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आदेश बंद करो

आदेश बंद करो
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फोटो – पीटीआई)

District Bhopal

भारत वर्ष की हृदय स्‍थली मध्‍यप्रदेश राज्‍य के हृदय स्‍थल भोपाल जिले का गठन वर्ष 1972 में हुआ ।भोपाल भारतीय राज्य मध्य प्रदेश का एक जिला है। जिले का मुख्यालय भोपाल है जो राज्य की राजधानी भी है। भोपाल जिले के उत्तर में गुना जिला, उत्तर-पूर्भ में विदिशा जिला, पूरब व दक्षिण-पूर्व में रायसेन जिला, दक्षिण व दक्षिण-पश्चिम में सिहोर जिला तथा उत्तर-पश्चिम में राजगढ़ जिला स्थित है। भोपाल शहर जिले के दक्षिणी भाग में स्थित है।

बच्चों की रैली, बड़ों को आवाज, प्लास्टिक बंद करो ये सबके फ्यूचर की बात

अलवर, बुधवार को कक्षा छह से आठ तक के बच्चों ने प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिए सड़कों पर उतर आए। सेंट एंसलम्स स्कूल से सब्जी मंडी और स्कूल तक रैली निकाली गई। बच्चों ने कहा- रुको, प्लास्टिक बंद करो। बच्चों ने सरकार और प्रशासन के सामने लोगों को ठीक से जागरूक करने का प्रयास किया। सेंट एंसलम्स स्कूल एएसपी यशपाल त्रिपाठी ने रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इसके बाद बच्चे एनईबी के माध्यम से नारे लगाते हुए मंडी मोड से बाहर आ गए।

बच्चे तख्तियां लिए हुए थे। जिस पर पर्यावरण, जानवरों और इंसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए सचित्र नारे लिखे हुए थे। जिसमें कहा गया था कि अगर प्लास्टिक पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो झीलों में मछलियों की जान भी नहीं बचेगी। वहां भूमि बंजर हो जाएगी। गर्मियों में सूखे की स्थिति बनेगी। इसके अलावा प्लास्टिक से लेकर महामारी तक कई तरह की बीमारियां फैल सकती हैं। ये सब प्लास्टिक के साइड इफेक्ट हैं। इससे बचने के लिए हम सभी को प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद करना होगा।

कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने प्लास्टिक को बंद करने का आदेश दिया। लेकिन फिर भी कानून का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। जिससे बाजार में धड़ल्ले से पॉलीथिन में सामान बिक रहा है। बच्चों ने बाजार के दुकानदारों के अलावा आम लोगों को जागरूक करने पर जोर दिया। वह कहता है कि एक कपड़े का थैला लो और बाजार में खरीदारी करने जाओ। ताकि प्लास्टिक ऑर्डर करने की जरूरत न पड़े। जब इसकी जरूरत नहीं रहेगी तो दुकानदार भी इसे रखना बंद कर देगा। इसे सख्ती से लागू करने की जरूरत है।

बंद करो ये गुंडागर्दी- उपद्रव के आरोपियों के घर चला बुलडोजर तो भड़क गये बॉलीवुड एक्टर, मिला ऐसा जवाब

यूपी में हुए दंगे और पत्थरबाजी के आरोपियों के घर बुलडोजर चलाये जाने पर अब कमाल आर खान ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ये किसी आतंकवादी घटना से कम नहीं है।

बंद करो ये गुंडागर्दी- उपद्रव के आरोपियों के घर चला बुलडोजर तो भड़क गये बॉलीवुड एक्टर, मिला ऐसा जवाब

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (फोटो – पीटीआई)

बॉलीवुड अभिनेता कमाल आर खान देश के अधिकतर विवादित मुद्दों पर अपनी राय खुलकर रखते हैं। नुपुर शर्मा के बयान के बाद शुरू हुए विवाद पर भी KRK लगातार अपनी राय रख रहे हैं। यूपी में हुए दंगे और पत्थरबाजी के आरोपियों के घर बुलडोजर चलाये जाने पर अब कमाल आर खान ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। KRK ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ये किसी आतंकवादी घटना से कम नहीं है।

