इसके बावजूद, विशेषज्ञों ने मुक्त व्यापार नीतियों को बढ़ावा देने के प्रयासों में काफी हद तक असफल रहा है।
मुक्त व्यापार और संयुक्त राज्य अमेरिका
संयुक्त राज्य अमेरिका के पास अन्य देशों के साथ वास्तविक मुक्त व्यापार नहीं है, जिनमें देशों के साथ एफटीए भी शामिल है। कई राजनेता इस आधार पर मुक्त व्यापार का विरोध करते हैं कि विनिर्माण जैसे कुछ क्षेत्रों को विदेशी उत्पादकों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। हालांकि उपभोक्ताओं को सुरक्षा मूल्यों के तहत उच्च कीमतों और कम विकल्पों का सामना करना पड़ता है, फिर भी अमेरिकी खरीद के लिए आंदोलन आम तौर पर व्यापक समर्थन उत्पन्न करते हैं।
गैर-अमेरिकी विक्रेताओं को आयात पर प्रवेश और शुल्क के लिए बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उन्हें अमेरिकी निर्यात के लिए सब्सिडी के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी। विशेष रुचि समूहों ने स्टील, चीनी, ऑटोमोबाइल, दूध, टूना, चिकन, गोमांस और डेनिम कपड़ों सहित सैकड़ों विदेशी उत्पादों पर व्यापार प्रतिबंध लगाने के लिए सफलतापूर्वक लॉब किया है।
मुक्त व्यापार समझौते और वित्तीय बाजार
अमेरिकी सरकार और विश्व व्यापार संगठन वित्तीय सेवाओं सहित वित्तीय बाजारों में सार्वजनिक रूप से अधिक सीमा पार व्यापार का समर्थन करते हैं। हालांकि, पूरी तरह से मुक्त व्यापार असंभव है। वित्तीय बाजारों के लिए कई सुपरनैशनल नियामक संगठन हैं, जैसे कि बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल कमेटी, सिक्योरिटीज आयोग का अंतर्राष्ट्रीय संगठन और पूंजी आंदोलनों और अदृश्य लेनदेन समिति। विदेशी वित्तीय बाजारों में बढ़ी हुई पहुंच से अमेरिकी निवेशकों को प्रतिभूतियों, मुद्राओं और वित्तीय उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान की जाती है।