कमाल आर खान (KRK) ने ट्विटर पर लिखा कि “कोर्ट के आदेश और फैसले के बिना किसी का घर तोड़ना आतंकवाद से कम नहीं है। अगर किसी ने अपराध किया है तो कोर्ट फैसला करे और सजा दे। अपनी गुंडागर्दी बंद करो।” एक और ट्वीट करते हुए कमाल आर आदेश बंद करो खान ने लिखा कि “भाजपा एक साल के अन्दर नूपुर शर्मा के ऊपर लगा बैन हटा लेगी।” सोशल मीडिया पर लोग इस पर अब अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं।

लोगों की प्रतिक्रियाएं: एक यूजर ने लिखा कि ‘अतिक्रमण हटाने के लिए कोर्ट में नहीं जाना पड़ता भाई साहब। स्थानीय निकाय आदेश बंद करो निर्णय ले सकता है।’ रोहित नाम के यूजर ने लिखा कि ‘चलो भाई, अदालतों में हजारों मामले लंबित हैं और अगर अदालत इसे सुलझाती है तो कार्रवाई करने में कम से कम 5 साल लगेंगे।’ एक यूजर ने लिखा कि ‘फतवा जारी करना भी गुंडागर्दी है। अगर आपको तकलीफ है तो कोर्ट जाओ, जैसे आपने कोर्ट के बारे में राय दी यहां।’

KRITI SANON IN SIZZLING LOOK

ISHA AMBANI BECOMES MOTHER OF TWINS

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SUNNY LEONE - BATHTUB PHOTOSHOOT

एक यूजर ने लिखा कि ‘पहले कानून आप जानिए, अतिक्रमण हटाने के लिए कोर्ट आदेश की जरूरत नहीं होती। बस हो ये रहा है कि जो गलत काम कर रहे है, उनको ही चिन्हित करके, अगर उन्होंने अतिक्रमण किया है तो उसे तोड़ा जा रहा है।’ ब्रजेंद्र चौधरी नाम के यूजर ने लिखा कि ‘अगर आपका घर सरकारी जमीन पर बना है तो प्रशासन बिना आदेश बंद करो कोर्ट के आदेश के उसे तोड़ सकता है, यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है।’

जनार्दन नाम के यूजर ने लिखा कि ‘क्या आप जानते हैं कि ये काम बिना कोर्ट की सहमति के हो रहा है?’ शंभू नाम के यूजर ने लिखा कि ‘भाई ऐसा कैसे चलेगा, जब गुंडागर्दी बिना किसी को नोटिस के की जाती है, कानून द्वारा सजा भी बिना नोटिस के अपराधियों के लिए होनी चाहिए जो केवल एक यही भाषा समझते हैं।’ मंजू नाम की यूजर ने लिखा कि ‘आप अपने काम से काम रखो, दुबई में शान्ति से रहो। भारत में क्या हो रहा है, इस पर आपकी राय की जरूरत नहीं है।’

बता दें कि 10 मई को उत्तर प्रदेश के कई जिले में जोरदार हंगामा हुआ। पत्थरबाजी और आगजनी जैसी घटनाएं दर्ज की गईं। अब हंगामा करने वालों की पहचान कर उन्हें पुलिस हिरासत में ले रही है और दोषियों के अवैध निर्माण को गिराया आदेश बंद करो जा रहा है। इसी पर बॉलीवुड एक्टर कमाल आर खान ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इसकी तुलना आतंकी घटना से कर डाली।

बायोमीट्रिक मशीन से राशन देना बंद करो

प्रदेश डिपो संचालक समिति ने कोरोना काल में प्रदेश के राशन डिपुओं में बायोमीट्रिक प्रणाली से उपभोक्ताओं को राशन वितरण करने के आदेशों पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने सरकार से इन आदेशों को शीघ्र वापस लेने की मांग की है। प्रदेश डिपो संचालक समिति के प्रदेशाध्यक्ष अशोक कवि ने जारी बयान में कहा है कि इस समय प्रदेश का कोई भी हिस्सा कोरोना महामारी से अछूता नहीं है। जहां कोरोना संक्रमण के मामले न हों, लेकिन प्रदेश सरकार फिर भी उपभोक्ताओं को डिपुओं से बायोमीट्रिक प्रणाली से राशन देने के आदेश जारी कर प्रदेश के लाखों उपभोक्ताओं व डिपो संचालकों को मौत के कुएं में धकेलने का काम कर रही है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि सरकार ने प्रदेश में होने वाले सभी प्रकार के सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमों में तरह-तरह की बंदिशें लगा रखी हैं, ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके, लेकिन डिपुओं पर बायोमीट्रिक प्रणाली को जारी रखने के आदेश दिए जा रहे हैं।

उन्होंने बताया कि गत वर्ष कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते प्रदेश के डिपो संचालकों ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए लोगों को घर-घर जाकर भी राशन वितरण का कार्य किया था। इन दिनों भी मंडी जिला के द्रंग ब्लॉक की उरला सहकारी सभा के विक्रेता हेमकांत के कोरोना संक्रमित होने के चलते बुधवार को अन्य डिपो संचालकों ने उपभोक्ताओं को घर-घर जाकर राशन वितरण का कार्य किया। क्योंकि उक्त डिपो संचालक की चपेट में आने से गांव के करीब 20 लोग संक्रमित पाए गए हैं। प्रदेशाध्यक्ष ने आदेश बंद करो कहा कि हम आपदा की इस घड़ी में प्रदेश की जनता व सरकार के साथ हैं और सरकार का हर आदेश मानने को तत्पर हैं पर जब तक प्रदेश में हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक सरकार बायोमीट्रिक प्रणाली से राशन वितरण करने के आदेश वापस ले। प्रदेशाध्यक्ष ने सरकार से डिपो संचालकों का बीमा करने की अधिसूचना जारी करने व प्रदेश में बायोमीट्रिक प्रणाली से राशन वितरण करने के आदेश वापस लेने की मांग को दोहराते हुए कहा कि यदि सरकार ने ये आदेश तुरंत वापस नहीं लिए, तो प्रदेश के सभी डिपो संचालक मई माह से राशन वितरण का कार्य बंद कर देंगे।

कोरोना वैक्सीन लेना क्या सरकार अनिवार्य कर सकती है? क्या कहता है क़ानून

कोरोना वायरस की वैक्सीन

पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की सरकार ने कई ज़िलों में दुकानदारों, टैक्सी और ऑटो चलाने वालों के साथ-साथ रेहड़ी पर सामान बेचने वालों के लिए शर्त रखी कि कोरोना की वैक्सीन लिए बग़ैर वो अपना काम दोबारा शुरू नहीं कर सकते. कई ज़िलों में ये आदेश वहां के उपायुक्तों ने जारी किया.

लेकिन मेघालय हाई कोर्ट ने इसे निरस्त करते हुए कहा कि वैक्सीन लेने को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता.अदालत ने इस आदेश को मौलिक अधिकार और निजता के अधिकार का हनन बताते हुए रद्द कर दिया.

मेघालय की तरह के आदेश कुछ दूसरे राज्यों की सरकार ने भी जारी किए हैं. इनमें गुजरात भी शामिल है. गुजरात के 18 शहरों में व्यावसायिक संस्थानों से कहा गया है कि वो 30 जून तक अपने कर्मचारियों का टीकाकरण करवा लें.

बाक़ी के शहरों और आदेश बंद करो ज़िलों में 10 जुलाई की समय सीमा तय की गई है. सरकारी आदेश में कहा गया है कि ऐसा नहीं होने की स्थिति में ऐसे संस्थानों को बंद करा दिया जाएगा.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत में वैक्सीन लगवाने को अनिवार्य किया जा रहा है? ख़ास कर तब जब केंद्रीय परिवार कल्याण और स्वास्थ्य मंत्रालय ने वैक्सीन लगवाने को लोगों की स्वेच्छा पर छोड़ दिया था.

हालांकि मेघालय उच्च न्यायलय ने अपने आदेश में ये ज़रूर कहा कि दूसरों की जानकारी के लिए व्यावसायिक प्रतिष्ठान, वहां काम करने वालों, बसों, टैक्सी और ऑटो संचालकों को टीकाकरण की स्थिति को स्पष्ट रूप से लिखकर लगाना होगा.

मेघालय उच्च न्यायलय के इस आदेश ने न्यायिक हलकों में बहस छेड़ दी है.

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क्या वैक्सीनेशन कभी अनिवार्य था?

रोहिन दुबे पेशे से अधिवक्ता हैं और गुरुग्राम की एक लॉ कंपनी में काम करते हैं. उन्होंने अनिवार्य टीकाकरण के बारे में अध्ययन किया है.

उन्होंने बीबीसी को बताया कि सबसे पहले टीकाकरण को साल 1880 में सभी के लिए अनिवार्य बनाया गया था. उस वक्त ब्रितानी हुकूमत ने 'वैक्सीनेशन एक्ट' लागू किया था. फिर चेचक के निपटने के लिए साल 1892 में अनिवार्य टीकाकरण क़ानून लागू किया गया. इन क़ानूनों के उल्लंघन पर सज़ा का प्रावधान भी रखा गया था.

दुबे कहते हैं, "साल 2001 तक सभी पुराने क़ानून ख़त्म कर दिए गए. लेकिन 1897 के एपिडेमिक डिज़ीज़ एक्ट यानी महामारी रोग क़ानून के सेक्शन दो ने राज्य सरकारों को कोई भी नियम लागू करने के लिए अपार शक्तियों का प्रावधान दिया है. इस प्रावधान के तहत किसी भी महामारी को फैलने से रोकने के लिए कोई भी राज्य सरकार, किसी भी तरह के कड़े क़ानून या निर्देश या नियम बनाने के लिए सशक्त है."

उसी तरह 2005 से लागू राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून भी आपदा या महामारी के दौरान केंद्र सरकार को उसे रोकने की अथाह शक्ति प्रदान करता है.

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क्या कहते हैं क़ानून के जानकार?

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क़ानून के जानकार कहते हैं कि इसे लेकर क़ानूनी रूप से कोई स्पष्टता नहीं है. अनिवार्य टीकाकरण के मामले में विभिन्न अदालतों के आदेशों का ही अध्ययन कर उसकी व्याख्या की जा रही है.

सबसे पहले सभी चिकत्साकर्मियों के लिए कोरोना के टीके को अनिवार्य किया गया. उसके बाद सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स जैसे पुलिसकर्मी और सुरक्षाबलों के लिए टीके को अनिवार्य बनाया गया. इसके बाद भी केंद्र सरकार कोरोना टीकाकरण अभियान को स्वैच्छिक ही कह रही है.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बी बद्रीनाथ कहते हैं कि मौलिक और निजता के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार के बीच सामंजस्य बनाना बेहद ज़रूरी है.

वे कहते हैं कि यह सही है कि किसी को टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, लेकिन फिर बहस इस बात पर होती है कि क्या टीका नहीं लेने से उससे किसी दूसरे व्यक्ति के संक्रमित होने की संभावना बढ़ती है? क्योंकि दूसरे व्यक्ति को भी स्वस्थ रहने का अधिकार है.

बद्रीनाथ कहते हैं, "आप इसे ऐसे समझिए कि क़ानूनन कोई भी किसी को ज़बरदस्ती घर के अंदर रहने या समाज से अलग रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. लेकिन महामारी रोग क़ानून यानी 'एपिडेमिक डिज़ीज़ एक्ट' के तहत ही सरकार ने 'क्वारंटीन' का प्रावधान किया है. इस प्रावधान के अनुसार संक्रमित लोगों का दूसरों से मिलना जुलना या घर से बाहर निकलना अपराध की श्रेणी में लिया जाता है. इसके उल्लंघन को लेकर क़ानूनी कार्रवाई भी हो रही है."

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टीका अनिवार्य करने पर सवाल

सामाजिक दूरी का पालन भी सरकार के इसी क़ानून के तहत किया जा रहा है. लेकिन इन सबके बावजूद, बद्रीनाथ कहते हैं कि टीकाकरण के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता और अदालतें इसको लेकर समय-समय पर अपने आदेशों में टिप्पणियां भी कर रहीं हैं.

हाल ही में मेघालय उच्च न्यायलय ने एक मामले की सुनवाई के दरम्यान अपने आदेश में कहा कि "कल्याणकारी योजनाएं हों या वैक्सीन देने की योजना, ये आजीविका और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का अतिक्रमण नहीं कर सकते. इसलिए टीका लगने और उसके नहीं लगने से आजीविका के ज़रिए पर प्रतिबन्ध लगाने के बीच कोई ताल्लुक ही नहीं है."

संविधान के जानकार और वरिष्ठ अधिवक्ता संग्राम सिंह कहते हैं कि राज्य सरकारें महामारी रोग क़ानून के तहत नियम बनाने के लिए अधिकृत ज़रूर हैं मगर टीके को अनिवार्य करना तब तक ग़लत ही माना जाएगा जब तक ये ठोस रूप से प्रमाणित नहीं हो जाता कि वैक्सीन लगवाने के बाद कभी फिर से लोग कोरोना से संक्रमित नहीं होंगे.

संग्राम सिंह ने बीबीसी से कहा कि अभी तक ये भी पता नहीं चल पाया है कि जो टीके कोविड की रोकथाम के लिए दिए जा रहे हैं वो कितने दिनों तक प्रभावी रहेंगे.

वे कहते हैं, "अभी तक ये भी पता नहीं कि एक साल में टीके की दो ख़ुराक लेने के बाद क्या हर साल ये टीका लेना पड़ेगा. जब यही नहीं पता तो फिर टीकाकरण को अनिवार्य कैसे किया जा सकता है."

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क्या हैं लोगों के अधिकार?

लेकिन रोहिन दुबे कहते हैं कि अब भी कई देशों में टीकाकरण अनिवार्य किया गया है. उदाहरण के तौर पर वे बताते हैं कि पासपोर्ट एक्ट के तहत कई ऐसे देश हैं जहां तब तक नहीं जाया जा सकता जब तक पीलिया या कई और बीमारियों के लिए टीका न लगवाया गया हो. उनके अनुसार कई अफ़्रीकी देश भी हैं जहां बिना टीका लगवाए जाने पर रोक है.

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने जैकोबसन बनाम मैसेच्युसेट्स मामले में ये स्पष्ट कर दिया था कि लोगों के स्वास्थ्य को देखते हुए सभी को चेचक का टीका लगवाना अनिवार्य है.

लेकिन संग्राम सिंह जैसे क़ानून के कई जानकार इस तर्क से सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत लोगों को ये अधिकार है कि उन्हें कोरोना वायरस के टीके से जुड़े फायदे और नुक़सान के बारे में पूरी जानकारी दी जाए. लेकिन इसको लेकर कोई आंकड़ा अभी तक मौजूद नहीं है इसलिए लोगों को फ़ैसला लेने में परेशानी हो रही है.

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